प्रयागराज ब्यूरो, गंगापार एरिया के साहसों क्षेत्र से सटे तमाम गांवों से संगम तरफ आस्था संग ट्रैक्टर-ट्रॉली, मैजिक व छोटे हाथी से पहुंचने वालों का खर्च व दर्द जानने की कोशिश की गई। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट की टीम साहसों हाईवे पर खड़े होकर पहले ऑटो व बस का इंतजार किया। जो भी ऑटो मिल रहा था। लगभग सभी फुल जा रही थी। उसमें बैठने की एक या दो ही सीट उपलब्ध थी। जबकि कोई भी आस्था के कार्यक्रम में परिवार के आधा दर्जन व उससे अधिक लोग शामिल रहते है। ऐसे में इस ऑटो में बैठ पाना मुश्किल है। इसके साथ ही जो भी लोग साहसों हाईवे तक ऑटो पकडऩे आएंगे। उनको कम से कम नौ मीटर या एक किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ेगा। क्योंकि गांव के अंदर से हाईवे तक पहुंचने के लिए कोई साधन नहीं है। वहीं संगम क्षेत्र तरफ ऑटो आलोपीबाग फ्लाईओवर के नीचे व नजदीक उतार देता है। वहां से संगम तक पैदल जाये या फिर ई-रिक्शा करें। बस यह दो ही विकल्प होता है। साहसों से संगम तक पहुंचने में ऑटो व उसके बाद ई-रिक्शा करने पर एक आदमी पर चालीस रुपये तक खर्च हो जाता है। उसके बाद चालीस वापस जाने में लग जाता है। कुल मिलाकर 80 रुपये का खर्च है। समय अलग बर्बाद होता है।


बस का भी आलम कुछ ठीक नहीं
पड़ताल के दौरान यहां से गुजरने वाले सरकारी व निजी बसों की स्थिति भी कुछ ठीक नहीं मिली। प्राइवेट बस तो आ ही नहीं रही थी। काफी देर बाद रोडवेज की बस आई लेकिन हाथ देने पर रूकी नहीं। सिर्फ सिटी बस व इलेक्ट्रिक बसों को छोड़कर। उनको भी पकडऩा इतना आसान नहीं है। उनका भी समय तय है। कितने देर बाद बस वहां से होकर गुजरेगी यह किसी को नहीं मालूम। ग्रामीणों का कहना था कि उनको निशान चढ़ाने संगम तक जाना होता है। निशान का जो बांस होता है। उसको बस में रख पाना मुश्किल है। ऐसी स्थिति में ट्रैक्टर-ट्रॉली, मैजिक और छोटा हाथी एक बेस्ट विकल्प है। सरकार अगर इनपर सवार होकर चलने से मना कर रही है तो कोई इससे बेस्ट विकल्प दें।


शादी-विवाह तक में होता है इस्तेमाल
ग्रामीण व अंचल में रहने वाले लोग बताते है कि अगर 50-60 किलोमीटर दूर तक किसी शादी-विवाह में जाना होता है। उस समय भी इन वाहनों का इस्तेमाल करते हैं। क्योंकि इन वाहनों में कम से कम तीन से चार परिवार के लोग आराम से बैठ जाते है। खर्च सबसे कम लगता है। क्योंकि यह वाहन गांव क्षेत्र में हर दूसरे घर में मौजूद है। अगर बस बुकिंग करते है तो उसका खर्च एक ग्रामीण व गरीब वर्ग का आदमी नहीं उठा पाता है। इन पर कोई सरकार छूट दे या फिर रोडवेज बसों में गरीब वर्ग को छूट मिले। ताकि इन वाहनों में जान जोखिम डालकर कोई सवार न हो।