प्रयागराज (ब्‍यूरो)। युद्ध में निरंतर मिल रही निराश के बीच अपने भाई महाबली कुम्भकर्ण को युद्ध के लिए भेजने के विचार से रावण ने उसको पहले तो भारी परिश्रम कर उसे जगाया। कुल की मर्यादा रखने के लिए उसे रणभूमि में जाने के लिए तैयार किया। घोर संग्राम हुआ। 20 फ़ीट ऊंचे कुम्भकर्ण से राम और वनार वीरों का संघर्ष का अद्भुत, चमत्कारिक दृश्य दर्शकों को प्रभावित करने वाला था। राम के बाणों से कुम्भकर्ण की भुजाएं एक-एक कर कटने, फिर राम के बाण से उसके सिर के धड़ से अलग हो कर गिरने पर दर्शकों ने खूब तालियां बजाई। अब रावण की आशा का केंद्र बिंदु बचा इंद्र पर विजय पा चुका मेघनाथ। उसका लक्ष्मण के साथ युद्ध और लक्ष्मण के प्राण संकट में पड़ गये। उनकी जान बचाने के लिए हनुमान द्रोण पर्वत से संजीविनी बूटी ले आये। कालनेमि, रावण द्वारा भेजा गया कपट मुनि। पहली बार मंचित हुआ यह प्रसंग दर्शकों के लिए कौतूहलभरा रहा। श्री पथरचट्टी रामलीला कमेटी की लीला मेघनाथ के वध के बाद रावण सीता संवाद पर समाप्त हुई।