प्रयागराज ब्यूरो हायर एजूकेशन पालिसी संतोषजनक नही है। सबसे अहम यह कि प्रदेश का कोई भी विवि या कॉलेज देश के टॉप 100 उच्च शिक्षण संस्थानों में शामिल नही है। यहां तक कि महज 29 संस्थान ही ऐसे हैं जो नैक से ए गे्रडिंग प्राप्त हैं। जाहिर है ऐसे माहौल में छात्र हायर डिग्री लेकर रोजगार प्राप्त कर सकेंगे। इस बात का खुलासा सीएजी की 2022 की रिपोर्ट में हुआ है। सीएजी की ओर से प्रदेश की सबसे पुरानी दो यूनिवर्सिटी लखनऊ विवि और महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी की सैंपल टेस्टिंग की गई। इनके परिणामों से सीएजी की रिपोर्ट सही साबित हो रही है। इन दोनों यूनिवर्सिटी में हायर एजूकेशन के लिए बनाए गए मानकों का पालन नही किया जा रहा है। शुक्रवार को एजी आफिस की ओर से आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में प्रधान महालेखाकार बीके मोहंती, प्रधान निदेशक संजय कुमार और महालेखाकार अभिषेक सिंह ने यह जानकारी दी।

पानी की तरह बह गया पब्लिक का पैसा

सीएजी की रिपोर्ट बताती है कि उच्च शिक्षा विभाग द्वारा वर्ष 2014 से 20 के बीच 13484 करोड़ रुपए खर्च किया गया। जो राज्य के कुल व्यय का 0.56 और 0.76 प्रतिशत था। इतना पैसा खर्च करने के बावजूद परिणाम बेहतर नही मिले। राज्य में 2020 में 18 राज्य सार्वजनिक विवि थे। 170 शासकीय और 331 अशासकीय कॉलेज संचालित थे। जबकि 6682 निजी कॉलेज इन विवि से संबद्ध थे। यह सामने आया कि राज्य की उच्च शिक्षा निजी कॉलेजों पर निर्भर है। इस बीच 2016 से 2020 के बीच निजी कॉलेज 5377 से बढ़कर 6682 हो तो वहीं प्रदेश के पांच जिलों में कोई शासकीय कॉलेज नही था। दूसरे पांच जिलों में मेल या को एजूकेशन के एक भी गवर्नमेंट कॉलेज नही मिला। बाकी 20 जिलों में कोई भी शासकीय या अशासकीय सहायता प्राप्त महिला कॉलेज नहीं था। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि इन जिलों में विवि या कॉलेज खोलने की काई नीति सरकार के पास नही थी, इसके मुकाबले निजी कॉलेजों को खोलने की योजना राज्य सरकार क्रियान्वित कर रही थी।

मनमानी फीस की हुई वसूली

सीएजी ने लखनऊ विवि और काशी विद्यापीठ वाराणसी की सैंपल टेस्टिंग की तो पता चला कि दोनों विवि से संबद्धित निजी कॉलेजों में फीस संरचना का कोई अनुमोदन नही लिया गया है। इन विवि में किसी पाठयक्रम की जो फीस है, उसकी तीन गुनी तक फीस इनसे संबद्धित निजी कॉलेजों में वसूली जा रही है। इन कॉलेजों द्वारा नियमों का जरा भी पालन नही किया जा रहा है और विवि इन पर ध्यान नही दे रहे हैं। यह भी पाया गया कि दोनों विवि में स्थित लाइब्रेरी और लेबोरेटरी का स्तर बेहतर है लेकिन इनसे एफिलिएटेड कॉलेजों में इनका लेवल काफी खराब है। इनका रखरखाव और व्यवस्था बेहतर नही होने से छात्रों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

30 हजार में से एक हजार को मिला रोजगार

जांच में यह भी पाया गया कि दोनों विवि और उनसे संबद्ध कॉलेजों में 30 हजार छात्रों ने शिक्षा पूरी की लेकिन इनमें से महज एक हजार को ही रोजगार प्राप्त हुआ। दोनों विवि के पास ऐसी कोई व्यवस्था नही है जिससे पता चले कि डिग्री प्राप्त करने के बाद छात्र कहां गए या उनको रोजगार मिला या नही। 2014 से 2020 के बीच काशी विद्यापीठ और लखनऊ विवि में रोजगारपरक पाठ्यक्रमों का औसत प्रतिशत महज 21 और 10 था। इनसे संबद्ध निजी कॉलेजों में कई कोर्स ऐसे भी चल रहे हैं जिनको मान्यता नही मिली है। या एक बार मान्यता मिलने के बाद इसके मानकों को परखे बिना कोर्स संचालित किए जा रहे हैं।

रिसर्च के नाम पर ग्रांट की बर्बादी

यूजीसी की ओर से विवि व कॉलेजों में टीचर्स को रिसर्च के लिए ग्रांट दी जाती थी। इन विवि में पाया गया कि टीचर्स तो पीएचडी कर चुके हैं लेकिन आगे की रिसर्च कईयों ने नही की है। जो रिसर्च कर रहे हैं उनका प्रोजेक्ट चार से पांच साल विलंब से चल रहा है। कुछ की रिसर्च बिफोर टाइम ही बंद हो गई। इसका कोई खास कारण भी सामने नही आया। रिसर्च गुणवत्ता ठीक नही होने का असर पठन पाठन के स्तर पर पड़ रहा है। 2014 से 2020 के बीच काशी विद्यापीठ और लखनऊ विवि के औसत 19 और 16 प्रतिशत शिक्षकों ने विभिन्न ट्रेनिंग प्रोग्राम में भाग लिया। आमतौर पर विवि में एक टीचर पर 20 छात्रों को पढ़ाने का नियम है। लेकिन दोनो विवि में एक टीचर पर 150 छात्रों को पढ़ाने की जिम्मेदारी है। जिसका असर शिक्षा की गुणवत्ता पर पड़ रहा है। विश्वविद्यालयों के कॉलेजों में आट्स ग्रुप के कॉलेजों की स्थिति अच्छी नही है। साइंस के कॉलेजों की स्थिति कुछ बेहतर कही जा सकती है।

गजब है परीक्षा फीस से अधिक रिवैल्यूएशन फीस होना

यह भी देखने में आया कि काशी विद्यापीठ में परीक्षा फीस से अधिक रिवैल्यूएशन फीस रखी गई है। यहां पर परीक्षा की कॉपियों के रिवैल्यूएशन के नाम पर तीन हजार लिए जा रहे हैं। इसकी वजह से छात्र रिवैल्यूएशन के लिए अप्लाई नही करते हैं। जबकि दोनों विवि में कापियों के पुनर्मूल्यांकन के बाद 77 से 90 फीसदी तक छात्रों के अंकों में सुधार देखा गया। दोनों विवि की शिक्षा की गुणवत्ता के सुधार के लिए बनाए गए संस्थान भी ठीक प्रकार से कार्य नही कर रहे हैं।