प्रयागराज (ब्यूरो)। अप्रैल का महीना खास तौर से उन पैरेंट्स के लिए बेहद चैलेंजिंग हो गया है जिनके बच्चे छोटे है। जिनको स्कूल में एडमिशन कराना पड़ा है उनकी एक तिहाई से अधिक सैलरी इसी में खर्च हो गयी है। अब पैरेंट्स को समझ ही नहीं आ रहा है कि वे करें भी तो क्या? स्कूल मैनेजमेंट कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है। जबरन कुछ बोलने की कोशिश करने पर बच्चे को स्कूल से बाहर कर दिये जाने की धमकी मिलती है। मजबूर पैरेंट्स स्कूल मैनेजमेंट या टीचर से रिश्ता खराब नहीं करना चाहते क्योंकि उन्हें डर सताता है कि बच्चे की स्कूल में केयर न बंद हो जाय। फीस बढ़ोतरी से बुरी तरह से टूट चुके पैरेंट्स का कहना है कि स्कूल प्रशासन मनमानी तरीके से फीस बढ़ोतरी कर रहे हैं। प्रशासन का उन पर कोई जोर नही है। इस बार स्कूलों ने 15 से 25 फीसदी तक फीस बढ़ाया है। जिनके एक से अधिक बच्चे हैं, उनके लिए प्राइवेट स्कूलों में बच्चों को भेजना मुश्किल साबित हो रहा है।
सैलरी की एक तिहाई हो गई फीस
केस वन
नाम- रोहित केसरवानी
मासिक आय- 30 हजार
स्कूल में पढऩे वाले बच्चों की संख्या- 2
दोनों की परमंथ फीस- 9 हजार
केस टू
नाम- संजय तिवारी
मासिक आय- 36 हजार
स्कूल में पढऩे वाले बच्चों की संख्या- 3
तीनों की परमंथ फीस- 13 हजार
स्कूलों से मिलता है दो टूक जवाब
रोहित और संजय जैसे कई अभिभावक हैं जिनके बच्चे शहर के नामचीन प्राइवेट स्कूलों में पढ़ रहे हैं। इन स्कूलों ने इस बार फिर 15 से 25 फीसदी तक फीस बढ़ा दी है। इसकी जानकारी तब हुई जब पैरेंट़्स बच्चे का नए क्लास में एडमिशन कराने गए। फीस रसीद में बढ़ी हुई फीस देखकर उनके होश उड़ गए। जब स्कूल प्रशासन से बात की तो उन्होंने दो टूक जवाब दिया। उनका कहना था कि 2019 के बाद से अब बढ़ाया गया है। स्कूल का खर्च, टीचर्स की सैलरी और बिल्डिंग रखरखाव कहां से आएगा। जबकि सच तो यह है कि लास्ट ईयर भी स्कूलों ने दस फीसदी तक फीस में इजाफा किया था।
घर के खर्चों में करनी होगी कटौती
पैरेंट्स का कहना है कि केवल फीस की बात हो तो दिक्कत है। इसके अलावा नए सेशन में बच्चों की कॉपी किताब, बस्ता, जूते, ड्रेस का खर्च भी बजट बिगाड़ रहा है। पैरेंट्स का कहना है कि घर के दूसरे खर्च में कटौती करना पड़ेगा। जिनके दो या तीन बच्चे स्कूल में पढ़ रहे हैं उनके लिए अधिक दिक्कत है। कुछ पैरेंट्स ने अप्रैल में पढ़ाई के खर्च को देखते हुए तीन माह से पहले सेविंग शुरू कर दी थी। इसके चलते उन पर फीस का प्रेशर कम पड़ा है। पैरेंट्स को नही पता था कि फीस इतनी अधिक बढ़ जाएगी।
इन स्कूलों की फीस को लगे पंख
सेंट जोसफ कॉलेज में 2022 में क्लास 8 की अप्रैल से जून की फीस 12342 रुपए थी, जो इस बार बढ़कर 14300 हो गई है
सेंट जोंस इलाहाबाद में क्लास 5 की जनवरी से मार्च की फीस 11580 रुपए थी, जो इस बार बढ़कर तीन माह की 16100 रुपए हो गई है। एसएमसी की पिछले साल क्लास वन की फीस 3720 रुपए थी जो इस साल बढ़कर 4320 हो गई है।
नियमों की नहीं है परवाह
यूपी स्ववित्त पोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनिमय) अधिनियम 2018 के अनुसार स्कूल एक ही बार एडमिशन फीस ले सकते हैं। इसकी सीमा नही तय की गई है। इतना ही नहीं यूपी फीस नियामक अधिनियम 2018 के मुताबिक फीस में सालाना वृद्धि औसत उपभोक्ता सूचकांक की दर को देखकर की जाती है। सत्र 2022-2023 में मंत्रालय की ओर से सीपीआई 6.69 फीसदी घोषित की गई। सीपीआई में पांच फीसदी जोड़ते हुए फीस में 11.69 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है। जबकि पैरेंट्स का दावा है कि इस साल 15 से 25 फीसदी तक फीस वृद्धि की गई है। जो कि नियमों के परे है।
जिस प्रकार से प्राइवेट स्कूल वाले मनमानी तरीके से फीस बढ़ाते हैं, उस पर सरकार को अपनी नजर रखनी होगी। वरना पैरेंट्स की आर्थिक स्थिति अधिक डांवाडोल हो जाएगी।
डॉ। अरुण गुप्ता
जिस तरह से स्कूलों में फीस में हर साल वृद्धि हो रही है। इससे अभिभावकों को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। सरकार को इसके लिए सख्त कानून बनाना होगा।
आशफी खान
स्कूल वालों का कहना है कि तीन साल बाद फीस बढ़ा गई है। जबकि यह सही नही है। पिछले साल भी दस फीस की बढ़ोतरी की गई थी। पूछने पर संतोषजनक जवाब भी नही दिया गया था।
मनीष कुमार गुप्ता
जिनके दो या तीन बच्चे हैं वह कैसे उन्हे बेहतर शिक्षा दे पाएंगे। यह बड़ा सवाल है। या तो वह अपना घर चला लें या फिर फीस सहित स्कूलों के दूसरे खर्च को मैनेज करें। इस सवाल का जवाब किसके पास है।
प्रमोद कुमार
स्कूलों की मनमानी काफी बढ़ गई है। हमारी समिति दो से तीन दिन के भीतर डीएम से मिलने जाएगी। हमारी मांग है कि फीस वृद्धि पर अंकुश लगाया जाए। कोरोना के बाद लोगों की कमाई कम हो गई तो वह इतनी फीस कहां से देंगे।
विजय कुमार गुप्ता, अध्यक्ष, अभिभावक एकता समिति