Khosla ka Ghosla
सस्ते के चक्कर में प्लाट लेकर फंस गए
Allahabad: जिस फ्लैट को पूरे पैसे देकर खोसला साहब ने खरीदा था। बाद में उसी फ्लैट को पाने के लिए उनको एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ गया। मूवी खोसला का घोसला की स्टोरी सब्जेक्ट यही था। लेकिन, वह मूवी थी इसलिए हैप्पी इडिंग बनती थी। सिटी में एडीए के मार्च और अप्रैल महीने में चले मिशन डिमॉलिशन के बाद सिटी में भी कोलोनाइजर के फर्जीवाड़े का शिकार बने सैकडों खोसला सामने आ गए हैं। दरअसल, इन्होंने घर बनवाने के लिए जो प्लाट खरीदे थे, वह लीगली अपू्रव्ड जमीन नहीं थी। कहीं पर जमीन एफएसएल, तो कहीं पर कृषि भूमि के तौर पर एडीए के रिकार्ड में दर्ज है। जमीन आवासीय नहीं है तो फिर वहां पर किसी भी तरह का निर्माण इलीगल है। एडीए ने जब इन एरियाज में डिमॉलिशन किया तो लोगों को पता चला कि उन्होंने गलत जगह पर रुपए लगा दिए हैं। यह रील नहीं रियल लाइफ है। ऐसे में हैप्पी एंडिंग होगी? यह भरोसे से नहीं कहा जा सकता। इस फर्जीवाड़े का शिकार हुए लोगों की न सिर्फ टेंशन बढ़ गई है बल्कि उनका ख्वाब भी धूमिल होता नजर आ रहा है.
ADA पहुंच कर ली जानकारी
मामला कुछ यूं है कि वर्तमान में एडीए अब तक की सबसे बड़ी डिमॉलिशन ड्राइव चला रहा है। एडीए ने झलवा, राजरूपपुर व धूमनगंज, झूंसी, फाफामऊ, नैनी, शांतिपुरम इलीगल प्लाटिंग को डिमॉलिश किया। इसमें इललीगल प्लॉटिंग एरिया में बने बाउंड्री को नेस्तनाबूद कर दिया गया। कई जगहों पर इलीगल प्लाटिंग में हो रहे निर्माण को भी बुल्डोजर ने नेस्तनाबूत कर दिया। दरअसल, इन एरिया में सालों से प्लॉटिंग करवाकर कोलोनाइजर ने प्लाट बेच दिए। जिसमें फंसे ज्यादा ज्यादातर लोगों ने प्लॉट लेकर अपनी बाउंड्री करवा दी थी। इसमें से कुछ को पता नहीं था कि वह जिस प्लॉट को ले रहे हैं उसमें क्या गड़बड़ी है। वहीं कुछ ऐसे भी थे कि जिनको इस प्लॉट की गड़बड़ी का तो पता था, लेकिन उन्होंने जुगाड़ सिस्टम पर भरोसा करते हुए मकान बनवाने की प्लानिंग कर ली थी। फिलहाल एडीए की सख्ती के बाद अब सभी टेंशन में आ गए हैं। एडीए के इस डिमॉलिशन के बाद से डेली लोग एडीए ऑफिस पहुंचकर अपने प्लाट से रिलेटेड क्वेरीज कर रहे है.
खुलकर नहीं आ रहे हैं सामने
जिन लोगों के प्लॉट डिमॉलिशन में शिकार हुए। वह एडीए ऑफिस पहुंचकर क्वेरी कर रहे हैं। लाखों रुपए फंसा चुके इन लोगों ने एडीए ऑफिसर्स से भी पूछताछ की कि अब आगे क्या होगा? ऐसे लोगों को ऑफिसर्स कोई खास जवाब नहीं दे पाए। फिलहाल, ये लोग अभी पब्लिकली सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे ही एक भुक्तभोगी से जब आई नेक्स्ट ने पूछा तो उनका जवाब था कि आधे से ज्यादा शहर इललीगल बना हुआ है। लीगली तौर पर सबकुछ इतना महंगा है कि संभव ही नहीं कि कोई मैप पास करके अपना घर बनवा ले। इनकी जमीन कृषि भूमि थी और बिना टाउनशिप प्लान पास कराए ही बिल्डर्स ने उस जमीन की प्लॉटिंग करके बेच दिया था। पांच लाख रुपए में धूमनगंज में उन्होंने प्लाट खरीदा था.
पहले वाले भी फंस गए
एडीए ऑफिस पहुंचने वालों में सिर्फ कार्रवाई से प्रभावित लोग ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे भी थे जिनके प्लॉट इन एरियाज में थे। कई लोगों ने दो से तीन साल पहले ही इन एरिया में प्लॉट लिया था। लेकिन, बाद में हाईकोर्ट ने गंगा व यमुना से 500 मीटर की दूरी को बाढ़ प्रभावित एरिया एनाउंस कर दिया, जिसमें इस एरिया में निर्माण को मान्य नहीं किया गया था। इसके बाद कई लोग जिन्होंने प्लाट खरीदकर इन एरियाज में घर बनाने की प्लानिंग की थी, उनका भी एमाउंट फंस गया। ऐसे लोग भी एडीए और बिल्डर्स का चक्कर लगा रहे हैं। क्योंकि, अगर मंजूरी नहीं मिली तो सिवाए खेती करने के उनके पास कोई चारा नहीं बचेगा.
70 प्रतिशत plotting है illegal
एडीए के ऑफिसर्स बताते हैं कि सिटी के आउटर एरिया में हो रही 70 प्रतिशत से ज्यादा प्लॉटिंग इललीगल है। यह एरिया एफएसएल में आते हैं और या फिर वह भूमि आवासीय यूज के लिए नहीं है। एडीए के ऑफिसर्स यह भी कहते हैं कि ज्यादातर लोग मकान या प्लॉट खरीदते वक्त सिर्फ इस बात का पता करते हैं कि यह उक्त आदमी के नाम है कि नहीं है। वह इस बात की जानकारी करने की कोशिश नहीं करता है कि उस जमीन का लैंड यूज क्या है? इललीगल प्लॉटिंग का काम करने वाले उसको झांसा देकर फंसा देते हैं। एक बार रजिस्ट्री होने के बाद उसके सामने कोई भी ऑप्शन नहीं बचता है.
1500 एकड़ में इललीगल प्लाटिंग ध्वस्त कर चुका है एडीए
एडीए ने अप्रैल में पिछले कुछ सालों की बड़ी डिमॉलिशन ड्राइव चलाई है। सिर्फ एक महीने की इस ड्राइव में डिफरेंट एरिया में बनी हुई 1500 एकड़ से ज्यादा में इललीगल प्लाटिंग व कंस्ट्रक्शन को ध्वस्त किया जा चुका है। इस कार्रवाई से इन एरिया में प्लाट खरीदकर आशियाना बनवाने लोग सहम गए हैं। इतना ही नहीं एडीए हर महीने में छह दिन इलीगल प्लाटिंग के अगेंस्ट डिमॉलिशन ड्राइव चलाएगा। बड़ी मुश्किल यह है कि जिन लोगों ने प्लाट खरीद लिए है, अब उनके कहने के बाद भी कोलोनाइजर उस एरिया का ले आउट पास नहीं करवा रहा है.
क्यों होती है illegal plotting?
सिटी में इलीगल प्लाटिंग को नाम्र्स के मुताबिक तैयार करने के लिए कोलोनाइजर को टाउनशिप का लेआउट प्लान एडीए से पास कराना होता है। लेआउट प्लान पास कराने के लिए कोलोनाइजर को एडीए को डेवलपमेंट चार्ज देना होता है। डेवलपमेंट चार्ज ज्यादा होने के चलते ही इललीगल प्लॉटिंग का रास्ता कोलोनाइजर अपनाते हैं। एडीए ऑफिसर्स ने बताया कि करीब एक हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से डेवलपमेंट चार्ज लिया जाता है। अब जितनी बड़ी जमीन होगी, उतना ही उस पर डेवलपमेंट चार्ज लगेगा। इसके अतिरिक्त भी कागजी कार्रवाई को पूरी कराने में कोलोनाइजर को खर्च करना पड़ता है। इन सबसे बचने के लिए इललीगल प्लॉटिंग की जाती है.
स्नस्रु ने बढ़ाया illegal plotting का खेल
हाईकोर्ट ने एफएसएल की लिमिट बढ़ाकर 500 मीटर कर दी है। ऐसे में जिन कोलोनाइजर के पास इस लिमिट में जमीन थी वह इललीगल प्लॉटिंग करवा कर प्लॉट के रेट में पैसा वसूल कर रहे हैं। एक बार रुपए जेब में चले गए तो फिर पब्लिक के पास सिवाए खोसला साहब बनने के कुछ भी नहीं बचता। खेती की एक दो लाख की जमीन में प्लाटिंग कराके कोलोनाइजर 10 से 15 लाख रुपए तक अर्न कर लेते हैं। इस काम में एडीए के ग्राउंड लेवल टीम व पुलिस की मिलीभगत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.
खरीदने से पहले इन बातों को जरूर चेक कीजिए.
-प्लॉट खरीद रहे हैं तो वह एरिया किस उपयोग के लिए रिकार्ड में दर्ज है इसको एडीए से चेक जरूर कर लें
-चेक कर लें उस प्लॉटिंग का एडीए से ले आउट प्लान पास है या नहीं
-वह जमीन एफएसएल की लिमिट में तो नहीं आ रही है
-जमीन के एडीए के साथ ही रजिस्ट्री ऑफिस में भी रिकार्ड क्रॉस चेक कर लीजिए.
-कोशिश कीजिए कि रजिस्ट्री के दौरान कैश की बजाए चेक का इस्तेमाल किया जाए, ताकि रिकार्ड में रहे.
इललीगल प्लॉटिंग करके कोलोनाइजर पब्लिक को फंसा लेते हैं। एडीए की डिमॉलिशन ड्राइव चलने के बाद बड़ी संख्या में ऐसे लोग एडीए पहुंच रहे हैं जिन्होंने इन जमीन पर प्लॉट खरीद लिए थे। उन लोगों को बता दिया गया है कि जब तक लेआउट पास नहीं होगा तब तक वहां पर किसी भी तरह का डेवलपमेंट नहीं किया जा सकता है। अभी तक 25 कोलोनाइजर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है.
-केके सिंह,
संपत्ति अधिकारी एडीए
Report by-Abhishek Srivastava
ADA पहुंच कर ली जानकारी
मामला कुछ यूं है कि वर्तमान में एडीए अब तक की सबसे बड़ी डिमॉलिशन ड्राइव चला रहा है। एडीए ने झलवा, राजरूपपुर व धूमनगंज, झूंसी, फाफामऊ, नैनी, शांतिपुरम इलीगल प्लाटिंग को डिमॉलिश किया। इसमें इललीगल प्लॉटिंग एरिया में बने बाउंड्री को नेस्तनाबूद कर दिया गया। कई जगहों पर इलीगल प्लाटिंग में हो रहे निर्माण को भी बुल्डोजर ने नेस्तनाबूत कर दिया। दरअसल, इन एरिया में सालों से प्लॉटिंग करवाकर कोलोनाइजर ने प्लाट बेच दिए। जिसमें फंसे ज्यादा ज्यादातर लोगों ने प्लॉट लेकर अपनी बाउंड्री करवा दी थी। इसमें से कुछ को पता नहीं था कि वह जिस प्लॉट को ले रहे हैं उसमें क्या गड़बड़ी है। वहीं कुछ ऐसे भी थे कि जिनको इस प्लॉट की गड़बड़ी का तो पता था, लेकिन उन्होंने जुगाड़ सिस्टम पर भरोसा करते हुए मकान बनवाने की प्लानिंग कर ली थी। फिलहाल एडीए की सख्ती के बाद अब सभी टेंशन में आ गए हैं। एडीए के इस डिमॉलिशन के बाद से डेली लोग एडीए ऑफिस पहुंचकर अपने प्लाट से रिलेटेड क्वेरीज कर रहे है.
खुलकर नहीं आ रहे हैं सामने
जिन लोगों के प्लॉट डिमॉलिशन में शिकार हुए। वह एडीए ऑफिस पहुंचकर क्वेरी कर रहे हैं। लाखों रुपए फंसा चुके इन लोगों ने एडीए ऑफिसर्स से भी पूछताछ की कि अब आगे क्या होगा? ऐसे लोगों को ऑफिसर्स कोई खास जवाब नहीं दे पाए। फिलहाल, ये लोग अभी पब्लिकली सामने नहीं आ रहे हैं। ऐसे ही एक भुक्तभोगी से जब आई नेक्स्ट ने पूछा तो उनका जवाब था कि आधे से ज्यादा शहर इललीगल बना हुआ है। लीगली तौर पर सबकुछ इतना महंगा है कि संभव ही नहीं कि कोई मैप पास करके अपना घर बनवा ले। इनकी जमीन कृषि भूमि थी और बिना टाउनशिप प्लान पास कराए ही बिल्डर्स ने उस जमीन की प्लॉटिंग करके बेच दिया था। पांच लाख रुपए में धूमनगंज में उन्होंने प्लाट खरीदा था.
पहले वाले भी फंस गए
एडीए ऑफिस पहुंचने वालों में सिर्फ कार्रवाई से प्रभावित लोग ही नहीं बल्कि कुछ ऐसे भी थे जिनके प्लॉट इन एरियाज में थे। कई लोगों ने दो से तीन साल पहले ही इन एरिया में प्लॉट लिया था। लेकिन, बाद में हाईकोर्ट ने गंगा व यमुना से 500 मीटर की दूरी को बाढ़ प्रभावित एरिया एनाउंस कर दिया, जिसमें इस एरिया में निर्माण को मान्य नहीं किया गया था। इसके बाद कई लोग जिन्होंने प्लाट खरीदकर इन एरियाज में घर बनाने की प्लानिंग की थी, उनका भी एमाउंट फंस गया। ऐसे लोग भी एडीए और बिल्डर्स का चक्कर लगा रहे हैं। क्योंकि, अगर मंजूरी नहीं मिली तो सिवाए खेती करने के उनके पास कोई चारा नहीं बचेगा.
70 प्रतिशत plotting है illegal
एडीए के ऑफिसर्स बताते हैं कि सिटी के आउटर एरिया में हो रही 70 प्रतिशत से ज्यादा प्लॉटिंग इललीगल है। यह एरिया एफएसएल में आते हैं और या फिर वह भूमि आवासीय यूज के लिए नहीं है। एडीए के ऑफिसर्स यह भी कहते हैं कि ज्यादातर लोग मकान या प्लॉट खरीदते वक्त सिर्फ इस बात का पता करते हैं कि यह उक्त आदमी के नाम है कि नहीं है। वह इस बात की जानकारी करने की कोशिश नहीं करता है कि उस जमीन का लैंड यूज क्या है? इललीगल प्लॉटिंग का काम करने वाले उसको झांसा देकर फंसा देते हैं। एक बार रजिस्ट्री होने के बाद उसके सामने कोई भी ऑप्शन नहीं बचता है.
1500 एकड़ में इललीगल प्लाटिंग ध्वस्त कर चुका है एडीए
एडीए ने अप्रैल में पिछले कुछ सालों की बड़ी डिमॉलिशन ड्राइव चलाई है। सिर्फ एक महीने की इस ड्राइव में डिफरेंट एरिया में बनी हुई 1500 एकड़ से ज्यादा में इललीगल प्लाटिंग व कंस्ट्रक्शन को ध्वस्त किया जा चुका है। इस कार्रवाई से इन एरिया में प्लाट खरीदकर आशियाना बनवाने लोग सहम गए हैं। इतना ही नहीं एडीए हर महीने में छह दिन इलीगल प्लाटिंग के अगेंस्ट डिमॉलिशन ड्राइव चलाएगा। बड़ी मुश्किल यह है कि जिन लोगों ने प्लाट खरीद लिए है, अब उनके कहने के बाद भी कोलोनाइजर उस एरिया का ले आउट पास नहीं करवा रहा है.
क्यों होती है illegal plotting?
सिटी में इलीगल प्लाटिंग को नाम्र्स के मुताबिक तैयार करने के लिए कोलोनाइजर को टाउनशिप का लेआउट प्लान एडीए से पास कराना होता है। लेआउट प्लान पास कराने के लिए कोलोनाइजर को एडीए को डेवलपमेंट चार्ज देना होता है। डेवलपमेंट चार्ज ज्यादा होने के चलते ही इललीगल प्लॉटिंग का रास्ता कोलोनाइजर अपनाते हैं। एडीए ऑफिसर्स ने बताया कि करीब एक हजार रुपए प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से डेवलपमेंट चार्ज लिया जाता है। अब जितनी बड़ी जमीन होगी, उतना ही उस पर डेवलपमेंट चार्ज लगेगा। इसके अतिरिक्त भी कागजी कार्रवाई को पूरी कराने में कोलोनाइजर को खर्च करना पड़ता है। इन सबसे बचने के लिए इललीगल प्लॉटिंग की जाती है.
स्नस्रु ने बढ़ाया illegal plotting का खेल
हाईकोर्ट ने एफएसएल की लिमिट बढ़ाकर 500 मीटर कर दी है। ऐसे में जिन कोलोनाइजर के पास इस लिमिट में जमीन थी वह इललीगल प्लॉटिंग करवा कर प्लॉट के रेट में पैसा वसूल कर रहे हैं। एक बार रुपए जेब में चले गए तो फिर पब्लिक के पास सिवाए खोसला साहब बनने के कुछ भी नहीं बचता। खेती की एक दो लाख की जमीन में प्लाटिंग कराके कोलोनाइजर 10 से 15 लाख रुपए तक अर्न कर लेते हैं। इस काम में एडीए के ग्राउंड लेवल टीम व पुलिस की मिलीभगत से भी इंकार नहीं किया जा सकता है.
खरीदने से पहले इन बातों को जरूर चेक कीजिए.
-प्लॉट खरीद रहे हैं तो वह एरिया किस उपयोग के लिए रिकार्ड में दर्ज है इसको एडीए से चेक जरूर कर लें
-चेक कर लें उस प्लॉटिंग का एडीए से ले आउट प्लान पास है या नहीं
-वह जमीन एफएसएल की लिमिट में तो नहीं आ रही है
-जमीन के एडीए के साथ ही रजिस्ट्री ऑफिस में भी रिकार्ड क्रॉस चेक कर लीजिए.
-कोशिश कीजिए कि रजिस्ट्री के दौरान कैश की बजाए चेक का इस्तेमाल किया जाए, ताकि रिकार्ड में रहे.
इललीगल प्लॉटिंग करके कोलोनाइजर पब्लिक को फंसा लेते हैं। एडीए की डिमॉलिशन ड्राइव चलने के बाद बड़ी संख्या में ऐसे लोग एडीए पहुंच रहे हैं जिन्होंने इन जमीन पर प्लॉट खरीद लिए थे। उन लोगों को बता दिया गया है कि जब तक लेआउट पास नहीं होगा तब तक वहां पर किसी भी तरह का डेवलपमेंट नहीं किया जा सकता है। अभी तक 25 कोलोनाइजर के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई जा चुकी है.
-केके सिंह, संपत्ति अधिकारी एडीए
Report by-Abhishek Srivastava