प्रयागराज (ब्‍यूरो)। ज्योतिषियों की माने तो 17 मार्च को पूर्णिमा की रात्रि एवं भद्रा 12:57 बजे के बाद होलिका दहन किया जाएगा। क्योंकि स्नान दान की पूर्णिमा 18 मार्च को दिन में 12:53 बजे के बाद पूर्णिमा तिथि समाप्त हो जायेगी। इस प्रकार गुरुवार की रात में 12:57 के बाद होलिका दहन का कार्य संपन्न होगा। होलिका दहन के समय डुण्डा राक्षसी एवं होलिका का विधिवत पूजन अर्चन के बाद ऊं होलिकायै नम: मन्त्र का जाप करते हुए होलिका दहन किया जाना चाहिए। क्या कहती हंै परंपराएं
परंपरा के अनुसार शरीर पर पीले सरसों का उबटन लगाने के बाद बचा हुआ अवशेष होलिका में डालने से व्यक्ति रोग मुक्त हो जाता है। ऐसी मान्यता है जिस प्रकार होलिका दहन के साथ ढूंढा राक्षसी का समन हो जाता है ठीक उसी प्रकार व्यक्ति के शरीर का रोग भी समाप्त हो जाता है, लोगों को रोगों से मुक्ति प्राप्त होती है अथवा आराम मिलता है। होलिका दहन के बाद होलीका के भस्म को शरीर पर लगाने से भी निरोगी काया प्राप्त होती है अर्थात रोगों से मुक्ति मिलती है।
पांच दिन चलेगा होली का हुड़दंग
चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा के दिन होलिकोत्सव मनाने की परंपरा रही है। ऐसे में इस वर्ष उदय कालिक प्रतिपदा तिथि 19 मार्च को प्राप्त हो रही है। लेकिन प्रतिपदा तिथि का मान 18 मार्च को दिन में 12:53 के बाद आरंभ हो जाएगा। ऐसे में प्रतिपदा तिथि में ही रंगोत्सव अर्थात रंग भरी होली का पर्व शुक्रवार को मनाया जाएगा। चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से लेकर के चैत्र कृष्ण पक्ष पंचमी तिथि तक होली का हुड़दंग चलता रहेगा और 22 मार्च को समाप्त होगा।

होलिका में पीले सरसों का उबटन डालना फलदायी होता है। इससे काया निरोगी होती है। होलिका की भस्म को माथे पर लगाना चाहिए। मंत्र का जाप करने के साथ होलिका दहन किया जाना चाहिए।
पंडित दिवाकर त्रिपाठी, ज्योतिषाचार्य

इस साल भद्रा के कारण होलिका दहन के शुभ मुहूर्त को लेकर असमंजस की स्थिति है। भद्रा के कारण होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 17/18 की मध्य रात्रि के बाद रात 1:12 बजे के बाद करना फलदायी होगा।
आचार्य अमित बहोरे, ज्योतिषाचार्य