प्रयागराज ब्यूरो । बच्चों में आपराधिक प्रवृत्ति का विकास होना आजकल बड़ी बात नही है। अपने आसपास के माहौल और सोशल मीडिया में दिखाए जाने वाले वायलेंस से वह ज्यादा प्रेरित हो रहे हैं। इसका असर भी समाज में दिखने लगा है। छोटी छोटी बातों पर झगड़ा और जान देने और लेने पर आमादा हो जाना उनके लिए आम बात हो गई है। उमेश पाल हत्याकांड में कम उम्र असद अहमद का शामिल होना इसका एक उदाहरण मात्र है।
हथियारों की तरफ बढ़ रहा आकर्षण
क्रिमिनल इंटेंट का शिकार होने की अहम उम्र किशोरावस्था होती है। इस एजग्रुप के किशोरों में हथियारों और हिंसा के प्रति आकर्षण होना आम बात है। लेकिन इसे अधिक दिनों तक पनपने देना खतरनाक है। विशेषज्ञ कहते हैं कि शुरुआती लक्षणों को ट्रेस कर बच्चों की काउंसिलिंग करना जरूरी है। उन्हें बताना होगा कि हिंसा करने का परिणाम क्या होता है। पुलिस और समाज ऐसे लोगों के साथ कैसा बर्ताव करता है।
एग्जाम्पल वन
करेली के रहने वाले इमरान (काल्पनिक नाम) का 15 साल का बेटा पिछले दिनों अपने दोस्तों के साथ पिकनिक घूमने गया था। वहां पर उसकी दोस्त से लड़ाई हो गई। इस वाकये में उसने दोस्त को ईंट से मारकर सिर फोड़ दिया। इसके पहले भी उसने कई ऐसी लड़ाई की है। इसकी जानकारी होने पर पैरेंट्स ने मनोचिकित्सक संपर्क साधा। फिलहाल उसकी काउंसिलिंग चल रही है।
एग्जाम्पल टू
बेली गांव के रहने वाले बबलू सोनकर (काल्पनिक नाम) की उम्र महज 16 साल है, लेकिन वह दिनरात सोशल मीडिया पर मारधाड़ वाले वीडियो और मूवी देखता है। पिछले दिनों उसने ऐसा किया कि पैरेंट्स के होश उड़ गए। वह सोशल मीडिया पर हथियार लेकर रील बनाने की तैयारी कर रहा था। इसकी जानकारी होने पर पैरेंट्स उसे डॉक्टर के पास ले गए। उसने बताया कि उसे यह सब करने में मजा आता है।
दोस्तों और मोबाइल पर रखें नजर
एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसे मामालों में शक होने पर बच्चे के दोस्तों और मोबाइल पर नजर रखनी जरूरी होती है। यह दोनों काफी करीब होत हैं। अगर मोबाइल की गैलरी में ऐसा कुछ मिलता है तो बच्चे को समझाना जरूरी है। अगर वह बात बात उग्र होता है या मारपीट करने लगता है तो यह चिंताजनक है। संगत का असर सबसे गहरा होता है। इसलिए दोस्तो के क्रियाकलाप पर नजर रखना जरूरी होता है।
वर्जन
बच्चों को अधिक आजादी देना ठीक नही है। मोबाइल दिया है तो उसकी मानीटरिंग करना जरूरी है। बहुत अधिक जेब खर्च नही दिया जाना चाहिए। क्योंकि अधिक पैसे से नशा और हथियार खरीदना आसान हो जाता है।
नितीश पांडेय, अभिभावक
बच्चे की हरकतों पर नजर बनाए रखिए। कभी कभी वह चोरी छिपे कई ऐसे काम करता है जो सही नही होते हैं। मारपीट, अपशब्द बोलने की अधिक शिकायतें आएं तो गंभीरता से लेना चाहिए। जरूरत पडऩे पर बच्चो ंको सही गलत के बारे में समझाना जरूरी।
सुभाष चंद्र
नाबालिग बच्चों में भी अपराध की प्रवृत्ति बढ़ रही है। बात बात पर हिंसक होना उनके लिए आम बात है। कई बार अभिभावकों को बच्चों की करतूतों की चलते कोर्ट के चक्कर लगाने पड़ते हैं। कानून में हर उम्र अपराध के लिए सजा है।
दीपक मिश्रा, अधिवक्ता
आजकल जैसा माहौल है, उसमें बच्चों का क्रिमिनल इंटेंट होना स्वाभाविक है। ओटीटी प्लेटफार्म पर अश्लीलता के साथ हिंसा को परोसा जा रहा है। सोशल मीडिया पर भी ऐसे रील शेयर किए जा रहे हैं। घर का माहौल भी अशांत रहने का असर बच्चों पर पड़ता है। ऐसे में अभिभावकों को एलर्ट रहना जरूरी है। किशोर उम्र में अगर बच्चे को समझा दिया गया तो आगे चलकर वह नही भटकता है।
डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक