सिस्टमेटिक तरीके से काउंसलर और एनजीओ करते हैं काम

जहां चाह, वहां राह। यही फॉर्मूला अप्लाई होता है तंबाकू से तौबा करने की इच्छा रखने वालों पर। तंबाकू से मुक्ति पाना मुश्किल है। लेकिन, ठान लिया जाय तो इससे दूरी बना लेना कठिन भी नहीं है। काउंसलर्स तो ऐसा ही बताते हैं।

स्टेप बाई स्टेप छूटती है तंबाकू

शहर में तीस फीसदी जनसंख्या इस नशे का शिकार हैं। इनमें से दस फीसदी युवा हैं। अब सवाल यह उठता है कि इनकी लत कैसे छुड़ाई जाए। इसके लिए सरकारी अस्पतालों में बकायदा काउंसलर्स को अपाइंट किया गया है। एनजीओ भी इस दिशा में काम कर रहे हैं। काउंसलर्स का कहना है कि लोगों को स्टेप बाई स्टेप नशे से दूर किया जाता है।

इन बातों का रखना होता है ध्यान

तंबाकू का नशा करने वालों की साइकोथेरेपी की जाती है। काउंसलर्स उनसे बात करते हैं।

तंबाकू छोड़ने पर उनके बिहेवियर चेंजिंग को रीड किया जाता है।

फैमिली के माहौल को दखा जाता है कि घर में कितने और लोग तंबाकू लेते हैं।

नशा छोड़ने वाले व्यक्ति का टुबैको क्विट मैनेजमेंट को चेक किया जाता है।

अगर उसे बार-बार लत लग रही है तो वह कैसे इसे डील कर रहा है।

- जिस गली से सिगरेट खरीदता है वहां से नही गुजरने ाके कहा जाता है।

45 दिन तक एडिक्ट की लगातार मानीटरिंग की जाती है।

फिर उसे अगले एक साल तक माह में एक बार बुलाया जाता है।

बहुत से लोग तंबाकू का सेवन करने के बाद कंफेशन भी करते हैं। उनको दोबारा ऐसा नही करने को कहा जाता है।

इन्होंने बताई आप बीती

केस नंबर वन- बैंक में काम करने वाले शाहिद बताते हैं कि तीन साल पहले तक चेन स्मोकर थे। एक के बाद एक सिगरेट पीना उनकी आदत थी। वाइफ के कहने पर उन्होंने इस नशे से दूरी बनाने का फैसला किया। एक काउंलसर के पास वह गए। वह बताते हैं कि छह माह तक उन्होंने तंबाकू के बारे में सोचना और बात करना एकदम छोड़ दिया। शुरुआत के तीन माह तक उन्हे रह रहकर तेज तलब लगती थी। लेकिन बाद में यह सिलसिला खत्म हो गया। अब उन्हें स्मोकिंग में कोई इंटरेस्ट नही है।

केस नंबर दो- साफ्टवेयर इंजीनियर पवन भी चेन स्मोकर रहे हैं। तीन बार उन्होंने कोशिश की लेकिन वह सिगरेट नही छोड़ पाए थे। फिर उन्होंने एक फंडा अपनाया। वह सिगरेट अपनी जेब में रखते थे लेकिन उसे जलाते नही थे। कई बार बुझी हुई सिगरेट पर होठ से लगाकर वापस डिब्बी में डाल देते थे। यह उन्होंने एक माह तक किया। धीरे धीरे उनका ध्यान नशे से हटने लगा।

केस नंबर तीन

इसी तरह स्कूल गोइंग 17 साल के उदभव को दोस्तों ने स्मोकिंग की लत लगवा दी। जब घर वालों कोपता चला तो उन्होंने इसका विरोध किया। लेकिन लत छूट नही रही थी। फिर परिवार वाले उन्हें काउंसलर के पास ले गए। उन्हें समझाया गया कि स्मोकिंग अच्छी लत नही है। इससे बचकर रहिए। परिवार की सख्ती और प्यार का नतीजा रहा कि पिछले तीन माह से उन्होंने स्मोकिंग नही की है।

हमारे यहां कई तरह के प्रोग्राम साल भर चलते हैं। हजारों लोगों की काउंसिलिंग की जाती है। उनको तंबाकू छोड़ने के तरीके बताए जाते हैं। लंबे समय तक नशा करने वालों को तमाम रोगों का सामना भी करना पड़ता है।

डॉ। वीके मिश्रा, नोडल एनसीडी सेल प्रयागराज

हमारे पास तंबाकू छुड़वाने का पूरा मैकेनिज्म है। स्टेप बाई स्टेप लोगों को इसके लिए तैयार करना होता है। बावजूद इसके लोगों की खुद की विल पावर स्ट्रांग नही है तो वह तंबाकू से दूरी नही बना पाते हैं।

प्रमोद, काउंसलर

काल्विन अस्पताल

स्मोकिंग छोड़ना एक मनोवैज्ञानिक चैलेंज है। जब आप लंबे समय तक स्मोकिंग नही करते हैं तो परेशान होने लगते हैं। माइंड को तत्काल निकोटीन चाहिए होती है। बस इसी स्टेज को जो पार कर गया वह तंबाकू स खुद को बचा ले जाता है।

डॉ। राकेश पासवान, मनोचिकित्सक

हमारे यहां हैवी ड्रग यूजर्स को भर्ती किया जाता है। तंबाकू लेने वालों की काउंसिलिंग की जाती है। उनसे शपथ पत्र भरवाने के साथ जागरुक किया जाता है। तमाम सार्वजनिक ड्राइव भी चलाई जाती है।

विकास

जन जागरण विकास समिति