प्रयागराज (ब्यूरो)। हीमोफीलिया दो प्रकार का होता है। टाइप ए को क्लासिक हीमोफीलिया के रूप में जाना जाता है। यह ब्लड क्लाटिंग फैक्टर की कमी के कारण होता है जबकि टाइम बी को क्रिसमस रोग भी कहा जाता है। यह क्लॉटिंग फैक्टर एक्स बनने में होने वाली कमी के कारण होता है। अक्सर देखा जाता है कि लोगों के नाक, दांत और मसूढ़ों से ब्लीडिंग होती है। स्किन के नीचे भी ब्लीडिंग होती है। साथ ही इंजेक्शन लेने के बाद खून निकलना। जोड़ों में ब्लीडिंग होने से प्रभावित जोड़ों में सूजन या दर्द होना, इसमें ज्यादातर कोहनी, घुटने और टखने प्रभावित होते हैं।

इन लक्षणों पर भी ध्यान देना जरूरी

- बार-बार नाक से खून बहना जिसे रोकना मुश्किल हो जाना

- मुश्किल डिलीवरी के बाद नवजात के सिर से खून दिखाई देना

- पाचन प्रणाली में ब्लीडिंग होने से उल्टी, मल या पेशाब में खून दिखना।

- मस्तिष्क में ब्लीडिंग होने के कारण सिरदर्द, उल्टी या दौरे की समस्या हो सकती है

ऐसे भी हो सकता है हीमोफीलिया

- खून जमने की प्रक्रिया को कंट्रोल करने वाली जीन में गड़बड़ी होना पहला कारण है। खून के थक्के जमना एक ऐसी प्रक्रिया है, जो किसी खुले घाव को बंद करके ब्लीडिंग को रोक देती है। हीमोफीलिया ए और बी का कारण बनने वाली जीन में म्यूटेशन का लगभग एक तिहाई हिस्सा माता-पिता से ही प्राप्त होता है और बाकी का म्यूटेशन अपने आप हो जाता है। यहां तक कि जिन लोगों के परिवार में किसी को हीमोफीलिया की समस्या नहीं है, उन्हें भी यह रोग हो सकता है। जिन लोगों को बिना किसी फैमिली हिस्ट्री के हीमोफीलिया हो जाता है, उस स्थिति को एक्वायर्ड हीमोफीलिया कहा जाता है।

खुद को ऐसे सेफ रखें मरीज

- नोन-स्टेरॉयडल एंटीइंफ्लेमेटरी दवाएं न लें

- जोड़ों पर ज्यादा दबाव न पड़े इसलिए नियमित रूप से व्यायाम करें और उनकी देखभाल रखें

अपना पहचान पत्र साथ रखें, जिसमें आपका ब्लड ग्रुप लिखा हो

यात्रा के दौरान विशेष सावधानी बरतें

हेपेटाइटिस ए और बी का टीका जरूर लगवाएं, इससे रोकथाम किया जा सकता है।

यदि किसी को हीमोफिलिया है तो उसे किसी भी तरह ब्लीडिंग होने पर तुरंत इलाज करना चाहिए।

पुरुष अधिक होते हैं प्रभावित

एसआरएन अस्पताल में हीमोफीलिया के रोगियों का इलाज किया जाता है। इस बीमारी में खून को जमाने वाले फैक्टर बनना कम हो जाता है। यह लीवर में तैयार होता है। ऐसे में हीमोफीलिया के रोगियों को एसआरएन अस्पताल में इस फैक्टर की डोज दी जाती है। बताते हैं कि महिलाएं इस बीमारी का करियर बनती हैं और पुरुष अधिक प्रभावित होते हैं। अगर समय पर इलाज न हो तो ब्लीडिंग से मरीज की मौत भी हो सकती है।

रोगियों को स्किन और आंखों में रैशेज की शिकायत होती है। मरीजों का ब्लड बहना बंद नही हो रहा है तो उन्हें तत्काल इलाज की जरूरत होती है। कभी कभी हड्डियों के जोड़ में भी ब्लड भर जाता है। इसलिए जरूरी है कि डॉक्टर से मिलकर सलाह और दवाएं लेते रहें।

डॉ। मंसूर, बेली अस्पताल प्रयागराज