प्रयागराज ब्यूरो । सीट कन्फर्म न होने से ट्रेन का टिकट कैंसिल हो चुका था। टिकट बुक करने वाली एजेंसी आईआरसीटीसी ने प्लेन से टिकट बुक कराने का ऑफर दिया। कस्टमर ने टिकट बुक करा लिया। पैसेंजर बोर्डिंग पास लेने पहुंचा तो पता चला कि उसका टिकट हुआ ही नहीं है क्योंकि आईआरसीटीसी से फ्लाइट कंपनी को टिकट का पैसा ट्रांसफर ही नहीं हुआ है। यह सुनकर शाक्ड रह गये पैसेंजर ने मजबूरी में प्लेट का टिकट तत्काल में लिया और मुंबई तक का सफर किया। लौटने के बाद उसने आईआरसीटीसी को सबक सिखाना तय किया। वह पूरी डाक्यूमेंट लेकर उपभोक्ता फोरम पहुंचा और केस दायर कर दिया। फोरम ने आवेदक की तरफ से पेश किये गये एवीडेंस पर भरोसा किया और माना कि आईआरसीटीसी से चूक हुई। इसके आधार पर फोरम ने आईआरसीटीसी के जीएम को आदेश दिया है कि वह तत्काल में लिये गये टिकट की सम्पूर्ण धनराशि का भुगतान करे। फोरम ने इसके साथ आठ फीसदी सामान्य ब्याज और मुकदमे के खर्च के दो हजार रुपये का भुगतान करने का आदेश दिया है। इसके लिए कंपनी को फोरम ने दो महीने का वक्त दिया है।

क्या था पूरा मामला
वाद दायर करने वाले दिनेश प्रताप सिंह झूंसी के आरके पुरम हवेलिया के निवासी हैं। उन्होंने जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग को बताया कि जरूरी काम से उन्हें मुंबई जाना था। इसके लिए उन्होंने एसी तृतीय श्रेणी का ट्रेन टिकट बुक कराया था। जिस दिन उन्होंने टिकट बुक कराया एसी बर्थ की वेटिंग लिस्ट पर उनका एक नंबर था। जिस दिन उन्हें सफर करना था उस रोज तक स्टेटस वेटिंग ही शो करता रहा। उसी दिन शाम को करीब 5.24 बजे परिवादी के मोबाइल पर एक मैसेज आया। इसमें चार्ट तैयार हो जाने की सूचना दी गयी थी। संदेश था कि पीएनआर नंबर डालकर चेक कर लें। बता दें कि रेलवे ट्रेन के रवाना होने से करीब चार घंटे पहले ही फाइनल चार्ट जारी करता है। उन्हें स्टेटस चेक करने के साथ लास्ट मिनट में फ्लाइट का आप्शन चूज करने का ऑफर दिया गया था। इसके लिए उन्हें अपनी आइडी से लॉगइन करना था। इस पर उन्होंने उसी दिन फ्लाइट का टिकट लखनऊ से मुंबई के लिए बुक करा दिया। इस टिकट का पैसा परिवादी के अकाउंट से टैक्स सहित 3,484.43 कट गए। बताया कि यह कटा हुआ पैसा विपक्षी के खाते में ट्रांसफर हुआ। इसके बाद वह निश्चिंत हो गया कि ट्रेन नहीं तो फ्लाइट ही सही वह समय से मुंबई पहुंच जाएगा।
नहीं दी गई सूचना
दूसरे दिन वह गो-एयर इंडिया के काउंटर नंबर चार पर बोर्डिंग पास बनवाने के लिए पहुंचा। वहां पता चला कि परिवादी का पीएनआर नंबर निरस्त हो गया है। इस बात की सूचना उन्हें नहीं दी गई। इसके बाद उनके द्वारा गो-एयर इंडिया लखनऊ के काउंटर पर अचानक निरस्त हुए टिकट का कारण पूछा गया। काउंटर पर मौजूद मिले विनोद श्रीवास्तव नामक कर्मचारी ने उनको बताया कि आईआरसीटीसी ने टिकट के पैसों का पेमेंट गो-एयर इंडिया को नहीं किया। इसी के चलते उनके फ्लाइट का टिकट स्वत: कैंसिल हो गया।
कॉल सेंटर पर की बात
दिनेश ने वाद में बताया कि इसके बाद उन्होंने आईआरसीटीसी के कॉल सेंटर पर बात की तो बताया गया कि पैंसा का भुगतान किया था पर एयरवेज कंपनी ने एक्सेप्ट करने से इंकार कर दिया। परिवादी ने आयोग को बताया कि कर्मचारी विनोद ने सलाह दी कि मुंबई जाना है तो फ्लाईट का दूसरा टिकट बुक करा लें। चूंकि मुंबई जाना जरूरी था लिहाजा उनकी सलाह को उचित समझते हुए दिनेश ने 17 हजार 882 रुपये देकर फ्लाइट का टिकट तत्काल में बुक करा लिया। इस पूरे सफर में इतनी मशक्कत के पीछे उन्होंने महाप्रबंधक इंडियन रेलवे कैटरिंग एण्ड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड को दोषी ठहराया। सुनवाई करते हुए आयोग के अध्यक्ष व सदस्य द्वारा पर्याप्त साक्ष्य व सुबूतों के आधार पर दिनेश के पक्ष में फैसला सुनाया।

वक्त जरूर लगा मगर मिला इंसाफ
जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग के अध्यक्ष मो। इब्राहीम और सदस्य प्रकाश चंद्र त्रिपाठी द्वारा केस को गंभीरता सुनने के बाद विपक्षी महाप्रबंधक इंडियन रेलवे कैटरिंग एण्ड टूरिज्म कार्पोरेशन लिमिटेड को दोषी पाया।
फैसला सुनाते हुए अध्यक्ष व सदस्य ने विपक्षी को कहा कि निर्णय की तिथि से दो महीने के अंदर परिवादी यानी दिनेश प्रताप सिंह को 17 हजार 882 रुपये मय आठ प्रतिशत साधारण वार्षिक ब्याज सहित भुगतान करे।
साथ ही विपक्षी को आदेश दिया गया कि वे परिवादी को मानसिक एवं शारीरिक क्षतिपूर्ति के रूप में पांच हजार रुपये तथा वाद व्यय के रूप में दो हजार रुपये का भुगतान सुनिश्चित करें।
अध्यक्ष ने विपक्षी को चेतावनी देते हुए कहा कि आदेश का अनुपालन करते हुए दिए गए पैसों का साक्ष्य उनके सामने निर्धारित समयावधि में प्रस्तुत किया जाय।