प्रयागराज (ब्यूरो)।पुलिस और प्रशासन का भारी भरकम सहयोग लेकर खाली कराये गये इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के हालैंड हॉल छात्रावास में एक बार फिर से अवैध छात्रों को ही बसा दिया गया है? यह सवाल इसलिए उठ खड़ा हुआ है क्योंकि नए आवंटियों को जो फीस जमा होने की रसीद दी गयी है उस पर कमरा 30 अप्रैल तक के लिए ही आवंटित किया जाना मेंशन है। बाकी सब मौखिक है। यह स्थिति यहां रहने वाले छात्रों के लिए टेंशन का एक कारण भी है। वैसे उन्हें हॉस्टल के अधीक्षक से भरोसा मिला है कि रसीद का सच चाहे जो हो नव आवंटियों से हॉस्टल खाली नहीं कराया जायेगा। नेक्स्ट सेशन में भी उन्हें इसका एडवांटेज दिया जायेगा।
पिछले सत्र में लेट हुआ था प्रवेश
एकेडमिशन सेशन 2022-23 कोरोना के चलते काफी प्रभावित हुआ था। हालांकि इस दौरान कोरोना का कोई बड़ा इंपैक्ट नहीं था लेकिन एजुकेशनल सेशन 2020-21 और 2021-22 के दौरान इसका इंपैक्ट था। इसके चलते इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एडमिशन की प्रक्रिया पिछले सेशन में बुरी तरह से प्रभावित हो गयी थी। प्रवेश की प्रक्रिया ही नवंबर-दिसंबर तक चलती रही। प्रवेश की प्रक्रिया पूरी होने के बाद फरवरी में यूनिवर्सिटी से एफीलिएटेड हॉस्टल में छात्रों को आवंटन शुरू हुआ। कमरा आवंटित हो गया लेकिन छात्र इसमें काबिज नहीं हो पाये क्योंकि इस पर अवैध कब्जा था। संयोग से इस चक्कर में पूरा सेशन ही निकल गया।
रसीद पर 30 अप्रैल ने दी टेंशन
फरवरी में छात्रों से हॉस्टल की फीस जमा करायी गयी तो रसीद भी मिली थी। तब तक एकेडमिक सेशन के आठ महीने बीत चुके थे। इसके बाद भी छात्रों से फीस का पूरा पेंमेट लिया गया था। कमरे का पूरा पेमेंट करने वाले छात्रों को रसीद मिली तो उस पर अंकित था कि इसकी वैलिडिटी 30 अप्रैल तक ही है। संयोग से 30 अप्रैल को भी कमरा आवंटित नहीं हो पाया। इसे लेकर सवाल उठाये जाने लगे तो यूनिवर्सिटी प्रशासन ने हालैंड हाल में वाशआउट कैंपेन चलाने का फैसला लिया। 20 मई को पुलिस के साथ आरएएफ की मौजूदगी में पुलिस ने हॉस्टल के सभी कमरों को खाली करा लिया। उस समय यूनिवर्सिटी प्रशासन की तरफ से तर्क दिया गया था कि मेंटेनेंश का काम कराया जायेगा। लेकिन, करीब एक पखवारा बीतने से पहले ही दो दर्जन से अधिक छात्रों को हॉस्टल में कमरा आवंटित कर दिया गया। उन्हें रुम में कब्जा भी दिला दिया गया था। तब से छात्र यहां रह तो रहे हैं लेकिन हर दिन उन्हें एक सवाल परेशान करता था कि उनके पास इस समय हॉस्टल में रहने का कोई प्रमाण तो है नहीं। रसीद देखने के बाद तो कोई भी उन्हें अवैध घोषित कर सकता है। यह समस्या मिली तो दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने अपने स्तर पर इसकी पड़ताल करने का फैसला लिया और यूनिवर्सिटी प्रशासन से इसका जवाब भी लिया। जो जानकारी निकलकर सामने आयी वह वर्तमान समय में हॉस्टल में रह रहे छात्रों के लिए राहत देने वाली है। वैसे रिपोर्टर ने इस पर हॉस्टलर्स से बात की तो उन्होंने सीधे सामने आने से इंकार कर दिया। उन्हें डर था कि नाम या फोटोग्राफ सामने आ जाने पर उनका नुकसान हो सकता है।