प्रयागराज (ब्यूरो)।यह हकीकत है। शहर में बारिश तो हर साल होती है लेकिन ग्राउंड वाटर लेवल रिचार्ज की व्यवस्था नहीं होने से पानी नालियों के जरिए बह जाता है। विकास के नाम पर नई सड़कें, फुटपाथ और डिवाइडर भी बन रहे हैं लेकिन इनमें भी वाटर रिचार्जिंग का कोई इंतजाम नहीं
किया जा रहा है। यही कारण है कि भूगर्भ जल के अंाकड़ों मेंं हर साल गिरावट देखी जा रही है। बावजूद इसके सिस्टम कोई सबक नहीं ले रहा है।
दस में से पांच साल हुई बेहतर बारिश
पिछले दस साल की बारिश का सिनेरियो देखा जाए तो इनमें से पांच तक औसत से अधिक बारिश हुई है। लेकिन ग्राउंड वाटर लेवल की स्थिति में कोई सुधार नहीं दिख रहा है। पानी का स्टेटस हर साल तेजी से नीचे जा रहा है। कारण साफ है। एक्सपट्र्स की माने तो कुल बारिश का दस फीसदी भी रिचार्ज हो जाए तो गनीमत है। क्योंकि इसकी कोई व्यवस्था ही नहीं है। शहर को सुंदर बनाने के लिए हर साल नई कंक्रीट और आरसीसी की सड़के बनाई जा रही है। फुटपाथ पर भी वाटर रिचार्जिंग का कोई सिस्टम नहीं है।
दस साल में हुई बारिश पर एक नजर
वर्ष औसत बारिश एक्चुअल में हुई बारिश मिमी में
2012 919.9 1093.24
2013 919.9 1086.87
2014 919.9 752.71
2015 919.9 657.81
2016 919.9 937.17
2017 919.9 612
2्र018 919.9 829.31
2019 919.9 1207.08
2020 919.9 747.91
2021 919.9 1017.9
2022 919.9 543.51
यहां है रिचार्ज का संकट
पिछले साल औसत से थोड़ी कम बारिश हुई लेकिन इसे सामान्य माना गया क्योंकि मानसून देरी से आया था। बावजूद इसके तमाम एरिया में ग्राउंड वाटर लेवल में अधिक सुधार नहीं आया। यह लगभग हर साल देखने में आता है। रिचार्ज के साधन नहीं होने से बारिश का पूरा पानी नालियों से बह जाता है। शहर में कुछ एरिया तो ऐसे हैं जहां स्थिति ज्यादा नाजुक है। यहां हर साल वाटर स्टेटस जितना घटता है उससे कम रिचार्ज होता है। 2022 में भी ऐसे ही हालात रहे, जबकि इस साल 543.51 मिमी औसत बारिश हुई थी।

एरिया प्री मानसून वाटर लेवल आफ्टर मानसून वाटर लेवल (मीटर में)
अशोक नगर 10.36 9.8
बेली अस्पताल 19.2 18
बमरौली 16.71 16.15
औद्योगिक क्षेत्र 8.45 7.17
कलेक्ट्रेट 18.03 18.0
सदर तहसील 24.7 23.7
नयापुरा 16.35 15.1
झूंसी 7.92 8.05
अंदावा 13.61 12.18
माध्यमिक शिक्षा परिषद 17.9 16.4
सिविल लाइंस 17.2 17.0

डिवाइडर पर पौधे केवल शोपीस
स्मार्ट सिटी मिशन के तहत शहर की तमाम सड़कों के डिवाइडरों पर पौधे लगाए जा रहे हैं लेकिन यह महज शोपीस हैं। यह सीमेंट के गमलों में मिट्टी डालकर लगाए जा रहे हैं। इनका ग्राउंड सरफेस से कोई कनेक्शन नही है। ऐसे में बारिश का पानी इनके जरिए कतई रिचार्ज नही होगा। इसी तरह विकास के नाम पर हर साल हजारों पेड़ काटे जा रहे हैं। यह पेृड़ वाटर लेवल रिचार्ज का बहुत बड़ा जरिया हैं, लेकिन इनकी संख्या भी तेजी से कम हो रही है।
लोगों को खुद आना होगा आगे
एक्सपट्र्स कहते हैं कि रूफ टाप वाटर हार्वेस्टिंग सबसे बढिुया जरिया है, ग्राउंड वाटर लेवल रिचार्ज करने का। लेकिन एक मानक से नीचे के भवनों में इसे लगाने के आदेश नही हैं। जबकि शहर में बड़ी संख्या में छोटे घर मौजूद हैं। ऐसी कालोनी वाले चाहें तो सभी मकानों की बारिश का पानी एक कॉमन गड््ढा बनाकर उसमें स्टोर करें। उस गड्ढे में कंकड़, बालू और कोयला डाल दें। इससे छनकर साफ पानी रिचार्ज होगा और इससे पानी का संकट काफी हद तक कम हो सकता है।
नदियों की वजह से दूर है संकट
भू वैज्ञानिकों का यह भी कहना है कि प्रयागराज शहर का वाटर लेवल ओवर एक्सप्लाटेड होने के बावजूद संकट से दूर है। इसका कारण दोनों ओर से नदियों स घिरा होना है। यहां बारिश में जब नदियां उफनाती हैं तो नीचे ही नीचे वाटर लेवल मेंटेन होता है। इसका फायदा सभी एरिया को मिलता है। यही कारण है कि नदियों से लगे कई इलाकों में वाटर लेवल की स्थिति मानसून के बाद अचानक ठीक होने लगती है।

पिछले दस साल में देखा जाए तो बारिश ठीक हुई है लेकिन रिचार्ज इसका दस फीसदी भी नहीं हुआ है। इसका कारण हमारे यहां रिचार्ज की उचित व्यवस्था नहीं होना है। धीरे -धीरे लोग जागरूक हो रहे हैं, लेकिन अभी प्रयासों में अधिक तेजी की जरूरत है। तब जाकर हम जल को लेकर अपना भविष्य सुरक्षित रख पाएंगे।
प्रो। जेएन त्रिपाठी, एचओडी, जियोलाजिकल विभाग इलाहाबाद विवि

चारों ओर कंक्रीट का जंगल तैयार हो रहा है। लोग वाटर रिचार्ज के बारे में नहीं सोचते हैं। हर दूसरे घर में सबमर्सिबल लगा है। इससे पाताल का पानी तेजी से कम हो रहा है। लोगों को पानी को बचाने की मुहिम चलानी होगी। अपने घरों में वाटर रिचार्ज का कोई न कोई व्यवस्था होनी चाहिए।
रविशंकर पटेल, हाईड्रोलाजिस्ट, भूगर्भ जल विभाग प्रयागराज