प्रयागराज ब्यूरो । इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि किशोर न्याय कानून में अपराध के आरोपित नाबालिग को जमानत देने से इन्कार करने के लिए दर्शित आधारों में अपराध की गंभीरता को शामिल नहीं किया गया है। इसलिए जमानत पर विचार करते समय अपराध की गंभीरता एक कारक नहीं है। नाबालिग को केवल तीन परिस्थितियों में जमानत देने से इन्कार किया जा सकता है। यदि रिहाई से उसके किसी अपराधी के साथ संबंध होने की आशंका है या उसे नैतिक, शारीरिक या मनोवैज्ञानिक खतरे में डालने की आशंका है और तीसरा यह कि उसकी रिहाई न्याय के उद्देश्यों को विफल करेगी। कोर्ट ने कहा कि याची को जमानत पर रिहा करने से शाहजहांपुर की विशेष अदालत द्वारा इन्कार के आदेश में इन तीनों को आधार नहीं बनाया गया है। सह अभियुक्तों को पहले ही जमानत मिल चुकी है। इसलिए याची भी जमानत पाने का हकदार है। यह आदेश न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम ने आपराधिक पुनरीक्षण याचिका मंजूर करते हुए दिया है।
पास्को एक्ट समेत कई धाराओं में केस
कोर्ट ने अपर सत्र अदालत विशेष अदालत (पाक्सो) के 18 जनवरी 2024 और 28 फरवरी 2024 की प्रमुख मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड की रिपोर्ट को रद कर दिया है। याची नाबालिग को जमानत पर रिहा करने का निर्देश दिया है। याची व कई अन्य के खिलाफ शाहजहांपुर के तिलहर थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा 147, 148, 149, 364, 302 और 34 के अंतर्गत प्राथमिकी दर्ज की गई है। विशेष बाल अदालत द्वारा जमानत देने से इन्कार किए जाने के आदेश को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई थी। याची के अधिवक्ता का कहना था कि उसकी (याची की) आयु घटना के समय 16 वर्ष छह माह थी। उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। ट्रायल शीघ्र पूरा होने की संभावना नहीं है। सह अभियुक्तों को जमानत मिल चुकी है। उसे बाल सुधार गृह में रखा गया है। धारा 12(1)का पालन नहीं किया गया है। इसके आधार पर उसे जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए। मां ने भी खराब संगति में न जाने देने की जिम्मेदारी ली है। कोर्ट ने सशर्त जमानत मंजूर कर ली है और व्यक्तिगत मुचलके व दो प्रतिभूतियों पर रिहा करने का निर्देश दिया है।