प्रयागराज ब्यूरो फाउंटेन पेन याद है। आज फाउंटेन पेन डे है। ऐसे में फाउंटेन पेन को याद करना जरुरी है। तीन दशक पहले तक शायद ही ऐसा कोई होगा जिसने पढ़ाई के दौरान फाउंटेन पेन का इस्तेमाल न किया हो। मगर समय को देखिए। एक दौर था जब फाउंटेन पेन हर जेब की शान हुआ करती थी। फाउंटेन पेन को लोग शर्ट की जेब में रखते थे। अपने कलेक्शन में रखते थे। मगर दौर आता है और जाता है। ये फाउंटेन पेन के साथ भी हुआ। अब शायद ही फाउंटेन पेन का इस्तेमाल स्टूडेंट करते हों। हां ये बात दीगर है कि पुराने ख्याल के लोग अब भी फाउंटेन पेन रखते हैं, भले ही उनका इस्तेमाल न किया जाता हो। खैर, अपने चलन से सौ साल में फाउंटेन पेन इतिहास में दर्ज हो गई। अब बॉल प्वाइंट पेन का ही इस्तेमाल ज्यादातर किया जाता है।

चॉक से तख्ती पर लिखते थे स्टूडेंट्स
आजादी के दौरान स्कूलों में पढ़ाई के लिए स्टूडेंट्स तख्ती या स्लेट पर चॉक लिखते थे। क्लास में मास्टर जब बच्चों को पढ़ाते थे तो बच्चे ब्लैक बोर्ड पर लिखे सवाल जवाब को तख्ती या स्लेट पर चॉक से लिखते थे। उसे दूसरे दिन याद कर मिटा देते थे।

सरकंडे से फाउंटेन पेन तक
सरकंडा जानते हैं। एक प्रकार की सूखी डंठल जिसको धारदार नुकीला बनाकर स्याही से लिखा जाता था। एक दौर था जब स्याही भी आसानी से उपलब्ध नहीं होती थी तो नील को घोलकर या फिर टार्च के सेल को तोड़कर उसके मसाले को घोलकर स्याही बनाई जाती थी।

1980 के बाद चलन में आई फाउंटेन पेन
1980 के दशक में फाउंटेन पेन थोड़ा बहुत सुलभ होने लगी तो आम लोगों ने भी इसका इस्तेमाल शुरु किया। इसके पहले सरकारी डिपार्टमेंट में रजिस्टर पर लिखने के लिए फाउंटेन पेन का इस्तेमाल किया जाता था। आम लोगों को फाउंटेन पेन बहुत पंसद आई। फाउंटेन पेन रखने का शौक लोगों को इस कदर हुआ कि स्कूल कॉलेज में पढऩे वाले स्टूडेंट के अलावा पढ़ाई छोड़ चुके लोग भी अपनी जेब में फाउंटेन पेन रखना अपनी शान समझते थे। शादी विवाह समारोह, बर्थ डे पार्टी, पिकनिक जाते समय लोग जेब में फाउंटेन पेन जेब में रखते थे।

जेब में लग जाती थी स्याही
फाउंटेन पेन की स्याही जेब में लग जाया करती थी। स्याही लीक होने की वजह से ये समस्या होती थी। स्याही को छुड़ा पाना बहुत मुश्किल होता था। मगर धीरे धीरे ब्रांडेड फाउंटेन पेन आने लगी। जिसमें स्याही लीक होने की समस्या नहीं होती थी।


बॉल प्वाइंट पेन
1995 के दौरान बॉल प्वाइंट पेन का चलन शुरू हुआ। इस पेन ने फाउंटेन पेन की मार्केट को तोड़ कर रख दिया। फाउंटेन पेन में स्याही भरनी पड़ती थी। गिर जाने पर उसकी निब खराब हो जाती थी। अक्सर स्याही लीक हो जाती थी। बॉल प्वाइंट पेन में ये सब समस्या नहीं थी। जिसकी वजह से उसका चलन बढ़ता गया। अब तो स्टेशनरी के कारोबार में 98 फीसदी हिस्सा बॉल प्वाइंट पेन का है।


अजब गजब है पेन का इतिहास
फाउंटेन पेन का अविष्कार 937 में उत्तर पश्चिम अफ्रीका के मगरिब क्षेत्र के खलीफा माद अल मुइज्ज ने किया था। इसके अलावा फ्रेंच इन्वेंटर पेट्राचे पोएनरु और रॉबर्ट विलियम थॉमसन का भी नाम फाउंटेन पेन के अविष्कारक के रूप में लिया जाता है। हंगरी के लेज्ज्लो जोजेफ बायरो ने 1985 में बॉल प्वाइंट पेन का पेटेंट कराया था।


2012 में हुई फाउंटेन पेन डे की शुरुआत
फाउंटेन पेन डे की शुरुआत 2012 में की गई। नवंबर के पहले शुक्रवार को फाउंटेन डे के रूप में मनाया जाता है। फाउंटेन पेन डे मनाने की शुरुआत फाउंटेन पेन डे ओआरजी ने की। इसके बाद से हर साल नवंबर माह के पहले शुक्रवार को फाउंटेन पेन डे मनाया जाने लगा।


सोने की हुआ करती थी निब
1890 के दशक में फाउंटेन पेन का इस्तेमाल राजघरानों और अंग्रेंजों ने शुरू किया। उस दौरान केवल निब वाली कलम होती थी। जिसे स्याही में डुबो कर लिखा जाता था। इसके पहले सरकंडे की कलम को स्याही में डुबो कर लिखा जाता जाता था। जब निब का ईजाद किया गया तो रईश लोग सोने की निब वाली कलम से लिखा करते थे।

जज करते हैं फाउंटेन पेन का इस्तेमाल
आज के दौर में भी हाईकोर्ट में जज फाउंटेन पेन का इस्तेमाल करते हैं। जजों के चैम्बर में फाउंटेन पेन का कलेक्शन रहता है। इसके अलावा तमाम वरिष्ठ अफसर भी फाउंटेन पेन का इस्तेमाल करते हैं।

जज तोड़ देते हैं कलम
ये बात आपको शायद ही मालूम हो कि जज अपनी कलम तोड़ देते हैं। जी हां, कोई भी जज जब किसी अपराधी को फांसी की सजा सुनाते हैं तो फैसला लिखने के बाद अपनी कलम तोड़ देते हैं। इसके पीछे कोई नियम कानून नहीं है। बस ये माना जाता है कि जिस कलम से किसी की मौत लिखी गई है, उस कलम का इस्तेमाल दोबारा फिर लिखने में न किया जाए।


20 रुपये से लाखों में कीमत
फाउंटेन पेन की कीमत बीस रुपये से
लेकर लाखों में है। अब स्याही भरने वाली फाउंटेन पेन नहीं आती है। बल्कि फाउंटेन पेन के साथ स्याही की कॉटेज रहती है। यूनिवर्सिटी रोड पर स्टेशनरी की कई दुकानें हैं। इनमें से एक सुभाष स्टेशनरी मार्ट पर पेन की हर वेरायटी का कलेक्शन मिलता है। शॉप के मालिक सुभाष कुमार ने बताया कि उनके पास 40 रुपये से लेकर साढ़े चार हजार रुपये तक कीमत की फाउंटेन पेन है। इसी तरह जीरो रोड पर नटराज पेपर कॉरपोरेशन के मालिक अर्पित अग्रवाल ने बताया कि एक दौर था जब फाउंटेन पेन बहुतायत में बिका करती थी, मगर अब बॉल प्वाइंट पेन का बिजनेस ज्यादा है।
1980 के बाद चलन में आई फाउंटेन पेन।
20 रुपये से लाखों की कीमत की है फाउंटेन पेन।
1890 के दशक में शुरु हुआ निब वाली फाउंटेन पेन का इस्तेमाल।
2012 में हुई फाउंटेन पेन डे की शुरुआत।
1985 में कराया गया बॉल प्वाइंट पेन का पेटेंट।
1980 के बाद आम लोगों के चलन में आई फाउंटेन पेन।

1970 से लेकर 1995 तक 25 साल फाउंटेन पेन का जलवा रहा। लगभग रह आदमी फाउंटेन पेन का इस्तेमाल करता था। इसके पहले आम लोगों के लिए फाउंटेन पेन सुलभ नहीं हो पाती थी। 1995 के बाद बॉल प्वाइंट पेन मार्केट में आ गई। इसके बाद फाउंटेन पेन का चलन खत्म हो गया। अब केवल शैकिया लोग गिफ्ट देने के लिए फाउंटेन पेन खरीदते हैं।
सुभाष कुमार, यूनिवर्सिटी रोड


एक दौर था जब स्टेशनरी के कारोबार में ज्यादा लोग शामिल नहीं थे। 1970 के बाद स्टेशनरी के कारोबार में बूम आया। कॉपी और पेन का इस्तेमाल आम लोग भी करने लगे थे। बीस साल तक स्टेशनरी का कारोबार खूब चमका। इसके बाद तमाम लोग इस कारोबार में शामिल हुए। तब के दौर में फाउंटेन पेन की बहुत डिमांड हुआ करती थी। अब तो बॉल प्वाइंट पेन का जमाना है।
अर्पित अग्रवाल, नटराज पेपर कारपोरेशन