प्रयागराज (ब्यूरो)। इन वाहनों में बच्चों की सुरक्षा कैसे होगी, ये सवाल आरटीओ से है। स्कूली बच्चों की सुरक्षा को लेकर आरटीओ कार्यालय ने स्कूली बसों के खिलाफ जांच अभियान चला रखा है मगर जिले में अस्सी फीसदी बच्चे ई रिक्शा, टेंपो और मारुति वैन से स्कूल जाते हैं। इनका कोई विकल्प भी नहीं है। स्कूली बसें हैं पर पर्याप्त नहीं है। ऐसे में स्कूली वाहनों के लिए बनाए गए मानकों का पालन इन वाहनों पर कैसे होगा, इस सवाल को लेकर आरटीओ कार्यालय के अफसर चुप्पी साध जा रहे हैं। फिलहाल अफसरों का कहना है कि सामान्य वाहन के तौर पर इन वाहनों की चेकिंग की जाती है। मगर सवाल घूम फिरकर वहीं पहुंच जा रहा है कि जब इन वाहनों में मानक का पालन नहीं हो सकता है तो फिर बच्चों की सुरक्षा कैसे होगी।
इनका कोई विकल्प नहीं
हर स्कूल के सामने ई रिक्शा, टेंपो और मारुति वैन की लाइन देखी जा सकती है। इन वाहनों से बच्चे कैसे ले जाए जाते हैं इसको भी खुली आंख से देखा जा सकता है। फौरी तौर पर इसे गार्जियन की अनदेखी कही जा सकती है, मगर समस्या गार्जियन के सामने भी है। वह आखिर करे तो क्या। उसे वाहन की सुविधा नहीं मिल रही है तो वह मोहल्ले में आने वाले इन छोटे स्कूली वाहन से ही अपने बच्चे को स्कूल भेजने के लिए मजबूर है। अब इन वाहनों से बच्चे चाहे लटक कर स्कूल पहुंचे या फिर भूसे की तरह भरकर।
नहीं पड़ता है पर्ता
स्कूल से बच्चों लाने ले जाने वाले ई रिक्शा, वैन और टेंपो चालकों का अपना दर्द है। ई रिक्शा चालक अरविंद का कहना है कि स्कूल में समय की पाबंदी होती है। सुबह और दोपहर वक्त से स्कूल पहुंचना पड़ता है। आठ से दस बच्चे ई रिक्शा पर न बैठाएं तो फिर पर्ता नहीं पड़ता है। बच्चों को लेने में सुबह दो घंटे और छोडऩे में दो घंटा दोपहर में लग जाता है। 12 सौ से ज्यादा मांगने पर गार्जियन आनाकानी करते हैं। महीने में दस से बारह हजार रुपये की इनकम स्कूली बच्चों से होती है। इतने में ई रिक्शा की किश्त देने के बाद घर खर्च के लिए अलग से मेहनत करनी पड़ती है। अगर आठ से कम बच्चे बैठाया जाए तो फिर पर्ता नहीं पड़ता है।
गलियों में नहीं जा सकती हैं बसें
तमाम मोहल्लों में गलियों में बसें नहीं जा सकती हैं। ऐसे में गार्जियन अपनी सुविधा देखते हुए ई रिक्शा, वैन या फिर टेेेंपो के सहारे अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं। क्योंकि छोटे वाहन बच्चों को लेने और छोडऩे गलियों में घर के सामने पहुंच जाते हैं।
स्कूलों के पास नहीं है बसें
तमाम स्कूलों के पास तो अपनी बसें ही नहीं हैं। क्योंकि बसें महंगी आती हैं। जिन स्कूलों के पास बस है भी वह पर्याप्त नहीं हैं। इन स्कूलों में पढऩे वाले बच्चों की संख्या को देखते हुए बसें पर्याप्त संख्या में नहीं होने से गार्जियन के सामने मजबूरी है कि वह ई रिक्शा, वैन और टेंपो का सहारा ले।
सामान्य वाहन के तौर पर होती है जांच
स्कूली ई रिक्शा, वैन और टेंपो की जांच सामान्य वाहन के तौर पर होती है। आरटीओ के एक अफसर का कहना है कि इन वाहनों का रजिस्ट्रेशन स्कूली वाहन के तौर पर नहीं हो सकता है। ऐसे में इन वाहनों की फिटनेस, इंश्योरेंस की जांच होती है। स्कूली वाहनों के मानक को लेकर ऐसे वाहनों का चालान नहीं किया जा सकता है।
छोटे वाहनों का नहीं है ब्योरा
आरटीओ के पास छोटे स्कूली वाहनों का कोई ब्यौरा नहीं है। जबकि अस्सी फीसदी बच्चे इन्हीं वाहनों से स्कूल आते जाते हैं। अनुमान के मुताबिक आठ हजार से अधिक छोटे वाहन स्कूली बच्चों को लाते ले जाते हैं।
स्कूली बच्चों के वाहनों के मानक केवल बसों पर लागू होते हैं। छोटे वाहनों पर नहीं। ऐसे में छोटे स्कूली वाहनों की जांच सामान्य वाहन के तौर पर होती है।
जीएन मिश्रा, एआरटीओ प्रवर्तन