प्रयागराज ब्यूरो । मानिकपुर से आए हीरालाल को शुक्रवार को बेली अस्पताल में डॉक्टर को दिखाना था। वह रजिस्ट्रेशन कराने के बाद नौ नंबर ओपीडी में पहुंचे। वहां पर डॉक्टर ने कुछ दवाएं पर्चे पर लिखीं और कुछ दवाओं का नाम एक सादी पर्ची पर लिखकर दिया। उन्होंने कहा कि यह दवाएं अस्पताल में नहीं मिलेंगी। आप बाहर से खरीद लीजिए। इसी तरह राजापुर से आए राजेश भी टाइफाइड का इलाज कराने 27 नंबर ओपीडी में गए। यहां पर डॉक्टर की गैर मौजूदगी में असिस्टेंट ने उनको सादी पर्ची में दवाओं का नाम लिखकर बाहर से खरीदने को कहा। जब राजेश दुकान पर गए तो वहां पता चला कि दवाएं काफी महंगी हैं और वह नही खरीद सकते। बता देंकि अस्पताल में आने वाले दर्जनों मरीजों के साथ रोजाना यही कहानी होती है। कई दवाएं उपलब्ध नही होने से उन्हें बाहर से महंगी दवाएं खरीदने की सलाह डॉक्टर देते हैं।
केवल 220 दवाएं ही मौजूद
सरकार की ओर से बेली अस्पताल को जो लिस्ट दी गई है उसमें 286 तरह की दवाओं का नाम शामिल है लेकिन सप्लाई महज 220 दवाओं की हुई है। 66 तरह की दवाएं अभी अस्पताल के पास नही हैं। इनमें से अधिकतर दवाएं गंभीर बीमारियों की महंगी हैं। इनमें हार्ट, किडनी, लीवर, टाइफाइड, बीपी आदि दवाएं शामिल हैं। मार्केट में इन दवाओं का दाम बहुत ज्यादा है। अस्पताल में अधिकतर जेनेरिक दवाएं ही दी जाती हैं जबकि डॉक्टर्स ब्रांडेड और काम्बिनेशन वाली दवाएं प्रिफर करते हैं। यह दवाएं भी मार्केट में महंगे दामों पर मिलती हैं।
उठा रहे हैं मौके का फायदा
अस्पताल में पूरी दवाएं नही होने का फायदा कुछ डॉक्टर उठा रहे हैं। वह पर्ची पर ब्रांडेड दवाओं के नाम लिख रहे हैं। जबकि नियमानुसार उनको दवा का साल्ट नेम लिखना चाहिए, जिससे यह दवाएं मरीज एक तिहाई दाम पर जन औषधि केंद्र से खरीद सके। लेकिन ऐसा नही हो रहा है। रिपोर्टर के पूछने पर जन औषधि केंद्र संचालक ने बताया कि डॉक्टर साल्ट की जगह ब्रांड नेम लिख रहे हैं। ऐसे में मरीजों को मार्केट से ही दवा खरीदना पड़ता है।
लावारिस स्ट्रेचर का कौन है मालिक
दूर दराज से आने वाले मरीजों की सुविधा के लिए अस्पताल के गेट नंबर दो पर स्ट्रेचर का वितरण सेंटर बनाया गया है। इसकी जिम्मेदारी कर्मचारी को सौंपी गई है। लेकिन रिपोर्टर ने पाया कि स्ट्र्रेचर को जंजीर से बांधा गया था और वहां कोई व्यक्ति मौजूद नही था। इस दौरान एक व्यक्ति स्ट्रेचर की तलाश में परेशान था, लेकिन कर्मचारी नही होने पर वह निराश होकर चला गया। उसने रजिस्ट्रेशन काउंटर के पास से स्ट्रेचर लेना चाहा तो उसे रिजर्व कहकर टाल दिया गया।
पौन घंटे पहले खाली हो गई ओपीडी
वैसे तो अस्पताल का टाइम सुबह आठ से दोपहर दो बजे तक का है, लेकिन बेली अस्पताल के डॉक्टर पौन घंटे पहले ही कुर्सी से गायब हो जाते हैं। जबकि पेशेंट उनका दो बजे तक इंतजार करते हैं और फिर निराश होकर घर लौट जाते हैं। शुक्रवार को रिपोर्टर ने पाया कि दोपहर सवा एक बजे तक डॉ। जीके अग्रवाल, डॉ। प्रशांत पांडेय, डॉ। यूपी पांडेय सहित सर्जरी के तमाम डॉक्टर अपनी ओपीडी में नही थी। इसी तरह 27 नंबर ओपीडी में डॉ। आरसी मौर्या नदारद थे। उनकी जगह असिस्टेंट और कर्मचारी पर्चे पर दवा लिख रहे थे।
लिखा है लेकिन मिलता नही ठंडा पानी
भीषण गर्मी में मरीजों को अस्पताल परिसर में ठंडे पान के लिए भटकना पड़ रहा है। कई जगह पर वाटर कूलर लगा है लेकिन वह काम नही कर रहा है। सी ब्लॉक में भर्ती मरीजों ने बताया कि नजदीक का वाटर कूलर काम नही कर रहा है इसलिए हमें इमरजेंसी तक पानी के लिए चलकर जाना पड़ता है।