मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में नहीं हैं हॉकी के कोच
दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से बातचीत में हॉकी खिलाडि़यों ने बताया दर्द
PRAYAGRAJ: मेजर ध्यानचंद के जिले में हॉकी का खेल खिलाडि़यों के हौसले से ही सांस ले रहा है। सरकार की उपेक्षा और सुविधाओं का अभाव खिलाडि़यों को अखर रही है। अन्य खेलों की अपेक्षा हॉकी पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया जा रहा। आलम यह है कि मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में ही हॉकी कोच नहीं हैं। ग्लैमर से दूर इस खेल में साधारण परिवार के बच्चों ज्यादा रुचि ले रहे हैं। घर से लेकर ग्राउंड तक अभाव में के बीच वह देश का नाम रोशन करने की कोशिश में जुटे हैं। दैनिक जागरण आई-नेक्स्ट से शनिवार को हुई बातचीत
में खिलाडि़यों का यह दर्द सामने आया।
खुद के बूते सपने को दे रहे हवा
मदन मोहन मालवीय स्टेडियम में शनिवार को मेजर ध्यानचंद की स्मृति हॉकी मैच आयोजित था। मैच के पूर्व यहां ग्राउंड पर उगी बड़ी-बड़ी ग्रास को साफ करवाई गई। मैच खेल रहे खिलाडि़यों ने कहा कि सरकार हॉकी प्लेयर का ध्यान नहीं देती। क्रिकेट व तीरंदाजी एवं रेस जैसे गेम पर सरकार व बड़े लोगों का फोकस अधिक होता है। हॉकी गेम में ज्यादातर नार्मल फेमिली के बच्चे ही होते हैं। बड़े घरानों के युवा इस गेम में भविष्य बनाने की सोचते भी नहीं। अभाव के बावजूद हॉकी में खिलाड़ी अपनी मेहनत के दम पर आगे बढ़ रहे हैं। नेशनल व इंटर नेशनल खेलने व जीतने वाले हॉकी प्लेयर के प्रोत्साहन को लेकर सरकार कुछ भी नहीं देती। सरकारी स्कूलों में भी हॉकी कोच का अभाव बताया गया। मैच खेल रहे खिलाड़ी कहते हैं कि वह सभी प्राइवेट हॉकी एकेडमी प्रैक्टिस करते हैं और सीखते हैं। प्राइवेट एकेडमी में हॉकी प्रैक्टिस करने वाले तमाम खिलाड़ी देश व प्रदेश का नाम रोशन कर चुके हैं। वह सभी इस जिले के ही हैं। बावजूद इसके सरकार इन खिलाडि़यों को तवज्जो नहीं देती।
जिले के अंदर हॉकी में मेधावियों की कमी नहीं है। यदि उन्हें थोड़ा सा सरकार प्रमोट करें तो वे दुनिया में देश का नाम रोशन कर सकते हैं। जिले से हॉकी के जो भी प्लेयर निकले हैं खुद की सुविधाओं से ही प्रैक्टिस किए और आगे बढ़े।
मो। जावेद, हॉकी कोच शगुन स्पोर्टस एकेडमी
यहां प्रैक्टिस करने वाले खिलाडि़यों में न तो क्षमता कम है और न ही उनमें हौसले की कमी है। जरूरत है तो उन्हें सामाजिक व सरकार स्तर पर प्रमोट करने की। आगे बढ़ने के लिए जूझ रहे खिलाड़ी उपेक्षा की बात कह रहे तो गलत नहीं है। अभाव में के बावजूद बच्चे आगे बढ़ रहे हैं तो उनकी मेहनत है।
राहुल यादव, कोच विद्या वाहिनी पब्लिक स्कूल
हॉकी खिलाडि़यों की बात क्या करें। इस क्षेत्र में कॅरियर बनाने का ख्वाब देखकर आए थे। हम खिलाडि़यों का ध्यान नहीं दिया गया। आज स्कूल में बच्चों को हॉकी सिखाते हैं। साथ के कई बेस्ट खिलाड़ी अब खुद की एकेडमी चला रहे हैं।
पवन सिंह, हॉकी कोच गोल हॉकी एकेडमी लवकुश इंटर कॉलेज
मेरा सपना है कि हॉकी के क्षेत्र में देश का नाम रोशन करूं। मैं मेहनत भी करता हूं। बॉल और स्टिक यानी हॉकी से लेकर बूट काफी महंगे आते हैं। अच्छे किट कम से कम तीन हजार में आते हैं। लेकिन कोच की कमी अखर रही है।
नावेद रजा, हॉकी प्लेयर
मेरे पिता जी प्राइवेट सर्विस करते हैं। बड़ी मुश्किल से हॉकी की किट खरीद पाते हैं। खेलते-खेलते बूट ज्यादा फटते हैं। हॉकी के लिए जो बूट आते हैं वह भी महंगे होते हैं। घर के सिवाय कभी किसी ने कोई सपोर्ट नहीं किया।
मो। शाद, हॉकी प्लेयर
हॉकी प्लेयर बनने की इच्छा है। इसी लिए तो एकेडमी ज्वाइन किया। ज्यादा महंगे तो नहीं पर घर वाले किट दिलवा देते हैं। पूरी कोशिश है कि मैं एक दिन इंडिया टीम का हिस्सा बनूं।
मो। उमैद, हॉकी प्लेयर
मुझे हॉकी खेलना अच्छा लगता है। मेरे पास स्टिक नहीं थी। कुछ दिन पहले ही घर वाले दिलवाए हैं। पढ़ाई के साथ प्रैक्टिस के लिए समय निकाल लेता हूं। पहले टाइम मैनेज में दिक्कत होती थी अब कोई दिक्कत नहीं है।
आयुष्मान श्रीवास्तव, हॉकी प्लेयर
डाइट कोई स्पेशल नहीं लेते। जो भी घर में बनता है वही खाते हैं। सुबह चने वगैरह खा लेते हैं। मेरे साथ कोई ऐसा प्लेयर नही जो बहुत बड़े घर का हो। हम सभी मीडियम फेमिली से ही हैं। कोई मदद करे न करे मैं सीख कर एक दिन खुद बढ़ जाऊंगा।
शम्मी जावेद, हॉकी प्लेयर
अभी करीब दो साल से कोरोना के चलते प्रैक्टिस बंद ही चल रही थी। अब प्रैक्टिस के आदेश आए हैं तो कोच भी आ जाएंगे। जब खिलाड़ी ही नहीं थे तो कोच रखकर ही क्या करते। जो बच्चे बेहतर खेलते हैं उन्हें हम हम प्रमोट करते हैं।
अनिल तिवारी, क्रीड़ाधिकारी मदन मोहन मालवीय स्टेडियम