प्रयागराज (ब्‍यूरो)। कहने के लिए हिन्दी सरल होती है। पर सीटेट के पेपर में हिन्दी ने छात्रों को इतना गोल गोल घुमाया कि छात्र चक्कर खा गए। सीटेट परीक्षा में हिन्दी ने छात्रों की कठिन परीक्षा ली तो मैथ्स से सिर के ऊपर से गुजर जाने वाले बाउंसर जैसा फी कराया। ढाई घंटे के पेपर में तमाम छात्रों का समय उत्तर सोचते ही गुजरा। राहत की बात रही कि माइनस मार्किंग नहीं थी। ऐसे में छात्रों ने जैसे तैसे ओएमआर शीट भरने में गुरेज नहीं किया। ठंड के बावजूद परीक्षा में छात्रों की उपस्थिति भरपूर रही। परीक्षा देकर निकले छात्रों ने पेपर कठिन होने की बात कही। बहुत कम छात्र ऐसे दिखे जिनके चेहरे पर संतोष का भाव रहा हो।

सुबह सात बजे से चला रेला
शहर की सड़कों पर सुबह सात बजे से छात्रों का रेला निकल पड़ा।
जिले में 136 परीक्षा केंद्र बनाए गए थे। जिसमें 78 हजार छात्रों ने परीक्षा दी।
द्वितीय पाली में सीटेट प्राइमरी सेक्शन का पेपर हुआ। हिंदी के पेपर में कई गद्यांश ऐसे रहे जिसमें से विकल्पीय सवाल पूछे गए।
छात्रों प्रश्नों का जवाब देने के लिए मैटर कई बार पढऩा पड़ा।
साथ ही शिक्षक छात्र संबंधों को लेकर सामाजिक अध्ययन से भी तमाम सवाल रहे।
सामाजिक विज्ञान पार्ट में कई प्रश्न इतिहास और जीएस से भी संबंधित रहे।
सवालों को इतरा घुमा फिरा कर किया गया था कि जवाब के लिए टिक करने में छात्रों की कलम रुक जा रही थी।
इसी तरह मैथ के सवालों ने ठंड में दिमाग को गर्मी का एहसास करा दिया।

एक सवाल सबसे सरल
पूरे पेपर में केवल एक सवाल सबसे सरल रहा वो भी द्वितीय पाली में।
मैथ में प्रश्न पूछा गया कि किस अंक में आठ जोड़ देने से वह दो गुना हो जाता है।
इसका जवाब है आठ। संभवत: यही ऐसा प्रश्न था, जिसे सभी छात्रों ने हल कर लिया होगा।
वरना ठंड में सीटेट के पेपर ने छात्रों के होश फाख्ता कर दिए।

पेपर ज्यादा कठिन नहीं था। मैथ की वजह से दिक्कत हुई। मैथ के कई प्रश्न टफ रहे। पेपर ठीक हुआ है। हालांकि बहुत ज्यादा नंबर नहीं मिलेंगे। मैं बहुत आशांवित नहीं हूं।
शिवम, सिराथू

मेरा पेपर बहुत अच्छा गया। हिन्दी थोड़ी कठिन थी। बाकी अन्य सब्जेक्ट को लेकर कोई ज्यादा दिक्कत नहीं हुई। लगता है मेरिट में आने के लिए अभी और मेहनत की जरुरत है।
चंदा यादव, स्वराज नगर

पेपर ज्यादा कठिन नहीं था। ढाई घंटे का पेपर था। जबकि प्रश्नों के हिसाब से इसका समय तीन घंटे होना चाहिए। मैथ की वजह से थोड़ा टाइमिंग में दिक्कत हुई।
शुभम,

सीटेट का पेपर बहुत स्तरीय रहा। न ज्यादा कठिन था न सरल। जिसने भी सामाजिक विज्ञान और मैथ को पढ़ रहा होगा, उसे ज्यादा कठिनाई नहीं रही होगी। यूपी बोर्ड वालों के लिए वैसे भी अंग्रेजी हमेशा से कठिन रही है।
राजेश कुमार