पर्यावरणविदों ने कहा, 5 जी टेस्टिंग को लेकर जबरन मच रहा है हल्ला

2 जी और 4 जी से भी निकलता है इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडिएशन

पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी है प्राकृतिक संसाधनों दोहन रोकना

prayagraj@inext.co.in

शनिवार को पर्यारवण दिवस मनाया जाएगा। सरकार एक बार फिर लम्बे-चौड़े प्लांटेशन प्लान के साथ सामने आ गयी है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाली संस्थाएं भी पौधरोपण की शुरुआत कर चुकी हैं। इस पर फोकस प्रोग्राम भी शनिवार को होंगे। कोरोना काल में कॉमन मैन को आक्सीजन की उपयोगिता समझ में आ गयी तो वह भी किचर और रूफ गार्डेनिंग में जुट गया। इन सब के बीच देश में फाइव जी नेटवर्क की टेस्टिंग को पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा बताया जाने लगा है। एक मूवी में इस फैक्ट को हाईलाइट किया गया था। यह मुद्दा लेकर एक्ट्रेस जूही चावला कोर्ट की शरण में हैं। क्या है इसका सच? कितना खतरनाक है यह पर्यावरण के लिए? इन सवालों का जवाब दैनिक जागरण आई नेक्स्ट ने पर्यावरण दिवस पर तलाशने की कोशिश की।

लगातार बढ़ रहा है पृथ्वी का टम्प्रेचर

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के बॉटनी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर और पर्यावरणविद प्रो। एनबी सिंह का कहना है कि ऐसा नहीं है कि सिर्फ 5जी नेटवर्क का इस्तेमाल किये जाने से पर्यावरण को नुकसान होगा। यह पर्यावरण संतुलन को मेंटेन रखने में सहायक पक्षियों के लिए हानिकारक हो सकता है। इससे संतुलन का खतरा होगा। बदलते युग में अन्य देशों से सामंजस्य बनाने के लिए हमें भी विकास की ओर अग्रसर होना पड़ेगा। लेकिन, पर्यावरण को बर्बाद करने की शर्त पर ये नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने मोबाइल टावर को लेकर आदेश दिया था, लेकिन लोगों ने अपने स्वार्थ के लिए आबादी वाले स्थानों पर टावर लगवाए। जिससे लाखों पक्षी खत्म हो गए। हमारे देश की संस्कृति थी जिसमें हम पर्यावरण की पूजा करते थे। हमारा शरीर भी पर्यावरण का अभिन्न अंग पंचतत्व जल, पानी, वायु, जमीन के अंश है। हम लगातार प्राकृतिक संसाधनों का दोहन तो कर रहे हैं, लेकिन इसे बचाने का जतन नहीं कर पा रहे। इससे ग्लोबल वार्मिग बढ़ रही है। हालत ये है कि आज के समय में पृथ्वी का टम्प्रेचर 15 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया है। अगर यहीं हाल रहा तो वर्ष 3000 तक ये दो डिग्री सेल्यिस और बढ़ जाएगा। जिसके बाद पृथ्वी पर जीवन ही समाप्त हो जाने का खतरा होगा। ऐसे में हम सब के साथ सरकारों को भी इस दिशा में ठोस कदम उठना होगा। सिर्फ एवार्ड लेने तक ही इसे सीमित करने से बचना होगा।

अभियान चलाकर भूल गए पौधे

पर्यावरणविद प्रो। एनबी सिंह ने कहा कि हमारे यहां सरकारें पर्यावरण संरक्षण के लिए अभियान तो चलाती है

लेकिन उसके बाद उन पेड़-पौधों का हाल देखने नहीं जाती है

वर्ष 2010 में प्रदेश में 10 लाख पेड़ लगाने का रिकार्ड बनाया गया

2016 में 5 करोड़ पेड़ लगाने का स्टीमेट बनाया गया

2019 में 22 करोड़ पेड़ लगाने का स्टीमेट बनाया गया

अभियान चलाकर उन पेड़ों को लगाने का प्रयास किया गया।

इस प्रयास के लिए गिनीज बुक ऑफ व‌र्ल्ड रिकार्ड ने प्रदेश सरकार को एवार्ड भी दिया

लेकिन उस दिन के बाद आज तक उन 22 करोड़ पेड़ की हालत देखने कोई नहीं पहुंचा।

ऐसे में सिर्फ अभियान चलाने से पर्यावरण संरक्षण संभव नहीं है। इसके लिए स्थाई कदम उठाने होंगे।

पेड़ों को काटने पर लगे कड़े प्रतिबंध

समय के साथ विकास जरूरी है, लेकिन इसका ये अर्थ नहीं है कि विकास के नाम पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई की जाए।

अगर रोड बनाने में पेड़ सामने आ रहे है, तो रोड का रास्ता बदल दिया जाए।

अगर ये संभव नहीं है, तो पेड़ों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर शिफ्ट करने की सुविधा भी आज मौजूद है। उसका प्रयोग किया जाए।

पिछले दिनों ही करोना से हुई मौतों के बाद लोगों ने गंगा में पीपीई किट के साथ ही बॉडी को प्रवाहित कर दिया।

ये कितने तरह से मनुष्य पर असर डालेगी। इसकी कोई कल्पना नहीं कर सकता है।

अगर आस्था व परम्परा हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते है, तो उस पर पुर्नविचार करना चाहिए। इनमें सामंजस्य स्थापित करिए।

पर्यावरण संरक्षण के लिए सरकारों के साथ ही आम लोगों को भी सजग होना होगा। अगर ऐसा नहीं हुआ तो वो दिन दूर नहीं, जब पृथ्वी से जीवन खत्म हो जाएगा।

प्रो। एनबी सिंह

पर्यावरणविद एवं प्रोफेसर बॉटनी डिपार्टमेंट, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी

यूपी का ग्रीन कवर इस समय इस समय 6.83 प्रतिशत है। जबकि इसे मिनिमम 33 प्रतिशत होना चाहिए। इससे ही आने वाले दिनों की स्थिति का अंदाजा लगा लेना चाहिए।

प्रो। डीके चौहान

रिटायर्ड प्रोफेसर, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी