प्रयागराज (ब्यूरो)। अंग्रेज़ी विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो जेपी कुलश्रेष्ठ ने फिराक साहब के साथ अपने गुजारे हुए पलों को याद करते हुए कहा कि कक्षा में वो बहुत प्रभावशाली रहते थे और बाउंड्रीलेस थे। अपनी शायरी किसी को सुनाने से बचते थे और स्वाभिमानी थे। 'फिऱाक़ समग्रÓ के संपादक चौधरी इबनुल नसीर ने कहा कि इलाहाबाद पर कर्ज है कि फिराक साहब की पूरी रचना कों पाठकों के सामने लाया जाए। प्रो हेरम्ब चतुर्वेदी ने कहा कि फिराकीयत भी एक शैली बन गयी, जीवन की भी और कविता की भी। डा। अनिता गोपेश ने कहा कि फिऱाक़ के अनुभव में इतना विस्तार है कि सब कुछ पाया जा सकता है।

यह लोग भी रहे मौजूद
प्रो नीलम सरन गौड़ ने कहा कि फिऱाक़ साहब की कहानियां इलाहाबाद विश्वविद्यालय ही नहीं, इलाहाबाद के अस्तित्व से जुड़ गयी हैं। अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ आलोचक प्रो राजेंद्र कुमार ने कहा कि तीनों जबानों के अदीब खय़ालों पर फिऱाक़ की पूरी नजऱ रही है। फिऱाक़ की शायरी के कई रंग है। हिंदी कवियों में वह निराला को बेहद पसंद करते थे। सभी वक्ताओं ने फिऱाक़ से जुड़े कई किस्से और वाकये सुनाए जो उनके अपने अनुभवों, उनके लिखे लेखों और और उनको जानने वालों से पता चलते हैं। इस अवसर पर अंग्रेजी विभाग के पूर्व अध्यक्ष और फिऱाक़ के समकालीन रहे प्रो एच एस सक्सेना का इंटरव्यू भी दिखाया गया। जिसमें उन्होंने फिऱाक़ से जुड़ी अपनी यादों को साझा किया। इस अवसर पर प्रो आरसी त्रिपाठी, प्रो प्रणय कृष्ण, प्रो पंकज कुमार, प्रो प्रशांत कुमार घोष, प्रो विवेक कुमार तिवारी, प्रो हर्ष कुमार, प्रो अनामिका राय, प्रो एआर सिद्दीकी, प्रो आईआर सिद्दीकी, डॉ जया कपूर , प्रो राजीव श्रीवास्तव, धनजय चोपड़ा, हरिश्चंद्र पांडेय, डॉ कुमार वीरेन्द्र, डॉ सूर्यनारायण, डॉ भूरेलाल, प्रो योगेंद्र प्रताप सिंह, डॉ विनम्र सेन सिंह, डा। आशुतोष पार्थेश्वर, डा। जनार्दन, डा। दीनानाथ मौर्य, डा। अमितेश कुमार, प्रवीण शेखर, डा। मोना अग्निहोत्री, डा। उमेश चंद्र, डा। अमरनाथ, आनंद मालवीय, शैलेन्द्र जय, डॉ विक्रम हरिजन, केके पांडेय आदि मौजूद रहे।