प्रयागराज (ब्यूरो)। आज शारदीय नवरात्र की अष्टमी है। इस अवसर पर कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। नवरात्र में शक्ति साधना, पूजन, अनुष्ठान आदि से ज्यादा कन्या पूजन को मान दिया जाता है। हालांकि ज्योतिषाचार्यों का कहना है कि कन्या पूजन के लिए दस वर्ष तक की कन्याएं ही पूजनीय हैं। इसलिए कन्या पूजन आयु के अनुसार ही करना चाहिए। हिंदू धर्म में कन्या को साक्षात मां जगदंबा का रूप माना जाता है। लोग अपने घरों में मांगलिक कार्यों के दौरान देव पूजन के साथ कन्या पूजन भी संपन्न कराते हैं।
अलग अलग नामों से जानी जाती हैं कन्याएं
माना जाता है कि दस वर्ष तक की कन्याएं पूजन के लिए उपयुक्त होती हैं। एक वर्ष या इससे कम उम्र की कन्याओं को पूजन के लिए उचित नही माना जाता है। देवी भागवत पुराण के अनुसार दो से दस वर्ष तक की कन्याओं को विभिन्न नामों से जाना जाता है। प्रत्येक कन्या के पूजन से अलग फल की प्राप्त होती है।
किस कन्या के पूजन से मिलता है कौन सा पुण्य
कुमारी- दो वर्ष की कन्या को कुमारी कहते हैं। इनका पूजन करने से दरिद्रता दूर होती है।
त्रिमूर्ति- 3 वर्ष की तक कि कन्या त्रिमूर्ति कहलाती हैं। इनका पूजन करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
कल्याणी- 4 वर्ष की कन्या कल्याणी कहलाती है। इनका पूजन करने से बुद्धि, विद्या और सुख की प्राप्ति होती है।
रोहिणी- 5 वर्ष की कन्या रोहिणी कहलाती है। इनका पूजर करने से बीमारी से छुटकारा मिलता है।
कालिका- 6 वर्ष की कन्या कालिका कहलाती है। इनके पूजन से शत्रु धाराशायी हो जाते हैं।
चंडिका- 7 वर्ष की कन्या चंडिका कहलाती है और इनके पूजन से प्रतिष्ठा प्राप्त होती है।
शांभवी- 8 वर्ष की कन्या शांभवी कहलाती है। इनके पूजन से शांति प्राप्त होती है।
दुर्गा- 9 वर्ष की कन्या दुर्गा कहलाती हैं। इनके पूजन करने से पूर्ण शुभफल की प्राप्ति होती है।
सुभद्रा- 10 वर्ष की कन्या सुभद्रा कहलाती हैं। इनके पूजन से सौभाग्य की प्राप्ति के साथ समस्य कार्य सिद्ध हो जाते हैं।
- रविवार को मनाई जाएगी दुर्गाष्टमी।
- अत्र पूर्णा परिक्रमा शाम 5:25 बजे समाप्त होगी।
- उत्तराषाढ़ा नक्षत्र शाम 5:15 बजे तक रहेगा।
- इसके बाद श्रवण नक्षत्र लगने पर मां सरस्वती विसर्जन किया जाएगा।
- 15 अक्टूबर से प्रारंभ हुई थी शारदीय नवरात्र।
- 23 अक्टूबर नवमी के दिन होगा माता की प्रतिमा का विसर्जन।
- 24 अक्टूबर को मनाया जाएगा विजय दशमी पर्व।
कन्या पूजन की विधि
- नवरात्रि की महाष्टमी या नवमी तिथि पर कन्या पूजन के लिए कन्याओं को एक दिन पहले ही आदर पूर्वक निमंत्रण दें।
- कन्याओं के आने पर सभी को प्रेम पूर्वक नियत स्थान पर बैठाएं और पुष्प वर्षा कर उनका अभिनंदन करें।
- ऊँ कौमार्यै नम: मंत्र से कन्याओं की पंचोपचार पूजा करें। इसके बाद उन्हें रुचि के अनुसार भोजन कराएं। भोजन में मीठा अवश्य हो, इस बात का ध्यान रखें।
- भोजन के बाद कन्याओं के पैर धुलाकर विधिवत कुंकुम से तिलक करें तथा दक्षिणा देकर हाथ में फूल लेकर यह प्रार्थना करें-
मंत्राक्षरमयीं लक्ष्मीं मातृणां रूपधारिणीम।
नवदुर्गात्मिकां साक्षात् कन्यामावाहयाम्यहम।
जगत्पूज्ये जगद्वन्द्ये सर्वशक्तिस्वरुपिणि।
पूजां गृहाण कौमारि जगन्मातर्नमोस्तु ते।
- तब वह फूल कन्या के चरणों में अर्पण कर उन्हें अपनी इच्छा अनुसार उपहार देकर ससम्मान विदा करें।
- कन्या पूजन से दरिद्रता खत्म होती है और दुश्मनों पर जीत मिलती है। धन और उम्र बढ़ती है। वहीं, विद्या और सुख-समृद्धि भी मिलती है।
अष्टमी की तिथि को कन्या पूजन का विशेष महत्व होता है। प्रत्येक आयु की कन्या का पूजन करने से अलग अलग फल की प्राप्त होती है। शत्रुओं पर विजय मिलती है।
दिवाकर त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य
कन्या पूजन के अवसर पर उनको आदर पूवर्क उनका पूजन करना चाहिए। इसके बाद उपहार देकर उन्हे विदा करें। उनकी प्रसन्नता ही आपके पूजन को सार्थक बनाएगी।
बालकृष्ण त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य