प्रयागराज (ब्यूरो)। वेंटीलेटर मरीज की जान बचाने के लिए होता है। इसके लगने का मतलब यह नही कि मरीज का अब बचना मुश्किल है। इस आम धारणा को सोसायटी से दूर रखने का प्रयास जरूरी है। यह बात एक्सपट्र्स ने रविवार को एमएलएन मेडिकल कॉलेज के एनेस्थीसिया विभाग की ओर से आयोजित सेमिनार में कही। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से आये एनेस्थीसियोलाजी विभाग के प्रोफेसर मोईद अहमद ने काह कि वेंटिलेटर और फेफड़े के बीच के सामंजस्य को स्क्रीन पर ग्राफिक के माध्यम से आसानी से समझा जा सकता है। एनेस्थेटिक डाक्टरों को यही करना भी चाहिए। इससे वेंटिलेटर सेट करने में आसानी होती है।
इस ज्ञान से मरीजों को होगा फायदा
मैकेनिकल वेंटिलेशन यानी कृत्रिम सांस लेने की मशीन, विषय पर विशेषज्ञों ने अपना अध्ययन प्रस्तुत किया। इसमें आइएसए यानी इंडियन सोसायटी आफ एनस्थीसियोलाजिस्ट का भी विशेष सहयोग रहा। मुख्य अतिथि इलाहाबाद हाईकोर्ट की न्यायमूर्ति साधना रानी ठाकुर ने ऐसे आयोजन को महत्वपूर्ण बताते हुए मेडिकल छात्रों और एनेस्थेटिक डाक्टरों से कहा कि मरीजों की जान बचाने में आप सभी का परम प्रयास रहता है। कोशिश करें कि ऐसे सेमिनार सेच्अच्छे सेच्अच्छा ज्ञान प्राप्त हो और उसका किसी जरूरतमंद मरीज पर सदुपयोग हो सके।

वेंटिलेटर के नाम पर डराना गलत
आइएसए के प्रदेश अध्यक्ष प्रो। (डा.) मोईद अहमद ने स्क्रीन पर ग्राफिक्स के माध्यम से वेंटिलेटर के सभी पहलुओं, सभी गतिविधियों और इसके द्वारा मरीज को गंभीर स्थिति से वापस लाने के प्रयासों की तकनीकी जानकारी दी। कहा कि वेंटिलेटर के नाम पर किसी को डराने की बजाए अपने व्यवहार से तीमारदार को संयमित रखें ताकि मेडिकल साइंस और आम जनता के बीच बेहतर समन्वय स्थापित हो सके। सेमिनार में आइएसए के अकादमिक चेयरमैन डा। वेंकटगिरि (केरल), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव डा। नवीन मल्होत्रा (रोहतक, हरियाणा), आइएसए के प्रदेश सचिव संदीप साहू (लखनऊ), प्रयागराज के जिलाध्यक्ष डा। आर के सिन्हा, डा। महेश कुमार (बंग्लुरु), रांची से डा। मोहिब अहमद, दिल्ली से डा। अजय कुमार और डा। रानाजीत, वाराणसी से डा। विक्रम गुप्ता, मथुरा से डा। अंकित सचदेवा और डा। पंकज कुमार शर्मा, कानपुर, आगरा और झांसी से भी एनेस्थीसियोलाजिस्ट आए। इन चिकित्सकों ने अपने संबोधन में कोविड-19 के पहले व बाद फेफड़े की स्थितियों में आए अंतर पर विचार व्यक्त किए। सेमिनार में मोतीलाल नेहरू मेडिकल कालेज के प्राचार्य डा। एसपी ङ्क्षसह और एनेस्थीसिया विभागाध्यक्ष डा। नीलम ङ्क्षसह ने भी अपने विचार व्यक्त किए और अतिथि प्रवक्ताओं का आभार जताया। इस सत्र के बाद स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय के एनेस्थीसिया आइसीयू में वेंटीलेटर के पास डाक्टरों को वेंटिलेटर के सफल संचालन का प्रायोगिक प्रशिक्षण दिया गया।


सौ फीसदी आक्सीजन भेजने की क्षमता
सामान्य रूप से फेफड़ा अधिकतम 21 प्रतिशत प्राकृतिक आक्सीजन खींचकर शरीर को दे सकता है जबकि वेंटिलेटर 100 प्रतिशत आक्सीजन आपके शरीर में भेजने की क्षमता रखता है। फेफड़े और वेंटिलेटर की संरचना लगभग एक जैसी होती है। शरीर के लिए जो काम फेफड़े का का होता है वही वेंटिलेटर भी करता है। फेफड़ा जब आंतरिक अंगों को आक्सीजन देने में असमर्थ हो जाता है तो ही वेंटिलेटर लगाने की जरूरत पड़ती है।