प्रयागराज (ब्यूरो)। नीवां धूमनगंज के रहने वाले दीक्षांत श्रीवास्तव ने मोबाइल पर हुई बातचीत में बताया कि अब हालात बेकाबू हो रहे हैं। बमुश्किल एक घंटे सो सके हैं। सारी रात दहशत में गुजरी है। जैसे ही झपकी लगी सायरन बजने लगा। फौरन भागकर बंकर में गए। बंकर बेसमेंट में है। घुटन सी होती है। भूख-प्यास सब मर गई। बस किसी तरह निकलना है। बोले, झपकी लगने पर भी लगता है धमाके हो रहे हैं। सुबह से चार बजे मेरे फ्लैट के पास गोलीबारी हुई। ड्रोन से हमले किए गए। सेना ने दो ड्रोन तो ध्वस्त कर दिए। हम लगातार भारतीय एंबेसी के संपर्क में हैं। रविवार सुबह तक रवाना होंगे। किसी तरह बार्डर पर पहुंच जाएं।

रोमानिया के रास्ते निकल चुके हैं रितिक
धूमनगंज के साकेत नगर निवासी रितिक दिवाकर भी वहां फंसे थे। उनके पिता बोलता प्रसाद आल इंडिया रेडियो और मां सरोज देवी शिक्षिका हैं। दिवाकर एमबीबीएस तृतीय वर्ष की पढ़ाई कर रहे हैं। राहत की बात है कि वह बस रोमानिया के रास्ते निकल चुके हैं। रात आठ बजे वह बस से यूक्रेन के बार्डर पर पहुंचने वाले थे। दिवाकर ने बताया कि बस में भले बैठे हैं लेकिन दिल में दहशत है। किसी तरह बार्डर पार कर जाएं फिर सीधे घर आएंगे। मेजा के कठौली गांव निवासी प्रभाशंकर मिश्र का बेटा अमित यूक्रेन में एमबीबीएस की पढ़ाई कर रहा है। वह ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस चौथी वर्ष के छात्र हैं। छोटे भाई आनंद मिश्र ने बताया कि अभी आज सुबह बड़े भाई से फोन पर बात हुई है, वह ठीक है। लेकिन वहां के हालात ठीक नहीं हैं। वह फरवरी 2021 में घर आए थे। उसके बाद से अभी तक घर नहीं लौटे। मां बीमार रहती हैं इस कारण उन्हें सारी बातें नहीं बताई जा रही हैं।
जनवरी में यूक्रेन गया था सुनील
मेजा के लहरी गांव निवासी सुनील ङ्क्षसह का बेटा अर्पित ङ्क्षसह अभी यूक्रेन में ही फंसा है। ओडेसा नेशनल मेडिकल यूनिवर्सिटी में एमबीबीएस अंतिम साल की पढ़ाई चल रही है। अर्पित दिसंबर में घर आया था। जनवरी में फिर यूक्रेन गया। आठ मार्च को वापसी थी लेकिन हालात बिगड़ गए। पिता सुनील ङ्क्षसह ने बताया कि शनिवार दोपहर बेटे से व्हाट््सएप काल पर बात हुई थी। वह वहां पर किसी ढाबे पर ठहरा है। उसके साथ अन्य देशों के और कई छात्र भी हैं। वह किसी तरह से वहां से बाहर निकलना चाहते हैं, लेकिन वहां कोई उनकी मदद करने वाला नहीं है। बेटे को लेकर माता सुधा ङ्क्षसह काफी परेशान हैं।

कोटवा के सत्येंद्र यूक्रेन से रवाना
यूक्रेन मे फंसे कोटवां के रवींद्र यादव के बेटे सत्येंद्र यादव अब रवाना हो चुके हैं। चाचा राजेंद्र के पास रात दो बजे मैसेज आया कि यूक्रेन से शाम आठ बजे बस से रोमनियां बार्डर के लिए रवाना हो चुके हैं। शाम चार बजे रोमनियां बार्डर पहुंच चुके हैं। इसके बाद से संपर्क नहीं हो सका। सत्येंद्र एमबीबीएस तीसरे साल की पढ़ाई कर रहे हैं। मां शशि यादव ने कहा जब से वहां पर दोनों देशों में युद्ध छिड़ा है। रात को नींद नहीं आती है। भूख नहीं लगती है। बस एक बार बेटे को गले लगाना है। वह इतना कहकर बिलख पड़ी तो घरवालों ने उन्हें संभाला।

भूख और भय के बीच गुजारे सात घंटे
कोटवा हनुमानगंज और मायापुरी कालोनी झूंसी के सत्येंद्र यादव व वैभव तिवारी ने शनिवार को युक्रेन से लाइव सीन शेयर किया। दोनों ने बताया कि वे अपने मित्रों हेमंत वर्मा व रितिक दिवाकर के साथ अपने खर्च से टैक्सी के जरिए इवानो शहर से रोमानिया की ओर निकले। दोपहर के समय कमरे से निकले तो चार घंटे में रोमानिया की सीमा पर पहुंच गए। वहां से आगे के लिए भारतीय दूतावास से संपर्क कर रहे हैं। बस के जरिए 400 किलोमीटर का सफर तय कर रोमानिया के हवाई अड्डे पर पर पहुंचेंगे। सत्येंद्र ने फोन पर बताया कि यूक्रेन में हर तरफ बम के धमाके व धुंए के गुबार नजर आ रहा है। दहशत के आगे भूख-प्यास मर गई है। शहर के होटल से लेकर हास्टल के मेस बंद हैं। दूध, ब्रेड व बिस्किट से भूख मिटायी जा रही है। हमले के बाद कीव शहर में तबाही का मंजर है। कब कहां बम गिर जाए कुछ पता नहीं। कोटवा स्थित सत्येंद्र के घर देवरानी के साथ बैठी उनकी मां शशी यादव बेटे के लिए बेचैन हैं। बेटे के आने की उम्मीद से वह सुबह से देर रात तक दरवाजे पर बैठी राह देखती रहती हैं।