प्रयागराज (ब्यूरो)।उत्तर भारतीय एवं दक्षिण की भाषाओं के बीच निरंतर संवाद होते रहना चाहिए। यह भारतीय उत्कर्ष ही नहीं बल्कि अस्मिता के लिए भी आवश्यक है। सुखद यह है कि यह संवाद विभिन्न अवसरों पर चल रहा है। यह बातें बुधवार को उप्र ङ्क्षहदुस्तानी एकेडेमी में आयोजित उत्तर एवं दक्षिण भाषायी संवाद : स्थिति और संभावनाएं, विषय पर गोष्ठी में गोंडा से आए वरिष्ठ साहित्यकार डा। सूर्यकांत ङ्क्षसह ने कही। उन्होंने कहा कि भारत एकता का अदभुत उदाहरण है। दक्षिण के बहुत से लेखक ङ्क्षहदी में सार्थक लेखन कर रहे हैं। वास्तव में वे उत्तर और दक्षिण के मैत्री पुल को सशक्त बना रहे हैं।

उत्तर व दक्षिण में मैत्री पुल बना रहे लेखक

साहित्यकार रविनन्दन ङ्क्षसह ने कहा कि भाषा सांस्कृतिक एकता की बुनियाद है। उत्तर और दक्षिण भारत के बीच सदियों से भाषायी संवाद की स्थिति रही है। इसका पहला और आधारभूत कारण है भारत की धार्मिक और सांस्कृतिक एकता। जिसके चलते यह संवाद उत्तरोत्तर बढ़ता ही गया। जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय दिल्ली के प्रो। ओमप्रकाश ङ्क्षसह ने उत्तर और दक्षिण भारतीय भाषाओं में सेतु निर्माण और वहां की साहित्य, संस्कृति के प्रचार-प्रसार व गतिविधियों पर विचार व्यक्त किए। कहा कि उत्तर भारत की गतिविधियों के माध्यम से दक्षिण भारत में भी साहित्य, संस्कृति और भाषा के माध्यम से एक नए तरह का वातावरण तैयार हो जाने की संभावना है। बताया कि तमिल संगमम् ऐसा ही एक प्रयास था। केन्द्रीय ङ्क्षहदी संस्थान आगरा से आये प्रो। उमापति दीक्षित ने कहा कि दक्षिण की सबसे पुरानी भाषा तमिल का लिखित साहित्य 2300 वर्षो से भी अधिक माना जाता है। इसके बाद से तमिल भाषा का सतत विकास जारी है। सत्र का संचालन विनम्रसेन ङ्क्षसह ने किया।

दूसरे सत्र में विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों के शोधार्थियों ने शोधपत्र पढ़े। अध्यक्षता सीएमपी डिग्री कालेज की डा। सरोज ङ्क्षसह ने की। उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य में समरसता और गतिशीलता है। साहित्यिक कथ्य उत्तर और दक्षिण में समान है, जिसमें रामायण, महाभारत, पुराण,भागवत बौद्ध, जैन तथा अन्य धर्मों का साहित्य लिया जा सकता है। मापन सत्र की अध्यक्षता करते हुए कानपुर से आये वरिष्ठ साहित्यकार डा। रमेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि भाषा व्यवहार में आने से सिद्ध होती है। उत्तर दक्षिण के ङ्क्षहदी प्रेमियों को सतत पुरूषार्थ करते रहना चाहिए। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो। योगेन्द्र प्रताप ङ्क्षसह, डा। श्लेष गौतम, उर्वशी उपाध्याय, विवेक सत्यांशु ने भी विचार व्यक्त किया। संचालन डा। अनिल ङ्क्षसह ने किया। इससे पहले एकेडेमी के सचिव देवेंद्र प्रताप ङ्क्षसह ने सभी अतिथियों व साहित्यकारों का स्वागत सम्मान किया। एकेडेमी की त्रैमासिक पत्रिका ङ्क्षहदुस्तानी के दूसरे खंड का विमोचन भी हुआ।