-प्रयागराज (ब्यूरो)।छह साल पहले आए जीएसटी से व्यापारियों को डर नहीं लगता है। उनकी माने तो सरकार का जीएसटी लागू करना व्यापारियों और व्यापार के हित में था। लेकिन, इसमें लगातार हो रहे बदलाव से वह परेशान हैं। उनका कहना है कि रोजाना नियमों में चेंज से दिक्कत हो रही है। कभी कभी अधिकारियों को भी पता नही होता कि हाल ही में जीएसटी एक्ट में कौन सा बदलाव किया गया है।

सेलटैक्स, वैट और जीएसटी में अंतर

पूर्व में सर्विस टैक्स जमा होता था। इसमें सभी जगह के लिए एक टैक्स दिया जाता था। इसके बाद सरकार ने वैट लागू कर दिया। इसमें काफी असमानता थी। हर राज्य का अपना अलग वैट होता था। एक राज्य में किसी उत्पाद का पांच फीसदी टैक्स होता था तो किसी राज्य में इसका बढ़कर 12 फीसदी वैट हो जाता था। इससे व्यापारी परेशान होते थे। इस तरह से खरीदे गए माल की कीमत काफी अधिक हो जाती थी। अगर कागजात बनवाने में देरी हुई तो लंबा फाइन वसूला जाता था। जब इसकी शिकायत व्यापारियों ने की तो सरकार ने जीएसटी लागू करने का फैसला किया। एक जुलाई 2017 में जीएसटी यानी गुड एंड सर्विस टैक्स को लागू किया गया। इससे एक फायदा हुआ कि पूरे भारत में किसी भी वस्तु का एक टैक्स वसूला जाता है। इससे इवे बिल और बिल बनवाने में अधिक माथापच्ची नही करनी पड़ती है।

छह साल में बदल गई अवधारणा

व्यापारियों का कहना है कि छह साल में जीएसटी की अवधारणा में काफी बदलाव आया है। शुरुआत से अब तक 1285 बदलाव हुए हैं। रिटर्न फाइलिंग, ई वे बिल, टैक्स स्लैब से लेकर तमाम चीजों में रोजाना नए नए नियम देखने को मिल रहे हैं। खुद व्यापारी भी काफी कन्फ्यूज हो रहे हैं। उनको नही पता होता कि भविष्य में कौन सा चेंज देखने को मिल सकता है। अधिकारी भी इन बदलाव को लेकर अवेयर नही होते, बल्कि मौका मिलते ही कार्रवाई करने से नही चूकते हैं।

इस तरह से परेशान होते हैं व्यापारी

एग्जाम्पल नंबर एक: जीएसटी के तहत सेलर और बॉयर दोनों को अलग अलग ई वे बिल बनाना पड़ता है। अक्सर देखा गया है कि किसी जगह के नाम से व्यापारी पिनकोड लेकर माल भिजवा देता है। लेकिन जब जीएसटी विभाग के अधिकारी माल पकड़कर सर्च करते हैं तो पिन कोड दूसरा आता है। इसका मतलब कि जीएसटी विभाग के सिस्टम में कमी है। यहां अपडेशन होना बाकी है। लेकिन यह सुनने के बजाय अधिकारी माल पर फाइन लगा देते हैं या पैरवी कमजोर होने पर सीज कर देते हैं। इससे व्यापारी को लंबा नुकसान हो जाता है।

एग्जाम्पल नंबर दो- वैट लागू होने के दौरान इंडस्ट्रियों को एक्साइज टैक्स से राहत मिल जाती थी। यह राहत पांच करोड़ रुपए तक की लिमिट पर थी। इससे इंडस्ट्रीज को काफी राहत मिलती थी। वह मार्केट में प्रतिस्पर्धा करने में आसानी होती थी। लेकिन जीएसटी लागू होने के बाद इस छूट को खत्म कर दिया गया है। इसमें एक्साइज ड्यूटी से किसी का एग्जेम्प्ट नही किया गया है। इससे व्यापारियों को काफी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है.अगर वैट और सर्विस टैक्स से कम्पैरिजन किया जाए तो जीएसटी बेहतर है। इससे व्यापारियों को आसानी है लेकिन जिस तरह से इसमें बदलाव हो रहा है और नियम बदल रहे हैं उससे हमलोग भ्रमित हो गए हैं। इससे व्यापार में गलती की संभावना बढ़ जाती है।

मनीष कुमार गुप्ता, व्यापारी

जिस तरह से कहा गया था, अगर उसी तरह से जीएसटी को लागू किया जाता तो कोई दिक्कत नही थी। लेकिन वैसा नही हुआ। जब व्यापारियों ने हल्ला किया तो बदलाव शुरू हुआ। अब ये इतना ज्यादा है कि जैसे लग रहा है कि नियमों को व्यापारियों पर थोपा जा रहा है।

सौरभ कुमार गुप्ता, व्यापारी

वैट और जीएसटी में कम्पैरिजन करें तो जीएसटी बेहतर है। इसमें अधिक पारदर्शिता है। जिससे व्यापारियों को फायदा है। इसमें सबकुछ पोर्टल पर दिख जाता है। वैट में ऐसा नही था। उसमें कई चीजें पता नही चलती थीं। सरकार इसीलिए बदलाव कर रही है कि जीएसटी को पूरी तरह से सरल और पारदर्शी बना दिया जाए।

दिव्या चंद्रा, सीए