प्रयागराज ब्यूरो । अनचाही कोख से जन्में दर्जनों मासूमों की किलकारी बाल संरक्षण गृह में गूंज रही है। अपनों से ठुकराए गए इन मासूमों का खयाल यहां के कर्मचारी एक मां और बाप की तरह रख रहे हैं। इनकी सरपरस्ती में पल रहे हर बच्चे की एक दर्द भरी कहानी है, पर उनकी यह वेदना शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। बस, उन मासूम धड़कों की वह टीस केवल महसूस ही की जा सकती है। जिला प्रोवेशन विभाग की मानें तो पाले जा रहे इन बच्चों में ज्यादातर कहीं न कहीं लावारिश हालत में पाए गए हैं। इंसानियत व मानवता के दुश्मन जन्मदाता उन्हें छोड़कर अपना पीछा समाज के सामने भले छुड़ा लिए हों। मगर, उन मासूमों की हर आह से निकलने वाली अनसुनी बददुआएं उनका पीछा शायद ही कभी छोड़ेंगी। भला हो विभाग का, जो इन पर अपनों जैसा प्यार लुटा रहा है।

अपनों का प्यार और दे रहे दुलार
इन मासूमों को यूं छोड़कर जाने वाले वाले शैतानी सोच के लिए वे लोगों का यह गुनाह नहीं बल्कि दो है। पहला यह कि जब उन बच्चों की चाह नहीं थी कि उन्हें जन्म क्यों दिए? जब जन्म दे ही दिए तो उन्हें यूं लावारिश छोड़कर मानवीय संवेदनाओं को खून करने क्या जरूरत थी। खैर, मौजूदा समय में ऐसे लोगों के गुनाहों की सजा भुगतने वाले 71 मासूमों का सहारा बाल संरक्षण गृह बन गया है। यहां गूंज रही उनकी मासूम किलकारी को संरक्षित करने में विभागीय लोग कोई कसर नहीं छोड़ रहे। कर्मचारी से अपनों का प्यार और दुलार पाकर यहां बच्चे खुलकर खिलखिला रहे हैं। यह इसे संयोग कहा जाय या फिर ईश्वरीय महिमा। किसी को
बिन मांगे बच्चे मिल रहे तो उसे उनकी कद्र नहीं, और तमाम महिलाएं भटक रही हैं कि उनकी सूनी गोद में ईश्वर एक बच्चा दे दें। इन लावारिश बच्चों को अपनाने की कतार में दर्जनों नहीं सैकड़ों लोग हैं। कुछ ऑनलाइन आवेदन कर रखे हैं तो कुछ करने करने के लिए तरीकों की तलाश में भटक रहे हैं। बाल संरक्षण गृह में इस समय जिन 71 मासूमों की परवरिश उनमें 30 बालक और करीब 41 बालिकाएं बताई जा रही हैं।


चाहिए गोद तो जानिए प्रक्रिया
बाल सुधार गृह में पल रहे अनाथ मासूम बच्चों को गोद लेने की तमन्ना रखते हैं तो इसके लिए नियमों की जानकारी जरूरी है।
सेंट्रल एडाप्शन रिसोर्स अथारिटी यानी कारा में पहले ऑनलाइन आवेदन करना होगा, यह एडाप्शन की पहली सीढ़ी है।
आवेदन के लिए गूगल पर जाकर कारा साइड को ओपन करना होगा, साइट खुलते ही एक फार्म स्क्रीन पर सामने आ जाएगा।
फार्म में दिए गए हर कॉल को अच्छी तरह भरते हुए आवेदन को अपने बारे में मांगी गई सारी जानकारी लिखना होगा।
फार्म के साथ आवेदक को आईटीआर, आधार कार्ड, मैरिज शर्टीफिकेट, इनकम का जरिया मंथली कमाई आदि बताने होंगे।
फार्म फिल होने के बाद कारा जांच के लिए जिला प्रोवेशन विभाग या सम्बंधित अन्य विभाग की टीम को भेजेगा।
यह टीम लगाए गए कागजात से लेकर आवेदक की पूरी कुंडली टटोलने के बाद रिपोर्ट फिर कारा को भेज देगी।
इसके बाद आवेदन कारा के मानक पर खरा उतरा तो सम्बंधित व्यक्ति को आनलाइन तीन बच्चों की तस्वीर दिखने लगेगी।
मगर यह पता नहीं चलेगा कि वह बच्चा किस जिले के और किस सेंटर पर मौजूदा समय में है, तस्वीर देखकर आवेदन बच्चे को पसंद करेंगे।
बच्चे को पसंद करने के बाद ऑनलाइन ही अपनी कारा को बताना होगा। विभागीय लोग बताते हैं कि इसके बाद मजिस्ट्रेट के सामने पेश होना होगा।
फिर नामित मजिस्ट्रेट के आदेश पर ही आवेदक चुने गए बच्चे को अडाप्ट कर पाएगा। आवेदक इच्छानुसार 18 वर्ष तक के बालक को गोद ले सकते हैं।


तीन साल तक विभाग रखता है नजर
ऐसा नहीं कि गोद लेने वाले शख्स को बच्चा देने के बाद विभाग आंखें बंद कर लेगा। नियमानुसार गोद लिए गए बच्चे पर कारा के आदेश पर जिला प्रोबेशन अधिकारी की टीम नजर रखेगी। हर छह माह पर एक बार टीम उस बच्चे से बात करेगी। उसकी शिक्षा से लेकर हर परवरिश की गुणवत्ता आदि देखा जाएगा। इस बीच बच्चे के हक व भविष्य पर तनिक भी टीम को संशय हुआ तो गोद लेने वाले शख्स पर कार्रवाई तो होगी ही। शर्त तोडऩे के आरोप में एडाप्शन प्रक्रिया कैंसिल भी हो सकती है। बच्चे की यह निगरानी कारा और विभाग उसके बालिग होने तक सख्ती के साथ करता रहेगा।


बाल संरक्षण गृह में लावारिश मिले बच्चों की परवरिश बेहतर तरीके से की जा रही है। टाइमली दूध व खाना के साथ उनके हेल्थ की जांच भी कराई जाती है। हम विभाग के लोग उन बच्चों के अपने हैं। यही मानकर सभी उनका खयाल रखते हैं।
सर्वजीत सिंह, जिला प्रोवेशन अधिकारी