- हिंदी और उर्दू के बीच एक पुल के रूप में थी उनकी पहचान
- संगम नगरी में सैकड़ों कवि सम्मेलन में कर चुके हैं शिरकत
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PRAYAGRAJ: कब तक बोझ संभाला जाए, द्वंद कहां तक पाला जाए, दोनों तरफ लिखा हो भारत, सिक्का वही उछाल जाए, तू भी है राणा का वंशज, फेंक जहां तक भाला जाए जैसी सुंदर रचनाओं की मंच से प्रस्तुति करके लोगों में देश प्रेम भरने का हुनर जानने वाले कवि व शायर वाहिद अली का दुनियां को अलविदा कहना हिंदी के साथ ही उर्दू साहित्य के लिए भी अपूर्णीय क्षति है। वाहिद अली का साहित्य व धर्म की नगरी प्रयागराज से गहरा नाता रहा है। वह सैकड़ों बार प्रयागराज में आयोजित होने वाले कवि सम्मेलनों की शोभा बढ़ा चुके हैं। उनकी मौत की सूचना मिलते ही प्रयागराज के साहित्यकारों व कवियों में शोक की लहर दौड़ गई।
अपनी सोच व वैचारिकी के साथ सदैव जिंदा रहेंगे वाहिद
मशहूर कवि व शायर वाहिद अली को याद करते हुए प्रसिद्ध कवि डॉ। श्लेष गौतम ने बताया कि वह बड़े भाई की तरह प्रेम देते थे। वाहिद अली अपनी सोच और वैचारिकी के साथ सदैव जि़ंदा रहेंगे। वाहिद का अर्थ ही अद्वितीय-अप्रतिम -अनुपम होता है और बहुत कम लोग होते हैं। जो इस दुनिया में जो अपने नाम की सार्थकता को बहुत सहजता से सिद्ध करते हैं। सुविख्यात कवि-शायर वाहिद अली वाहिद के संदर्भ को देखा जाए तो सचमुच वह अपने तरह के अलग अनोखे और विशेष कवि थे, जो सिद्ध भी थे और प्रसिद्ध भी। डॉ। श्लेष गौतम ने बताया कि काव्य मंचों की बात की जाए तो मेरे पिता कैलाश गौतम के समय से ही मैं उन्हें देखता-सुनता रहा और पिताजी के स्मृति शेष होने के बाद वाहिद भैया के साथ यात्राएं और काव्य मंचों का सफर दोनों बहुत ही अद्भुत और आत्मीय रहा। बहुत सहज-रसवंत और जीवंत भी।
रोको वाहिद यह भी नया करोना है
कवि वाहिद अली को याद करते हुए डॉ। श्लेष गौतम ने कहा कि उनकी रचना मेरी कविता में हर शब्द सलोना है, मेरे कलम में प्यार का जादू टोना है, अब मंचों के भी जहरीले बोल हुए, रोको वाहिद यह भी नया करोना हैये रचना आज के मंचों की स्थिति पर उनकी टिप्पणी थी। भारतीय संस्कृति उनके नस-नस में थी, हमारा इतिहास, हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारा आत्म सम्मान, हमारा शौर्य यह सब कुछ उनकी कविताओं के विषय हुआ करते थे। वह एक सामाजिक सर्जक की तरह अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में व्याप्त नफरत,घृणा,दोगलापन, अमानवीयता,दरिंदगी पर वार करते थे और सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को बनाए रखने का अपनी कलम के माध्यम से निरंतर प्रयास करते थे।
- वाहिद अली वाहिद की रचनाएं हमेशा ही देश की संस्कृति को सजोने का कार्य करती रही है। वह हमेशा एकता और कर्तव्य परायणता की बात करते थे।
डॉ श्लेष गौतम
वरिष्ठ कवि एवं रचनाकार
- वाहिद अली गंगा जमुनी तहजीब के अनिवार्यता थे। खासतौर पर हिंदी व उर्दू भाषा के पुल के रूप में उन्हें याद किया जाएगा। अली बजरंगबली रचना कौमी एकता की बेमिसाल उदाहरण है।
यश मालवीय
वरिष्ठ कवि एवं रचनाकार