प्रयागराज (ब्यूरो)। एनएफएचएस यानी नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे की पांच साल पुरानी रिपोर्ट में सेक्स रेशियो 1034 था। मतलब एक हजार पुरुषों पर इतनी महिलाएं थीं। इससे पहले यह रेशियो 1000 से कम था.हालिया सर्वे में यह बढ़कर 1083 हो गया है। इसके कई कारण है। लोगों का लिटरेसी रेट बढ़ गया है। प्रसव पूर्व लिंग की पहचान पर कड़े कानूनों के चलते रोक लगने लगी है। इससे भ्रूण हत्या के मामले भी कम हुए हैं। इन सबके चलते महिलाओं की संख्या एक हजार पर पुरुषों से अधिक हो गई है जो सोसायटी के लिए गर्व की बात है।
प्राइवेट अस्पतालों में अधिक सीजर मामले
सर्वे में एक और चौकाने वाला तथ्य सामने आया है। सरकारी अस्पतालों के मुकाबले प्राइवेट अस्पतालों में अधिक सीजेरियन हो रहे हैं। यानी आपरेशन के जरिए अधिक बच्चे पैदा किए जा रहे हैं। इस मामले में प्राइवेट अस्पतालों के संचालकों का कहना है कि हम लोग डिलीवरी के दौरान रिस्क लेने से डरते हैं। यही कारण है कि आपरेशन के जरिए जल्द से जल्द डिलीवरी करा दी जाती है। वहीं सरकारी अस्पतालों के सीजर मामलों में जरा भी सुधार नही हुआ है। पांच साल पहले की सर्वे रिपोर्ट में यह प्रतिशत 4.6 था और हालिया सर्वे में भी वही पर टिका हुआ है। प्राइवेट अस्पतालों में सीजर मामले 39 फीसदी से बढ़कर 43.4 हो गए हैं।
खून की कमी से जूझ रहे 50 फीसदी बच्चे
पांच साल से कम एज के पचास फीसदी बच्चे एनीमिक पाए गए हैं। सर्वे के दौरान उनके शरीर में खून की कमी पाई गई है। यह सर्वे 6 माह से 59 माह के बीच के बच्चों में किया गया था। 15 से 49 साल उम्र की नान प्रेगनेंट 46.5 फीसदी महिलाएं भी एनीमिक मिली हैं। 43 फीसदी ऐसी महिलाएं हैं जिनकी उम्र 15 से 49 साल के बीच है और वह प्रेगनेंट हैं, यह एनीमिक मिली हैं। एक और चिंता की बात यह कि 15 से 19 साल की 49 फीसदी युवतियों भी खून की कमी मिली है। जबकि 15 से 49 साल की महिलाओं में यह प्रतिशत 46.4 है।
अनफिट हुई हैं महिलाएं
सर्वे में एक और खुलासा हुआ है। प्रयागराज की 25.5 फीसदी महिलाएं ओवरवेट यानी मोटापे की शिकार हैं। यह चिंताजनक आंकड़ा है क्यों कि पिछले सर्वे में यह आंकड़ा महज 18 फीसदी ही था। एक्सपट्र्स का कहना है कि महिलाएं अपने स्वास्थ्य को लेकर जागरुक नही है इसकी वजह से उनका वजन बढ़ता जा रहा है। इसी तरह बच्चों में भी कुपोषण का साया बच्चों को भी परेशान कर रहा है। 32.6 फीसदी ऐसे बच्चे हैं जिनकी उम्र पांच साल से कम है और वह अंडरवेट हैं। यह कुपोषण की समस्या से जूझ रहे हैं। पिछले सर्वे में यह प्रतिशत 43.4 था। एक और चिंता की बात है कि महज 24.8 फीसदी ही ऐसे बच्चे हैं जिनको जन्म के एक घंटे के भीतर मां का दूध मिल गया था। पिछले सर्वे में यह प्रतिशत 34 था। राहत की बात यह रही कि 53.4 फीसदी बच्चों को छह माह की उम्र तक मां का दूध भरपूर पीने को मिला है। पिछले सर्वे मुकाबले इस मामले में बीस फीसदी की बढ़ोतरी हुई है।
बाल विवाह से नहीं छूट रहा पीछा
जिले में 67.7 फीसदी महिलाएं साक्षर हैं। बावजूद इसके 13 फीसदी ऐसी महिलाएं हैं जिनकी एज 20 से 24 साल के बीच है ओर उनकी शादी 18 साल से कम उम्र में हो गई थी। इससे उनके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है। दो फीसदी ऐसी महिलाएं मिली हैं जिनकी एज 15 से 19 साल के बीच है और वह सर्वे के दौरान प्रेगनेंट मिलीं। इससे पता चला कि इनकी शादी 18 वर्ष की एज के पहले हो गई थी। अपनी माहवारी के दौरान महिलाओं में साफ सफाई की प्रवृत्ति जरूर बढ़ी है। पिछले सर्वे में 15 से 24 साल के बीच की महिलाओं में मैंस्ट्रुअल साइकिल के दौरान हाइजीनिक प्रोटेक्शन लेने वालों का प्रतिशत 54 था और जो इस बार बढ़कर 79.9 हो गया है।
फैमिली प्लानिंग में 15 से 49 साल की महिलाओं की स्थिति
फैमिली प्लानिंग का कोई तरीका यूज करने वाली महिलाएं- 63 फीसदी
आधुनिक तरीके इस्तेमाल करने वाली महिलाएं- 45.6
नसबंदी कराने वाली महिलाएं- 31.3
नसबंदी कराने वाले पुरुष- 0.2 फीसदी
पिल्स यूज करने वाली महिलाएं- 1.4 फीसदी
कंडोम यूज करने वाले पुरुष- 8.6 फीसदी
इंजेक्शन यूज करने वाली महिलाएं- 0.4 फीसदी
सर्वे में ये तथ्य भी आए सामने
कितनी पापुलेशन तक पहुंच रही बिजली- 95 फीसदी
पेयजल स्त्रोत के साथ रहने वाली पापुलेशन- 95.8 फीसदी
सैनिटेशन फैसिलिटी के साथ रहने वाली पापुलेशन- 59.9
साफ कुकिंग फ्यूल युक्त पापाुलेशन- 45.1 फीसदी
आयोडाइज्ड नमक का यूज करने वाली पापुलेशन- 96.8 फीसदी
कितनी पापुलेशन के पास है हेल्थ इंश्योरेंस या फाइनेंशियल स्कीम- 20.6 फीसदी