प्रयागराज (ब्यूरो)।

क्यों हो मायूस तुम अंधेरों से

रोशनी होगी आशियानों में

अब जरूरत नहीं चरागों की

मुस्तफा आ गए जमाने में।

कहा की जकी अहसन ने शोहरत पाने के लिए शायरी नहीं किया, बल्कि खास अकीदे के साथ शायरी किया है। इन पंक्तियों में साफ झलकता है।

वो खलनायक किसी सूरत में नायक हो नहीं सकता

के किरदार-ओ-अमल जिसका किसी बातिल से मिलता है।

तो खुदा की शान को कुछ इस तरह से पेश किया है।

खुदा के कब्जा-ए-कुदरत में पस्ती और बुलंदी है

जिसे चाहे जमीन पर जिसको चाहे अर्श पर रक्खे।

इस तरह जकी अहसन ने हम्द, नात, और मनकबत को लिखने के लिए आसान जबान को तरजीह दिया है। यह भाषा आज के नौजवानों पर सीधा असर डालती हैं।

बुधवार को बज़्मे मीर संस्था की ओर से आयोजित प्रोग्राम दरियाबाद स्थित इमामबारगाह मोजिजनुमा में किया गया। मेहमाने खुसूसी जस्टिस सय्यद आफताब हुसैन रिजवी ने कहा कि अहलेबैत का कलाम ही अहसन (श्रेष्ठ) होता है। जकी अहसन के किताबी संग्रह खुद कलाम-ए-अहसन है। सदारत हसनैन मुस्तफाबादी ने किया। विशिष्ट अतिथियों में पूर्व ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट जुवेनाइल कोर्ट मोहम्मद हसन जैदी एवं मौलाना अली गौहर रहे। संचालन डा। नायाब बलयावी और मेहमानों का स्वागत रौनक सफीपुरी ने किया। कार्यक्रम संयोजक डा। कमर आबदी ने सभी मेहमानों का शुक्रिया अदा किया। हसन नकवी, रुस्तम इलाहाबादी, गौहर काजमी, आफताब आब्दी, इतरत नकवी, शहंशाह सोनवी, शफ़क़त अब्बास पाशा, मेराज रिज़वी, अली अना जैदी, नजीब इलाहाबादी एवं जावेद रिजवी सहित अन्य लोग मौजूद रहे।