प्रयागराज (ब्‍यूरो)। लोगों को इस जानलेवा बीमारी से बचाने के लिए हर साल 12 नवंबर को वल्र्ड निमोनिया डे के मौके पर जागरुक किया जाता है। सबसे अहम यह है कि निमोनिया से पीडि़त एक तिहाई बच्चों को ही एंटी बायटिक दवाएं मिल पाती हैं। आंकड़ों पर जाएं तो 5 साल से कम उम्र के 10 से 15 फीसदी निमोनिया पीडि़त बच्चों की जाना मुश्किल होता है।

कैसे होता है निमोनिया
निमोनिया मुख्य तौर पर बैक्टीरिया, वायरस या फंगल के कारण होता है।
मौसम बदलने, सर्दी लगने, फेफड़ों पर चोट लगने और चिकनपॉक्स जैसी बीमारियों में इसका खतरा ज्यादा बढ़ जाता है।
इसके अलावा टीबी, एचआईवी पॉजिटिव, एड्स, अस्थमा, डायबिटीज, कैंसर और दिल के मरीजों में भी निमोनिया होने की संभावना बहुत ज्यादा होती है।
अब तो प्रदूषण की वजह से भी लोगो में निमोनिया की शिकायत देखने को मिल रही है।

क्या है लक्षण
निमोनिया होने पर मरीज को तेज बुखार
खांसी में बलगम
सांस लेने में तकलीफ
हार्ट बीट्स का तेज होना
उलटी, दस्त, भूख न लगना, बहुत ज्यादा कमजोरी लगना और बेहोशी जैसा महसूस होना

कैसे होगा बचाव
निमोनिया होने पर भरपूर आराम करने और पर्याप्त नींद लेना
शरीर में पानी की कमी न होने देना
जूस, नारियल पानी और नींबू पानी काफी फायदेमंद साबित होता है
इस दौरान स्टीम लेने से भी शरीर को काफी राहत मिलती है
इलाज के दौरान एंटी बायटिक लेने से आराम मिलता है
2 साल से छोटे बच्चों और 65 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को टीका लगवाएं
खांसते या छींकते वक्त मुंह पर नैपकिन या रुमाल जरूर रखें
इसमें सिगरेट, शराब या स्टेरॉयड लेने से भी परहेज करना चाहिए
लहसुन, मेथी के बीज, लाल मिर्च, तिल के बीज और सब्जियों के जूस को निमोनिया में काफी फायदेमंद माना जाता है

निमोनिया ने ली सबसे ज्यादा जान
इस साल कोरोना काल में निमोनिया ने सबसे ज्यादा लोगों की जान ली। हजारों लोग इसकी चपेट में आकर मर गए। डॉक्टर्स का कहना है कि कोरोना के दौरान होने वाले निमोनिया का इलाज आसान नही था। दवाएं बेअसर साबित हो रही थीं। फेफड़े के ऊपर जेली जैसी लेयर बना लेने स मरीज निमोनिया का शिकार हो रहा था और इससे उसकी सांस लेने की क्षमता खत्म हो जाती थी।

बच्चे और बुजुगों के लिए निमोनिया सर्वाधिक खतरनाक है। अगर एक बार वेंटीलेटर पर गए तो फिर जान बचाने में मशक्कत करनी पड़ती है। दवाओं के साथ योगा से फेफड़े की क्षमता मजबूत होती है। ठंड के मौसम में कोहरा पडऩे पर दमा और सीओपीडी के मरीजों को अधिक दिक्कत होती है।
डॉ। आशुतोष गुप्ता, चेस्ट फिजीशियन