प्रयागराज (ब्‍यूरो)। आपका बच्चा एग्जाम में बेहतर माक्र्स नहीं ला पाता, बोर्ड एग्जाम के नजदीक आते ही वह नर्वस हो रहा है, आपकी एक्सपेक्टेशन के मुताबिक एग्जाम में नंबर लाने की होड़ में कहीं वह डिप्रेशन का शिकार तो नहीं हो रहा? ऐसे तमाम सवालों के जवाब न तो बच्चों के पास होते हैं और नहीं पैरेंट्स के। नतीजा एग्जाम फोबिया से बचाने के लिए बच्चों को मनोवैज्ञानिकों के पास ले जाना पड़ता है। हर महीने ऐसे ही कई केसेज मनोविज्ञानशाला पहुंच रहे हैं। जहां एक्सपट्र्स काउंसिलिंग के जरिए बच्चों के भीतर से न केवल एग्जाम का डर निकाल रहे हैं बल्कि पैरेंट्स की भी काउंसिलिंग की जाती है।

क्लास नाइंथ से शुरू हो जाती है प्राब्लम
मेडिकल कॉलेज के नजदीक स्थित मनोविज्ञानशाला में लगातार एग्जाम फोबिया के मामले बढ़ रहे हैं। जुलाई से लेकर अक्टूबर तक हर माह औसतन 50 से 60 मामले पहुंच रहे हैं। क्लास नाइंथ में पहुंचते ही बच्चों को बोर्ड एग्जाम का भूत सताने लगता है। ऊपर से पैरेंट्स की हैवी एक्सपेक्टेशंस, क्लास का होमवर्क, कोचिंग का काम, यह सब मिलकर बच्चों की सेहत को खराब करने लगते हैं। नतीजा घबराहट, चिड़चिड़ापन, अकेलेपन के रूप में सामने आने लगता है। क्लास में लगातार उसकी परफार्मेंस गिरने से पीटीएम में पैरेंट्स को भी शर्मिंदा होना पड़ता है।

एग्जाम फोबिया के कारण
- पैरेंट्स द्वारा बच्चों के नंबर से तुलना करना और क्लास में अव्वल आने का दबाव बनाना।
- एग्जाम में नंबर कम आने का डर।
- मैथ और साइंस जैसे सब्जेक्ट का अधिक दबाव और बाकी सब्जेक्ट को समय नही दे पाना।
- स्कूल और कोचिंग के साथ होमवर्क पूरा करने के चक्कर में खेलने का समय नही मिल पाना।
- पढ़ाई में मन नही लगना या कंसंट्रेशन वीक होना।
- बोर्ड परीक्षा के नाम पर बच्चों को दूसरों के द्वारा बार बार डरवाया जाना।

एग्जाम फोबिया के लक्षण
- घबराहट, पसीना, बेचैनी, अपनी बात ठीक से नही कह पाना, अकेलापन फील करना, पैरेंट्स के सामने अपनी बात नही कह पाना, तनाव आदि।
बचाव के तरीके
- टीवी या मोबाइल स्क्रीन टाइम को कम करना।
- पैरेंट्स द्वारा स्कूल या आफिस से आने के बाद बच्चों के साथ कन्वर्सेशन करना।
- बच्चों को इनडोर के साथ आउटडोर गेम्स खेलने का समय देना।
- टाइम टेबल बनाकर बच्चों को पढऩे के लिए प्रेरित करना।
- फास्ट फूड को खाने से रोकना, हेल्थ इश्यूज पर फोकस करना।
- दूसरे के बच्चों से तुलना नही करना और उनको पाजिटिव पाथ देना।
- टेंथ के बाद उनके इंट्रेस्ट के सब्जेक्ट के बारे में जानकारी लेकर साइड चूज करना।

काउंसिलिंग के साथ होते हैं टेस्ट
साइकोलाजिस्ट डॉ। किरन देवी कहती हैं कि मनोविज्ञानशाला में आने वाले बच्चों की सबसे पहले काउंसिलिंग की जाती है। उनके पैरेंट्स की भी काउंसिलिंग होती है। उनकी थिंकिंग, मनोव्यथा और मानसिक स्तर का पता लगाने के लिए तमाम टेस्ट लिए जाते हैं। जिनमे स्ट्रेस मैनेजमेंट, आई क्यू लेवल, बीपीटी 14, बीपीटी 13, टीएटी, पर्सनैलिटी टेस्ट, ग्रुप डिसकसन, सीएटी, 8बी आदि शामिल हैं। योगा मेडिटेशन की भी सलाह दी जाती है। सीवियर मामलों को सायकायट्रिस्ट के पास रेफर कर दिया जाता है।
सीवियर मामलों के लक्षण
- डिप्रेशन, बेहोशी, चक्कर आदि।

एग्जाम फोबिया के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। अभी हर माह 50 से 60 मामले आते हैं। मार्च तक यह दोगुना तक पहुंच सकते हैं। मनोविज्ञानशाला के साइकोलाजिस्ट ऐसे केसेज में बच्चों के साथ पैरेंट्स की भी काउंसिलिंग करते हैं। अगर मामला सीवियर हुआ तो उसे सायकायट्रिस्ट के पास भेजा जाता है जिससे की काउंसिलंग के साथ ट्रीटमेंट भी दिया जा सकेगा।
ऊषा चंद्रा, निदेशक, मनोविज्ञानशाला

आमतौर पर एग्जाम फोबिया के मामले साइकोलाजिस्ट सुलझा लेते हैं। लेकिन जब केस अधिक सीवियर होता है तो बच्चों को दवाएं भी देनी पड़ती है। ऐसे में मामले हमारे पास आते हैं। कई बच्चे फेल होने के डर से नशा भी करने लगते हैं, ऐसे में उनका इलाज बेहद जरूरी हो जाता है।
डॉ। राकेश पासवान, सायकायट्रिस्ट