प्रयागराज ब्यूरो । बेली अस्पताल में कमीशनखोरी चरम पर है। डॉक्टर खुलेआम पर्चे पर ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं। इसकी वजह से अस्पताल कैंपस में खुला जन औषधि केंद्र पुन: बंद होने की कगार पर आ गया है। यहां दिनभर मक्खियां भिनभनाती रहती हैं, जबकि नजदीक खुले एक मेडिकल स्टोर पर दिनभर दवा खरीदने वालों की लाइन लगी रहती है। खुद मरीजों का कहना है कि पर्चे पर लिखी दवाएं मेडिकल स्टोर पर मिलती हैं, इसलिए हम जन औषधि केंद्र नही जाते हैं।
दिनभर में दो हजार की सेल भी नही
बेली अस्प्ताल कैंपस में प्रधानमंत्री जन औषधि केंद्र छह माह पहले पुन: खेाला गया है। इसके पहले कोरोना काल में इसे बंद कर दिया गया था। केंद्र संचालक का कहना है कि अस्प्ताल में रोजाना हजारों मरीज आते हैं। सभी को पूरी दवाएं नही मिलती हैं। इसी को देखते हुए सरकार ने जन औषधि केंद्र खोलने की योजना को चालू किया है। जिससे मरीजों को 70 फीसदी डिसकाउंट के साथ सस्ती दवाएं मिल जाएं। लेकिन हालात यह है कि दिनभर में दो हजार की बिक्री भी नही होती है।
ब्रांड लिखना नियमों का उल्लंघन
सरकार ने स्पष्ट नियम बनाया है कि मरीज के पर्चे पर सरकारी अस्पताल के डॉक्टर दवा का फार्मूला लिखेंगे। जिससे आर्थिक रूप से कमजोर मरीज जन औषधि केंद्रों से जेनेरिक दवाएं लेकर इलाज करा सकें। लेकिन डॉक्टर्स फार्मा कंपनियों की कमीशन के चक्कर में फंसकर पर्चे पर दवाओं के ब्रांड नेम लिख रहे हैं। उन्हे ऐसा करने के लिए अस्पताल में आने वाले एमआर मजबूर करते हैं। यह ओपीडी टाइम में आकर डॉक्टर्स को कंपनी की दवा लिखने पर मोटा कमीशन देने का लालच देते हैं।
मरीज कहता है कि हमें यही दवा चाहिए
अगर पर्चे पर दवा का ब्रांड नेम लिखा जाएगा तो मरीज उसे ही खरीदता है। जन औषधि केंद्र के संचालक विकास सोनकर का कहना है कि हमारे पास फार्मूले के नाम से जेनरिक दवाएं मिलती हैं। मरीज आ भी जाता है तो वह इसे खरीदने से मना कर देता है। वह दवा का ब्रांड नेम वाली दवा की मांग करता है। ऐसे में हम उसे सस्ती दवा नही दे पाते हैं। गिने चुने मरीज ही इतने जागरुक हैं कि वह जेनेरिक दवाएं खरीद लेते हैं।
कार्रवाई के डर से सादी पर्ची पर लिखापढ़ी
अस्पताल में कुछ डॉक्टर्स ऐसे भी हैं जो अस्पताल में दवाएं नही होने पर सरकारी पर्चे पर ब्रांडेड दवा का नाम लिखने से डरते हैं। ऐसे में वह सादी पर्ची पर इसका नाम लिखकर मरीज को देते हैं। इससे पकड़े जाने पर उन पर कार्रवाई की संभावना कम हो जाती है। अस्पताल प्रशासन से इस बारे में पूर्व में शिकायतें भी की जा चुकी हैं लेकिन अभी तक कोई एक्शन नही लिया गया है।
ऐसे नही करते हैं 70 फीसदी डिसकाउंट का दावा
एक्सपर्ट बताते हैं कि ब्रांडेड दवाओं के मुकाबले जेनेरिक दवाओं के दाम 70 फीसदी तक कम होते हैं। इसका कारण है कि जेनेरिक दवा अपने साल्ट के नाम से बिकती है। जबकि कंपनी इसी साल्ट को अपना नाम देकर उसका प्रचार प्रसार कर उसे ऊंचे दाम पर बेचती है। दोनों दवाओं का असर लगभग एक जैसा होता है। एग्जाम्पल के तौर पर हम बात करें तो ब्रांडेड में पेट के कीड़े मारने की 10 टेबलेट 80 रुपये में मिलेगी और जेनेरिक में यह दवा छह रुपए की है। मलेरिया किट ब्रांडेड में 100 रुपए और जेनेरिक में 29.30 रुपए की है।

दोनों दवाओं के दाम में अंतर

दवा का नाम जेनेरिक की कीमत ब्रांडेड की कीमत (रुपए में)

मलेरिया किट 29.30 50
ग्लूकोज 10 प्रति पाउच 20
बुखार 6 प्रति 10 टेबलेट 18
कीड़े मारने की दवा 6 प्रति 10 टेबलेट 90
गैस के लिए 5 प्रति 10 टेबलेट 23
ब्लड प्रेशर 7 प्रति 10 टेबलेट 20
मल्टीविटामिन 46 प्रति 20 टेबलेट 70
डायजीन 6 प्रति 10 टेबलेट 20
दर्द निवारक जेल 22 प्रति 30 ग्राम 29
दर्द निवारक स्प्रे 48 60
सेनेट्री पेड 10 रुपये प्रति 10 पीस 30
अस्पताल में मौजूद नही कई दवाएं
सरकारी अस्पतालों में दवाओं की सप्लाई सरकार द्वारा ड्रग कारपोरेशन के जरिए की जाती है। अक्सर देखा जाता है कि दर्जनो दवाओं का स्टाक नही मिल पाता है। ऐसे में डॉक्टर्स मजबूरी में बाहर की दवाएं पर्चे पर लिखते हैं। लेकिन उनको सख्त निर्देश है कि वह फार्मूला या साल्ट का नाम ही लिखेंगे। जिससे मरीज जन औषधि केंद्र से सस्ती दवाएं ले सकें। लेकिन इसकी आड़ में डॉक्टर्स खुलेआम ब्रांडेड दवाएं लिख रहे हैं।

हमारा काम है जन औषधि केंद्र का लाइसेंस देना। अस्पताल के डॉक्टर ब्रांडेड नेम लिखेंगे तो जेनेरिक दवाएं कौन खरीदेगा। इसके लिए अस्पताल प्रशासन को डॉक्टर्स को जानकारी देनी चाहिए।
गोविंद गुप्ता, डीएलए प्रयागराज
मैने तो पहले से ही कह रखा है कि डॉक्टर ब्रांडेड दवाएं पर्चे पर नही लिखेंगे। केवल फार्मूला लिखा जाएगा। लेकिन कुछ लोग नही मान रहे हैं। इसके लिए मीटिंग कर सभी को चेतावनी जारी की जाएगी।
डॉ। शारदा चौधरी, सीएमएस बेली अस्पताल