सड़क की खोदाई के चलते इस बार नहीं लगा खोवा मेला

स्वयं सहायता समूह की महिलाओं का फंस गया माल

खुली सड़क पर लगाई हैं दुकानें, नहीं मिले खरीदार

सालभर होली के इंतजार के बाद तीन दिन के लिए खोवा मेला में दुकान लगाने का मौका मिलता था। जिसमें आराम से 20 से 25 हजार रुपए प्रत्येक दुकानदार कमा लेता था। इस बार ऐसा नहीं हुआ। सड़क खोदाई के चलते मेले का आयोजन नहीं हो सका। ऐसे में दुकान लगाने वाले स्वयं सहायता समूहों का हजारों का माल फंस गया है। बिक्री के लिए उन्हें दुकानदार भी नहीं मिल रहे हैं।

हफ्तों पहले होने लगी थी तैयारी

मेले का आयोजन हर साल सिविल लाइंस के ताशंकद मार्ग पर होता था। जिसमें जिले के तमाम गांवों से 20 से अधिक दुकानदार भाग लेते थे। यह सभी कचरी, पापड़, चिप्स, खोवा, बरी सहित तमाम आइटम की बिक्री मोटा फायदा कमा लेते थे। इस मेले की तैयारी काफी दिन पहले से होती थी। दुकानदारों ने बताया कि पापड़ और कचरी के लिए मैटेरियल जुटाकर चीजें तैयार करनी पड़ती हैं। दूध से खोवा बनाकर उसे स्टोर करना पड़ता है।

आसान नहीं था दूसरी जगह आयोजन

ताशंकद मार्ग को सौंदर्यीकरण के तहत खोद दिया गया है। मेले का आयोजन करने वाली संस्था ई- पहल के संचालक डॉ। गोपाल कृष्ण का कहना है कि नाबार्ड से उन्हे खोवा मेले के आयोजन के लिए काफी सीमित फंड मिलता है। इस पैसे में सभी इंतजाम करने पड़ते थे। मेले के आयोजन में ग्रामीण बैंक का भी तमाम सहयोग मिल जाता था। रोड खोद दी गई तो हमारे पास सीमित संसाधन में दूसरी जगह खोवा मेले के आयोजन का रास्ता नही था। इसलिए हमने कहीं पर अनुमति के लिए आवेदन भी नहीं किया।

तीन दिन से धूप और धूल से परेशान

चूंकि माल तैयार हो चुका था और इसे बर्बाद नहीं किया जा सकता। ऐसे में दुकानदार झक मारकर इस रोड पर अपना स्टाल लगा रहे हैं। उन्हें दिनभर धूप और धूल का सामना करना पड़ रहा है। उनका कहना है कि तीन दिन से बिक्री नहीं होने से कई दुकानदार वापस गांव लौट गए। हमलोग अभी रुके हैं। उम्मीद है कि अगले दो दिनों में शायद कोई बिक्री हो जाए। अगर सामान नहीं बिका तो हमारी बचत चली जाएगी। एक एक पैसा जोड़कर यह सामान बनाया गया था।

प्रचार- प्रसार की कमी से नहीं हुई बिक्री

दरअसल इस साल मेला नहीं लगा तो दुकानों का प्रचार प्रसार भी नहीं हुआ। ऐसे में लोगों को स्टाल लगे होने की जानकारी भी नहीं है। यही कारण है कि खरीदारी के लिए पब्लिक नहीं पहुंच रही है। जबकि पिछले सालों में मेले में महज तीन से चार दिन में 10 लाख से अधिक का व्यापार दो दर्जन दुकानदार कर लेते थे।

बहुत मुश्किल से छह हजार रुपए बचाए हुए थे। इस पैसे से काफी सामान तैयार किया। सोचा था कि होली में बेचकर कुछ पैसा बना लेंगे। लेकिन अब तो लग रहा है कि यह सामान भी बेकार हो जाएगा।

साधना, सहबाजपुर मऊआइमा

तीन दिन से कोई भी नहीं आया। हर साल मेला लगने से खरीदारों की भीड़ लगती थी लेकिन इस बार सड़क खोद दिए जाने से दिक्कत हो रही है। समझ नहीं आ रहा कि क्या करें।

तबस्सुम, मऊआइमा

कुछ दुकानदार विकास भवन में लगाए गए स्वयं सहायता समूह के मेले में गए हैं लेकिन वहां भी अच्छी बिक्री नहीं हो रही है। हमलोगों को न तो जगह मिली और न ही मेला लगा। इससे हमारा नुकसान हुआ है।

कमलेश, नौगिरा, मऊआइमा

हमारे पास अधिक फंड नही रहता। इसलिए यहां के अलावा कहीं और मेला लगाना आसान नहीं होता है। दुकानदारों से एक रुपए नही मिलता। सबकुछ संस्था को करना होता है।

डॉ। गोपाल कृष्ण, ओनर, ई- पहल