प्रयागराज ब्यूरो । कहीं आपका लाडला या लाडली आइडेंटिटी क्राइसिस का शिकार तो नही है। यह पता लगाना काफी टफ हो सकता है, लेकिन लक्षणों पर ध्यान रखने से बीमारी का पता चल जाता है। डॉक्टर्स की माने तो यह वर्तमान सिनेरियों में किशोर और युवाओं में पाई जाने वाली यह कॉमन बीमारी है। समय रहते पता चल जाने पर इसका इलाज भी संभव है। अधिक देर होने पर आइडेंटिटी क्राइसिस किसी के जीवन पर काफी विपरीत प्रभाव डाल सकती है।
अक्सर आते हैं ऐसे पेशेंट
काल्विन अस्पताल के मनौवैज्ञानिक केंद्र में अक्सर ऐसे मरीज आते हैं जिनकी उम्र 12 से 20 साल के बीच होती है और ये आइडेंटिटी क्राइसिस के शिकार होते हैं। उनके लक्षणों को देखकर डॉक्टर्स उनकी काउंसिलिंग शुरू करते हैं। बताया जाता है कि प्रत्येक किशोर में यह बीमारी छिपी होती है लेकिन 20 फीसदी केसेज में लक्षण दिखने लगते हैं। तब इसका इलाज बेहद जरूरी हो जाता है। यूं मान लें किन समाज या माता पिता अपने बच्चों से जो एसपेक्ट करते हैं और बच्चा जो सोचता है। इन दोनों के बीच का अंतर जितना अधिक होगा, बच्चा उतना ही आइडेंटिटी क्राइसिस का शिकार होगा।
इन लक्षणों पर दीजिए ध्यान
- बच्चे का खामोश बने रहना और किसी से इंटरेक्शन नही करना।
- थोड़ा सा चैलेंज आने पर उसका घबरा जाना और अनावश्यक तनाव लेना।
- सेल्फ कांफिडेंस का तेजी से कम हो जाना
- उसका अक्सर अकेले रहना और अंदर से खालीपन महसूस करना
- किसी से जल्दी दोस्ती नही करना और बात बात पर चिड़चिड़ाना
- सामूहिक कार्यक्रमों में शामिल नही होना और भीड़ से लगातार दूरी बनाना
ये कारण करते हैं बीमार
- बॉडी में होने वाले हार्मोनल चेेंजेस और शरीर की बनावट में किशोरावस्था में बदलाव होना
- परिवार और आसपास के लोगों का जीवन पर अधिक हस्तक्षेप या दबाव
- किसी घटना या दुर्घटना का दिल में गहरी छाप छोड़ जाना
- स्कूलों में बार बार चिढ़ाए जाने या टीचर द्वारा पनिश किए जाने से
- घर का माहौल बेहतर नही होने पर बार बार तनाव होने पर
इन तरीकों से होगा बचाव
- पैरेंंट्स को बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम स्पेंड करना होगा
- उन्हें खुद से निर्णय लेना सिखाइए, उनके कांफिंडेंस को बढ़ाने की कोशिश करें
- सबके सामने उनको इग्नोर मत करें, उनको स्पेशल बताएं
- दूसरे के बच्चों के टैलेंट से अपने बच्चे की तुलना मत करें
- बच्चों की रुचि का मजाक मत बनाएं, उन्हें प्रोत्साहित करते रहें
न्यूक्लियर फैमिली में अधिक समस्या
डॉक्टर्स का कहना है कि आइडेंटिटी क्राइसिस की समस्या सबसे ज्यादा न्यूक्लियर फैमिली में देखने को आती है। जिन घरों में माता पिता दोनों वर्किंग है और बच्चों को समय नही दे पात हैं, बच्चे भी मनोरंजन के लिए मोबाइल फोन और सोशल मीडिया पर आश्रित होते हैं वहां पर इसके लक्षण जल्दी दिखने लगते हैं। घर परिवार के बड़े बुजुर्गों के साथ नही रहने और फैमिली फंक्शंस से दूर रहना भी इसका अहम कारण बन रहा है।
वर्जन-
देखा जाए तो प्रत्येक किशोर में आइडेंटिटी क्राइसिस की समस्या होती है। यह वह स्टेज है जब बॉडी के साथ बच्चों के मानसिक और सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव होता है। इस दौरान अगर उन्हे ंपरिवार और दोस्तों का साथ नही मिलता है तो वह हीनभावना का शिकार होकर खुद की पहचान से बचने लगते हैं। कई बार खुद पहचान बनाने के लिए अजीबो गरीब हरकत भी करते हैं।
डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक