प्रयागराज ब्यूरो । इसी नाम से बनायी गयी थी फेस टाइम एप पर सभी की आईडी
उमेश पाल हत्याकांड को अंजाम देने वाले और इसकी साजिश से लेकर लास्ट तक मॉनिटरिंग करने वाले प्रत्येक शख्स के लिए सेपरेट कोड नेम दिया गया था। इसी नाम से उनका एकाउंट फेस टाइम (केवल आई फोन पर उपलब्ध एप) पर बनाया गया था। चर्चा है कि पुलिस ने इस कोड को डिकोड कर लिया है। इसे लेकर सोमवार को दिन भर खबरें चलती रहीं। हालांकि, पुलिस के किसी भी अधिकारी या एसआईटी टीम के किसी भी सदस्य की तरफ से इसकी कोई पुष्टि नहीं की गयी है। इससे यह आशंका भी उठकर सामने आयी कि कहीं स्टोरी गढऩे के लिए तो ऐसा नहीं किया गया है?
घटना के दिन भी आया था फेसटाइम एप का जिक्र
उमेश पाल हत्याकांड 24 फरवरी को अंजाम दिया गया था। धूमनगंज एरिया के जयंतीपुर में अंजाम दी गयी इस घटना के बाद से ही फेस टाइम एप जिन्न की तरह से प्रकट हुआ था। तफ्तीश करने पर पता चला कि यह एप सिर्फ आई फोन यूजर्स के लिए है। इस एप की खासियत यह है कि यह सिर्फ फेस को रिकग्नाइज करता है। मोबाइल के लिए निर्धारित एरिया से बाहर हटते ही एप अपने आप बंद हो जाता है। इस एप की कोई भी डिटेल अपने स्तर पर पुलिस क्रैक नहीं कर सकती। इसमें पुलिस को कोई भी सुराग तभी मिल सकता है जब कोई यूजर खुद मदद करे। एप डेवलप करने वाली एजेंसी से इसकी डिटेल लेना बेहद चैलेंजिंग है। हालांकि, पुलिस घटना में शामिल रहे हत्यारों और साजिशकर्ताओं से इस एप की डिटेल जुटाने पर काम कर रही है।
अभी कोई सीधे हाथ नहीं लगा
उमेश पाल हत्याकांड का एक बड़ा सच यह है कि घटना में सीधे शामिल रहा कोई भी सदस्य पुलिस के हाथ जिंदा नहीं चढ़ा है। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से सम्बद्ध मुस्लिम बोर्डिंग हॉस्टल से पकड़ा गया गाजीपुर का युवक भी सिर्फ साजिश रचने का आरोपित है। सीधे वह नामजद भी नहीं था। घटना में नामजद अतीक और अशरफ की हत्या हो चुकी है। दोनों के पास से कोई मोबाइल बरामद होने का चांस नहीं है क्योंकि दोनों जेल के भीतर निरुद्ध थे। असद और गुलाम को पुलिस मुठभेड़ में ढेर कर चुकी है। इन दोनों का मोबाइल (जो घटना के दिन इन दोनों ने इस्तेमाल किया था) पुलिस को मिल चुका है? इसका भी कोई संकेत अभी नहीं है। संभव है कि पुलिस के पास हो तो उसने कोई डिटेल शेयर नहीं किया है। असद के दोस्तों से पूछताछ में कुछ तथ्य जरूर पता चले हैं लेकिन इलेक्ट्रानिक एवीडेंस के रूप में इस्तेमाल किया जा सकने वाला कुछ हाथ लगने की पुष्टि पुलिस ने नहीं की है।

दिन भर चलती रही कहानी
सोमवार को इस घटना को अंजाम देने वालों के कोड नेम को डिकोड कर लिये जाने की खबर चर्चा में रही। दावा किया गया कि यह जानकारी पुलिस की तरफ से मिली है लेकिन किसी भी स्तर पर किसी पुलिस अफसर ने इसे कन्फर्म नहीं किया। कोड जिसे डिकोड कर लिया गया है? उसकी कुछ डिटेल जो सामने आयी है उसके मुताबिक पूरे आपरेशन से अतीक और अशरफ सीधे-सीधे जुड़े हुए थे। इसमें नैनी सेंट्रल जेल में बंद अली का नाम और जोड़ लिया गया है।

किसे क्या नाम दिया गया
अतीक अहमद बड़े 006
अशरफ छोटे 007
असद अंश_यादव 00
अली अहमद पटेल 007
गुड्डू मुस्लिम ठाकुर 008
नियाज ङ्गङ्र्घं११२२
अरमान बिहार टावर
खान सौलत ्रस्र1श०१०

बाक्स
अली से मिलने पर रोक
नैनी सेंट्रल जेल में निरुद्ध चल रहे मरहूम अतीक अहमद के दूसरे नंबर के बेटे अली से जेल में मिलाई पर रोक लगा दी गयी है। उसके बैरक के आसपास की सिक्योरिटी टाइट कर दी गयी है।