प्रयागराज (ब्‍यूरो)। नगर निगम के पास मौजूद तालाबों की सूची में गुडिय़ा तालाब नाम ही नहीं है। यह जानकार आप को हैरानी जरूर हो रही होगी, पर बात सोलह आना सच है। यह हालात तब हैं जब नुरुल्ला रोड स्थित इस तालाब का जीर्णोद्धार खुद नगर निगम के द्वारा 2006 में कराया गया था। इसकी तस्दीक तालाब की बाउंड्री पर लगे हुए शिलापट कर रहे हैं। यह तालाब भी प्रशासनिक उपेक्षा का दंश झेल रहा है। तालाब में एक भी बूंद पानी नहीं है। आसपास के बच्चे इस तालाब को क्रिकेट ग्राउंड के रूप में यूज कर रहे हैं। नागपंचमी के मौके पर लगने वाले मेले के चलते ही इसे गुडिय़ा तालाब नाम दिया गया था।

खुलकर बोलने से कतराते हैं लोग
इस तालाब का इतिहास सैकड़ों का साल पुराना है। वजह चाहे जो भी हो पर कोई भी खुलकर कुछ बोलना नहीं चाहता। दबी जुबान लोगों की मानें तो यह तालाब वर्षों पहले बनवारी लाल अग्रवाल का हुआ करता था। बनवारी लाल धार्मिक व सामाजिक कार्यों के प्रति समर्पित व्यक्ति थे। लोग कहते हैं कि उनका अपना एक रुतबा व नाम हुआ करता था। कहते हैं कि बड़े बुजुर्ग बताया करते थे कि रीतियों रिवाजों से उनका बड़ा जुड़ाव रहता था। मृत्यु पूर्व इस तालाब को वे नगर निगम को पब्लिक के लिए दान कर दिए थे। मकसद था कि स्थानीय लोग इस तालाब पर गुडिय़ा व पूजा पाठ किया करेंगे। आसपास के लोगों की माने तो कहते हैं कि उनके बाबा और पिता जी बताया करते थे कि गुडिय़ा पर तभी से यहां मेला लगता आ रहा है। यह परंपरा यहां पर आज भी निभाई जाती है।

तब हुआ करता था पानी
वर्ष 2006 के पूर्व इस तालाब की स्थिति काफी बदतर थी। हालांकि उन दिनों इस तालाब में पानी हुआ करता था। 2006 में उज्ज्वल रमण सिंह पर्यावरण मंत्री हुआ करते थे और चायल में सांसद शैलेंद्र कुमार थे। शहर पश्चिमी से विधायक मो। खालिद अजीम उर्फ अशरफ थे। इन नेताओं के प्रयास से इस तालाब का नगर निगम इलाहाबाद द्वारा नगरीय अवस्थापना निधि से जीर्णोद्धार कराया गया था। तालाब का जीर्णोद्धार हुआ था उस वक्त यहां नगर आयुक्त सत्य नारायण श्रीवास्तव और डीएम अमृत अभिजात थे। नगर अभियंता पांचू राम और मुख्य अभियंता आरके वर्मा थे। फिर भी आज के दौर में नगर प्रयागराज के नजूल विभाग में मौजूद 42 तालाबों की सूची में नूरुल्ला रोड स्थित इस गुडिय़ा तालाब का जिक्र नहीं है। इसके पीछे की वजह क्या है फिलहाल यह बता पाना मुश्किल है।

वर्षों पुरा है गुडिय़ा तालाब का इतिहास
एक समय था जब यहां इक्का और तांगा बनाने के नामी कारीगर काम करते थे। तालाब के आसपास तांगा और इक्का का चक्का तक बनाया जाता था।
कारीगर यहां बहुतायत की संख्या में थे, इसीलिए इस मोहल्ले का नाम ही गाड़ी वान टोला पड़ गया।
लोग यहां आज भी शादी विवाह के अवसरों पर घाट पूजन के लिए लोग आते हैं।
एक दौर में यह तालाब इतना गहरा था कि हाथी डूब जाय।
यह तालाब धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा तो इसकी पहचान ही गुडिय़ा तालाब के नाम से हो गई।
शहर और जनपद ही नहीं, गैर जनपदों के लोग भी इसी नाम से जानते व पहचाने हैं।

अब नशेडिय़ों का बन गया है अड्डा
आज तालाब में पानी है नहीं, लिहाजा शाम होते ही यहां पर शराबियों व गांजेडिय़ों एवं स्मैकियों का जमावड़ा लग जाता है। लोग बताते हैं कि तालाब के पास से बनाई गई रोड तक पर नशेडिय़ों का आतंक रहता है। चंद कदम की दूरी स्थित खुल्दाबाद थाना भी इन नशेडिय़ों पर कार्रवाई करना मुनासिब नहीं समझ रहा है। इस उपेक्षा के चलते उन नशेडिय़ों के हौसले इतने बुलंद हैं कि वह लोगों का रोड से आना जाना दुश्वार कर दिए हैं।

तालाब पर लगा है एक और बोर्ड
गुडिय़ा तालाब पर पक्की रोड की तरफ एक और बोर्ड लगा हुआ है। जिसपर साफ व बड़े अक्षरों में लिखा गया है कि 'सर्व साधारण को सूचित किया जाता है कि माननीय उच्च न्यायालय के आदेशानुसार गुडिय़ा तालाब के मालिक व काबिज डॉ। माया अग्रवाल व प्रशांत अग्रवाल निवासी 73 गाड़ीवान टोला, प्रयागराजÓ वहीं तालाब से बाईं तरफ बाउंड्री पर नगर निगम द्वारा जीर्णोद्धार का शिलापट भी लगाया गया है। लोग कहते हैं कि डॉ। माया अग्रवाल बनवारी लाल अग्रवाल की बेटी हैं।

चूंकि हमें आए अभी कुछ दिन ही हुआ है। इस लिए इससे ज्यादा जानकारी अभी हमें भी नहीं है।
दीपेंद्र यादव अपर नगर आयुक्त / नोडल अफसर नजूल