प्रयागराज (ब्यूरो)। बता दें महाशिवरात्रि माघ मेला का आखिरी स्नान पर्व होता है। इस पर्व पर स्नान के बाद माघ मेला पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है। पुरोहित कहते हैं कि भगवान शिव और पार्वती के मिलन का पर्व महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। यह पर्व इस बार मंगलवार को है। मान्यता है कि महाशिवरात्रि पर भगवान शिव के पूजन, अर्चन और हवन से भक्तों की सकल मनोकामना सिद्ध होती है। महाशिवरात्रि पर रुद्राभिषेक कराने वालों को भगवान शिव वांछित फल प्रदान करते हैं। इन्हीं धार्मिक मान्यताओं के चलते आज भोर से ही भक्तजनों की संगम और अन्य गंगा स्नान घाटों पर जबरदस्त भीड़ होगी। शहर के मनकामेश्वर, नाबवासुकी, सोमेश्वर महादेव, अक्षय तीर्थ मंदिर और पंडिला महादेव मंदिरों बहुतायत की संख्या में भक्तजन दर्शन पूजन को पहुंचते हैं। इन प्रसिद्ध मंदिरों और संगम माघ मेला क्षेत्र में होने वाली भीड़ को देखते हुए पुलिस अलर्ट मोड में है। सुरक्षा और ट्रैफिक व्यवस्था को लेकर प्लान तैयार किए गए हैं। भक्तजन माघ मेला क्षेत्र में छह घाटों पर स्नान कर सकेंगे। श्रद्धालुओं की सुविधा के को देखते हुए प्रशासन द्वारा 650 शौचालय स्थापित किए गए हैं।

ज़ानिए इन मंदिरों की मान्यताएं

मनकामेश्वर मंदिर
मुगल बादशाह अकबर किला के पास यमुना किनारे भगवान शिव का दरबार मनकामेश्वर मंदिर के नाम से मौजूद है। पुरोहित बताते हैं कि मंदिर में मौजूद शिव लिंग की स्थापना त्रेतायुग में भगवान राम के द्वारा स्थापित की गई थी। वनवास जाते समय प्रभु राम यहां लक्ष्मण और मां सीता के साथ अक्षयवट का पूजन करके विश्राम किए थे। स्कंद पुराण और पद्म पुराम व कामेश्वर पीठ का वर्णन किया गया है। इस शिवालय में भगवान दक्षिणमुखी हनुमान, भैरव बाबा, यक्ष भगवान भी विराजमान है। मान्यता है कि यहां भगवान शिव के दर्शन और पूजन से भक्तों की मनोकामना निश्चित रूप से पूर्ण होती है।

नागवासुकी मंदिर
गंगा नदी के किनारे दारागंज में स्थित नागवासुकी मंदिर भी सदियों पुराना है। पुरोहितों की मानें तो इस शिवालय का उल्लेख पद्म पुराण के पाताल खण्ड और श्रीमद्भागवत में भी मिलता है। इस मंदिर का इतिहास समुद्र मंथन से कनेक्ट है। बताते हैं कि समुद्र मंथन में नागवासुकी का रस्सी के रूप में प्रयोग किया गया था। मंथन के वक्त नागवासुकी के शीर में रगड़ से जलन उत्पन्न हो रहा था। जब मंथन समाप्त हुआ तो नागवासुकी मंद्राचल पर्वत चले गए थे। फिर भी जलन नहीं रुकने पर भगवान विष्णु ने उन्हें प्रयाग जाकर सरस्वती जल में स्नान का आदेश दिए थे। विष्णु भगवान के कहने पर नागवासुकी भगवान यहां आए थे। मान्यता है कि मंदिर में नागवासुकी के दर्शन से शरीर के सारे जलन कष्ट नष्ट हो जाते हैं।


महा भारत काल का पंडिला मंदिर
सोरांव तहसील स्थित फाफामऊ से करीब तीन किलो मीटर दूर मंडिला महादेव मंदिर स्थित है। बताते हैं कि मंदिर में मौजूद शिवलिंग की स्थापना भगवान श्रीकृष्ण के कहने पर पाण्डव के द्वारा स्थापित की गई थी। भगवान शिव की स्थापना के बाद पण्डवों ने यहां भगवान की पूजा और आराधना की थी। भगवान शिव यहां पर पांचों भाइयों को मनोकामना सिद्धि का वरदान किए थे। महाशिवरात्रि पर यहां भारी संख्या में भक्तजन पहुंचते हैं। गंगा स्नान के बाद शिवालय में पूजन अर्चन और रुद्राभिषेक करते हैं।


कोटेश्वर शिवमंदिर
शिवकुटी एरिया में गंगा किनारे स्थित कोटेश्वर शिव मंदिर का भी अपना एक इतिहास है.पुजारी गनेशपुरी गोस्वामी बताते हैं कि यहां भगवान शिव की स्थापना भवान राम के द्वारा की गई थी। उनकी मानें तो लंका विजय करके प्रभु राम वापस लौटे तो भारजद्वाज आश्रम गए। भरद्वाज ऋषि ने उनके पहुंचने पर अपने पांव हटा लिए थे। पूछने पर ऋषि ने राम से कहा था कि आप पर ब्राम्हण हत्या का आरोप है.भगवान राम के उपाय पूछने पर भरद्वाज ऋषि ने कोटि शिवलिंग स्थापित करके पूजा करने को कहा था। इसके बाद भगवान राम यहां आए और शिव स्थापना करके पूजा किए। मान्यता है कि यहां जलाभिषेक से सहस्र शिवलिंग के पूजन का फल प्राप्त होता है।

शिव कचहरी शिवकुटी
शिवकुटी स्थित भव्य शिव कचहरी की स्थापना वर्ष 1965 में राणा जर्नल पद्रमजंग बहादुर ने कराई थी। मंदिर के पुजारी दीपक त्रिपाठी कहते हैं कि इस मंदिर में 290 शिवलिंग स्थापित है। यह संख्या स्थापना के वक्त की है, जो मंदिर के दस्तावेज में अंकित है। यहां दर्शन पूजन के लिए आने वाले भक्तजन एक साथ 290 शिवलिंग के दर्शन करते हैं। ऐसी मंदिर शायद ही देश में कहीं पर होगी। कहते हैं कि आज तक कोई भक्त शिवलिंग की गिनती नहीं कर सका है। कहते हैं कि जितनी भी बार गिनती की जाती है, शिवलिंग कम या ज्यादा हो जाते हैं।