प्रयागराज (ब्यूरो)। नैनी का पप्पू गंजिया राजनीति की सीढिय़ां नहीं चढ़ पाया। वह नगर निगम की पार्षदी जीतकर राजनीति में आना चाहता था। इसके लिए उसने जी तोड़ कोशिश की। मगर उसके प्रतिद्वंदी हो जाने के डर से यमुनापार के सफेदपोश ने उसे राजनीति की सीढिय़ां चढऩे नहीं दी। जिसका नतीजा रहा कि पप्पू का राजनीतिक जीवन केवल पार्षदी तक ही सीमित रह गया।
खुद का रसूख पैदा करना चाहता था गंजिया
नैनी का पप्पू गंजिया खुद का रसूख पैदा करना चाहता था। रसूख के लिए उसे राजनीति का सहारा चाहिए था। इसके लिए उसने नगर निगम चुनाव का सहारा लिया। उसे लगा कि एक बाद पार्षद बन जाने के बाद आगे का रास्ता आसान हो जाएगा। मगर जिस सफेदपोश के संरक्षण में रहकर पप्पू गंजिया ने जरायम की दुनिया में नाम कमाया उसे पप्पू गंजिया की राजनीतिक पारी की शुरुआत अच्छी नहीं लगी। उस दौरान सफेदपोश की खासी तूती बोलती थी। पप्पू गंजिया ने सफेदपोश के विरोध के बाद भी पार्षदी जीत ली। जिसके बाद पप्पू गंजिया और सफेदपोश के बीच दूरियां शुरू हो गईं।
पप्पू आ गया अतीक के पाले में
सफेदपोश से बढ़ती दूरियों का भविष्य में नुकसान देख पप्पू गंजिया ने अतीक के पाले में आना मुनासिब समझा। पप्पू ने अतीक से मेलजोल बढ़ाया तो उसे लगा कि अब रास्ता साफ है। मगर शायद उसे मालूम नहीं था कि सफेदपोश भी अतीक का मददगार है। ऐसे में अतीक के गैंग का टैग को पप्पू गंजिया पर चस्पा हो गया मगर उसकी राजनीति में आने की हसरत अधूरी रह गई। इसके बाद पप्पू ने अपने परिवार के लोगों को राजनीति में उतारा। मगर वो भी ज्यादा आगे नहीं बढ़ पाए। पप्पू की दुश्मनी की वजह से उसके परिवार के लोग खुलकर राजनीति नहीं कर पाए। नतीजा रहा कि पप्पू गंजिया अतीक गैंग का गुर्गा बनकर रह गया।