1000
रुपये प्रति कुंतल घाट पर दे रहे लकड़ी
01
बॉडी में लगती है पांच कुंतल लकड़ी
5000
रुपये की लकड़ी लग रही एक बॉडी में
60
बॉडी रविवार को शाम छह बजे तक जली
300,000
रुपये की लकड़ी से जलाई गई कोरोना बॉडी
रविवार को शाम तक कोरोना से मरने वालों के अंतिम संस्कार में जलाई गई तीन लाख की लकड़ी
बॉडी जलाने वालों के गठजोड़ से एक बॉडी को जलाने में तीन से चार की जगह पांच कुंतल दे रहा लकड़ी
PRAYAGRAJ: कोरोना से जिले के हालात बद से बदतर हो चले हैं। रुपये की थैली लेकर लोग घूम रहे और इलाज तक नहीं मिल रहा। इतने पर भी लोगों की आंखें नहीं खुल रही। चंद लोग ऐसे हैं जो कोरोना से मरने वालों की बॉडी के अंतिम संस्कार में सौदेबाजी कर मुनाफा कमाने में जुटे हैं। मृतकों के परिवारवालों से अंतिम संस्कार के लिए मुंह मांगी रकम वसूली जा रही। यह वे लोग हैं, जो फाफामऊ घाट पर लकड़ी देकर बॉडी जलवा रहे हैं। मृतकों के गमजदा परिजन भी मजबूरी में उनके द्वारा मांगी गई रकम देने को विवश हैं। यहां घाट पर एक शख्स पूरा काकस बना रखा है। उसके द्वारा लकडि़यों को महंगे रेट में बेचा जा रहा। चूंकि उसकी सेटिंग बॉडी जलाने वालों से है, लिहाजा लोग दूसरे से लकड़ी खरीद भी नहीं सकते। लोगों में इस बात की चल रही चर्चा को लेकर दैनिक जागरण आईनेक्स्ट द्वारा पड़ताल की गई तो बातें सच साबित हुई।
एक दिन में जली लाखों की लकड़ी
फाफामऊ घाट पर प्रति दिन दर्जनों की संख्या में कोरोना से मरने वालों की बॉडी जलाई जा रही है। दबी जुबान लोगों व कुछ कर्मचारियों द्वारा बताया गया कि रविवार देर शाम तक करोना घाट पर करीब 60 बॉडी जलाई गई। यदि प्रति बॉडी पर पांच कुंतल लकड़ी मान लें तो इसकी कीमत पांच हजार रुपये हुई। इस तरह पांच हजार को यदि 60 से गुणा करें तो लकड़ी का रेट सीधे-सीधे तीन लाख रुपये आता है। इस तरह अकेले रविवार को कोरोना से मरने वालों का अंतिम संस्कार करने में तीन लाख रुपये की लकड़ी जलाई गई। जिसका पेमेंट मृतकों के परिजनों द्वारा किया गया। यह तो रही लकड़ी की बात।
समझिए क्या है थैले का राज
घाट पर बताया गया कि लकड़ी विक्रेता द्वारा मृतकों के परिजनों को एक थैला दिया जाता है। इस थैले में कए छोटा सा लोटा और कुछ क्रिया कर्म के सामान भी होते हैं। परिजनों को झांसा इस बात का दिया जाता है कि इस लोटे में भर कर राख दे दी जाएगी। जिसका अस्थि के रूप में विसर्जन कर सकते हैं। इस थैले के लिए दो से ढाई हजार रुपये अतिरिक्त लिए जाते हैं। पांच हजार रुपये की लकड़ी और दो हजार का यह थैला। इस तरह एक बॉडी के अंतिम संस्कार में कुल सात हजार रुपये परिवार वालों को खर्च करने पड़ रहे हैं।
मौके पर पहुंचा रिपोर्टर
रिपोर्टर- घाट पर पहुंचा और कोरोना से मरने वाले की बॉडी के अंतिम संस्कार की बात किया
रिपोर्टर- घाट पर मौजूद लोग रेलवे के पुराने पुल के नीचे खड़े एक युवक के पास भेज दिए
रिपोर्टर- उस युवक से मिला और बताया कि मेरे रिश्तेदार की कोरोना से डेथ हो गई है, उनका अंतिम संस्कार करना है
युवक- रिपोर्टर को लेकर एक लकड़ी व्यापारी के पास पहुंचा, उससे रिपोर्टर ने खर्च की बात की
लकड़ी व्यापारी- ने जवाब दिया कि पांच कुंतल लकड़ी लगेगी, प्रति कुंतल का रेट एक हजार रुपये है
रिपोर्टर- ने जवाब दिया कि बॉडी तो तीन चार कुंतल में ही जल जाती है, फिर पांच कुंतल क्यों?
लकड़ी व्यापारी- कोरोना से मरने वालों की बॉडी को जलाने में इतनी लकड़ी ही लगती है, इससे कम में नहीं होगा
रिपोर्टर- ने उससे कहा कि तब तो लकड़ी ही पांच हजार रुपये की हो जाएगी, कुछ रेट कम कर लीजिए
लकड़ी व्यापारी- जवाब दिया, देखिए रेट तो यही है घाट तक लकड़ी पहुंचा कर वहां लड़कों से जलवानी पड़ती है
रिपोर्टर- एक दूसरे लकड़ी वाले के पास पहुंचा तो वह लकड़ी का रेट 800 रुपये प्रति कुंतल बताया
रिपोर्टर- रिक्वेस्ट करने पर वह रेट 100 रुपये घटाया और कहा 700 रुपये प्रति कुंतल ले लीजिए
दूसरा व्यापारी- अंतिम संस्कार करना किसका है व्यक्ति कोरोना से मरा है या किसी अन्य वजह से
रिपोर्टर - जवाब दिया भाई कोरोना से डेथ हुई है। यह सुनकर वह बोला तब आप मेरे यहां से लकड़ी न लीजिए
रिपोर्टर- सवाल किया ऐसा क्यों? जवाब मिला क्योंकि कोरोना बॉडी वे जो जला रहे हैं फिर वह नहीं जलाएंगे
रिपोर्टर - ऐसा क्यों, वह जवाब दिया यह हम नहीं जानते आप को सही बात बता दिए।
मुंहमांगी रकम देने की क्या है मजबूरी?
पड़ताल में लोगों द्वारा बताया गया कि कोरोना की बॉडी जलाने का काम कुछ लड़के कर रहे हैं। उन लड़कों का समझौता एक लकड़ी विक्रेता से हुआ है। उस विक्रेता की लकड़ी जहां बॉडी जलाई जाती है वहां पर पहले से गिरी होती है। यहां विक्रेता के पास रुपये जमा करते ही वह बॉडी पर उसी ढेर से लकड़ी उठाकर रख लेते हैं। चूंकि जल रही बॉडी के पास किसी को जाने की अनुमति नहीं है। जब कोई वहां जाएगा नहीं तो लकड़ी लेकर कैसे जाएगा। अब ऐसे में उसी की लकड़ी से ही बॉडी का अंतिम संस्कार किया जाना मजबूरी है। यही वजह है कि उसके जरिए प्रति कुंतल लकड़ी पर तीन से चार सौ रुपये रेट से अधिक वसूले जा रहे।
कोरोना से मरने वालों के परिजनों को जल रही बॉडी के पास जाने की अनुमति नहीं है। वह घाट पर रहते हैं, जो अंतिम संस्कार का खर्च देते हैं। हमारा काम सुरक्षित तरीके से घाट तक बॉडी को एम्बुलेंस से भेजवाना है।
गंगाराम गुप्ता, अपर जिलाधिकारी नजूल/प्रभारी कोरोना बॉडी