प्रयागराज (ब्यूरो)।इलाहाबाद विश्वविद्यालय मे बुधवार को गाँधी संगत के अन्तर्गत गँाधी और कला विषय पर विशेष व्याख्यान का आयोजन गांधी विचार एवं शांति अध्ययन संस्थान की ओर से किया गया। इस मौके पर दृष्य कला विभाग के प्रो। अजय जेटली ने कहा कि किसी भी कला में विषय का द्वंद हमेशा रहता है। इसलिए एक कलाकार के लिए विषय की स्पष्ट समझ बहुत जरूरी है। गांधी के जीवन संघर्ष और उससे संबंधित चित्रों को बहुत बनाया गया है। उनपर विपुल साहित्य की रचना हुई है। उनके विचारों से समृद्ध साहित्य भी पर्याप्त मात्रा मे मौजूद है। लेकिन उनके विचारों की कलात्मक अभिव्यक्ति की अल्प मौजूदगी आश्चर्य मे डालती है।

गांधी का चित्रण किया,उनके विचारों का नहीं

उन्होंने कहा कि दुनिया के तमाम प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा गांधी के शरीर को तो चित्रित किया गया, किन्तु उनके विचारों के चित्रण का अभाव है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है। कुछ अपवादों को छोड़ दे तो उनके विचारों को कला मे व्यापक रूप से नहीें उतारा जा सका है। गांधी के चरखा, चश्मा, छड़ी को चित्रित कर कलाकार उनकी उपस्थिति दिखाते हैं। गाँँधी का चरखा हमें ग्रामीण समाज के स्वावलंबन की ओ निर्देशित करता है। कलाओं की एक अंतर्दृष्टि जो गाँधी के पास थी, उसे समझने मे कलाकारों ने बहुत देर की है। गांधी कलाओं के बाकायदा नजदीक रहे है। उनकी दृष्टि कलाओं के प्रति स्पष्ट थी। उनकी सत्य और अहिंसा की दृष्टि ही उनका सौंदर्य थी। गांधी सौंदर्य क नजदीक नहीं थे ये धारणा गलत है। कई उदाहरण है जो उनके कला संबंधी रूचि और प्रभाव को दिखाते है। जैसे प्रसिद्ध चित्रकार नंदलाल बोस की कलात्मक दृष्टि गाँधी के संपर्क मे आने के बाद परिवर्तित हो गई। जिसके बाद उन्होंने 80 सके अधिक पेंटिंग का निर्माण किया जो प्रत्यक्ष रूप से ग्रामीण पृष्ठभूमि से जुड़ी हुई है।

संस्थान के निदेशक प्रोफेसर संतोष भदौरिया ने गांधी के कला संबंधी उन विचारों और दृष्टिकोणों को युवाओं के सामने रखा जो आज बेहद प्रासंगिक है। उन्होंने कहा की आज युवा पीढ़ी के सामने सत्य की पहचान का संकट है। वह विभ्रम की स्थिति मे है। गाँधी का जीवन और विचार युवाओं के लिए इस दृष्टि से सचेत करने वाला है। आज गाँधी की जो छवि हमारे जेहन मे बनी हुई है या बन रही है, वह हमारी अज्ञानता के कारण है। वास्तविकता यह है कि गाँधी ने स्पष्ट कहा है कि जीवन ही कल है। इसे सुंदर बनाना ही किसी भी कला का असल ध्येय होना चाहिए।

संचालन डॉ तोषी आनंद ने व धन्यवाद ज्ञापन डॉ सुरेंद्र कुमार ने किया। प्रोफेसर पीके साहू, डॉ कुमार वीरेंद्र, डॉअभिषेक सिंह, डॉ मृत्युंजय सिंह परमार, राहुल, श्वेता, श्रृष्टि, पंकज, मेहताब सहित इलाहाबाद विश्वविद्यालय के अनेक शोधार्थी व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।