प्रयागराज (ब्‍यूरो)। डॉ। धनंजय चोपड़ा ने संस्मरण शेयर करते हुए कहा कि इलाहाबाद के रचनाकारों की एक पीढ़ी ऐसी भी रही है, जिसने कथाकार शेखर जोशी के सानिध्य में रहकर ही बहुत कुछ सीखा है। हम सब जब लूकरगंज में उनके आवास पर पहुंचते थे तो न केवल किताबें मिलती थीं, बल्कि नई रचनाओं को रचने के टिप्स भी मिल जाया करते थे। वे जब इलाहाबाद छोड़कर दिल्ली बसने जा रहे थे, तब भी कुछ किताबें मुझे देकर गए थे। उनके घर पहुंचना और ईजा (शेखर दादा की पत्नी) के हाथों की बनी कचौडिय़ां व पहाड़ी पीले रंग वाला खीरे का रायता खाने को आनंद बार-बार यादा रहा। मेरी जब-जब कोई कहानी छपी शेखर दादा का फोन अवश्य आया। वे सहज जीवन जीने की एक महत्वपूर्ण पाठशाला थे। हमारे समय में शेखर दादा के साथ कथाकार अमरकांत और मार्कंडेय की बड़ी मोहक त्रयी थी। हम सब इनके आकर्षण में बंधे रहा करते थे। हर मुलाकात में इनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता था। आज इस कथा त्रयी का अंतिम छोर भी हमसे छूट गया।
लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानते थे
सीएमपी पीजी कॉलेज के पूर्व अध्यक्ष करन सिंह परिहार ने कहा कि शेखर जोशी कथा लेखन को दायित्वपूर्ण कर्म मानने वाले सुपरिचित कथाकार थे। उनकी कहानी दाज्यू पर बाल-फिल्म सोसायटी द्वारा फिल्म का निर्माण किया गया। कोसी का घटवार, साथ के लोग, हलवाहा, नौरंगी बीमार है, मेरा पहाड़, डागरी वाला, बच्चे का सपना, आदमी का डर, एक पेड़ की याद आदि कृतियां पहाड़ी इलाकों की गरीबी, कठिन जीवन संघर्ष, उत्पीडऩ को जीवंत प्रस्तुति है।