प्रयागराज (ब्यूरो)। हालांकि एक साल के भीतर ही आपसी विवाद शुरू हो गया। क्योंकि लॉ एंड आर्डर पर काम करने वाली मायावती ने कुंडा के निर्दलीय विधायक राजा भैया पर आतंकवाद की धारा लगाकर जेल भेज दिया था। इस तरह से अन्य बाहुबली विधायकों के खिलाफ भी मायावती ने एक्शन लिया तो बीस विधायकों ने राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री से मिलकर मायावती की सरकार बर्खास्त करने की मांग कर दी थी। इससे नाराज विधायक
अपना इस्तीफा लेकर राज्यपाल के पास पहुंच गए थे। कहा जाता है कि राजा भैया को जेल भिजवाने के मायावती के फैसले से खुद केशरीनाथ खुश नही थे। हालांकि मायावती के कैबिनेट भंग करने की सिफारिश से भी वह खुश नही थे। वह नही चाहते थे डेढ़ साल के भीतर ही दोबारा विधानसभा चुनाव हो। फिर भी मायावती ने अपना इस्तीफा राज्यपाल को सौंप दिया था। हालांकि यहां पर बीजेपी की सियासी गणित काम आई और केशरीनाथजी के नेतृत्व में राज्यपाल को समर्थन वापसी का पत्र पहले दे दिया। इससे विधानसभा भंग होने से बच गई।
सपा ने बना ली थी सरकार
इसके बाद सपा की मुलायम सिंह की सरकार बन गई। इस बार केशरीनाथ ने सपा को बहुमत साबित करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया था। वही बसपा अपने उन 13 विधायकों की सदस्यता रद्द करने की मांग लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट पहुंच गई थी जो सपा में शामिल हुए। दूसरी तरफ 37 विधायकों के अलग पार्टी की मांग से मायावती परेशान हो गई। केशरीनाथ ने तत्काल विभाजन की मान्यता दे दी और इससे दल बदल कानून लागू नही हुआ। उनके इस फैसले को भी कोर्ट में बसपा ने चुनौती दी। इस तरह से 2004 तक सपा की सरकार ने शासन किया। इसी साल लोकसभा चुनाव में भाजपा की हार के बाद केशरीनाथ को भी अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा था।