प्रयागराज (ब्‍यूरो)। यदि आप बंगाली डिस और गाने एवं कार्यक्रमों को देखने के शौकीन हैं तो आपके लिए एक सुनहरा मौका है। जगत तारन गोल्डन जुबली कॉलेज में रविवार को बगैर देर किए आप दोपहर बाद बाद पहुंच जाइए। क्योंकि यहां पर बंगाली सोशल एण्ड कल्चरल एसोसिएशन की ओर से पोष पार्वन मेले का आयोजन हो रहा है। इस मेले में लगने वाले स्टालों पर 95 प्रतिशत खाने पीने के सामान बंगाली ही होंगे। साथ ही बंगाली गाने और अन्य कल्चरल प्रोग्राम का भी आनन्द यहां उठा सकेंगे। पोष पार्वन मेला बंगाली समाज के लोग बड़े धूमधाम से बनाते हैं। एक तरह से इस महीने में यह मेला बंगाली समाज का एक पर्व भी होता है। इतना सब कुछ जानकर यदि आयोजन में जाना चाहते हैं तो यह भी जान लीजिए कि इस मेले की शुरुआत कब और कहां एवं कैसे हुई।

आठ साल से यहां लग रहा है मेला
बंगाली सोशल एंड कल्चरल एसोसिएशन के लोग बताते हैं कि यह मेला सिर्फ मेला ही नहीं बंगाली समाज का एक पर्व भी है। इस मेले की शुरुआत कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर के द्वारा वर्षों पूर्व कोलकाता के शांति निकेतन से की गई थी। तभी से पूरा समाज इस पोष पार्वन मेला को पर्व के रूप में आयोजित करता आ रहा है। यहां पर यह मेला आठ साल पूर्व पहली बार एंग्लो बंगाली से शुरू हुआ था। तब से आज तक परंपरागत तरीके से शहर में बंगाली सोशल एण्ड कल्चरल एसोसिएशन के द्वारा मेले का आयोजन किया जाता है।

50 हजार से अधिक बंगाली समाज के लोग करते हैं
यहां पर करीब 50 हजार से भी अधिक बंगाली समाज के लोग निवास करते हैं। बताते चलें कि कहने को तो यह मेला बंगाली समाज का है, मगर जाते हर वर्ग व धर्म के लोग हैं। इस मेले की खासियत यह है कि यहां पर सिर्फ बंगाली डिस के स्टाल लगाए जाते हैं। स्टालों पर परिधान और बंगाली ज्वैलरी के भी शॉप मेले में लगाए जाते हैं। खाने में पायश यानी बंगाली खीर और पीठे पुटली यह डिस गुझिया की तरह होता है। जैनगर कोलकाता का फेमस डिस मोआ का भी स्वाद ले सकेंगे। यह मोआ डिस धान के लावा और खोआ सहित कुछ अन्य आइटम मिलाकर तैयार किए जाते हैं जो काफी स्वादिष्ट होते हैं। इसी तरह दर्जनों खाने पीने व कपड़े एवं बंगाली ज्वैलरी के स्टॉल मेले में आप को मिल जाएंगे। खाने पीने में वेज के साथ नानवेज व्यवस्थाएं भी यहां की गई हैं।

शाम को ही पहुंच चुके हैं कलाकार
पोष पार्वन मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन कोलकाता के कलाकारों द्वारा प्रस्तुत किए जाएंगे। टीम शनिवार को शहर को ही शहर में पहुंच चुकी है। इन कार्यक्रमों में बंगाली गाने, नृत्य व नाट्य जैसे अन्य कलाएं देखने व सुनने को मिलेंगी। सारा कुछ इस मेले में बंगाली कल्चर पर आधारित होगा। मेले में बंगाली समाज के लोगों के साथ सर्व समाज के लोग मिलेंगे। खास बात यह कि यहां पर स्वास्थ्य चेकअप कैंप भी लगाए जाएंगे।

पोष पार्वन के मेले की परंपरा यूं तो काफी पुरानी है। मगर, जिले में इसका आयोजन पिछले आठ वर्षों से होता आ रहा है। मेला में स्टालों पर बंगाली डिस ही होते हैं। जिसका लुत्फ उठाने के लिए सर्व समाज के लोग आते हैं। कोलकाता के कलाकारों द्वारा मेले में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं।
शंकर चटर्जी, सचिव बंगाली सोशल एण्ड कल्चरल एसोसिएशन

यह मेला बंगाली समाज की एक परंपरागत पर्व है। इस मेले में खाने पीने से लेकर होने वाले कल्चरल प्रोग्राम भी बंगाली कल्चर पर ही आधारित होते हैं। मेले में वेज और नानवेज दोनों तरह के बंगाली आईटम के स्टाल लगाए जाते हैं। यहां आकर लोग बंगाली समाज की रीतियों व उनके कल्चर और डिसेज के बारे में जानते हैं और इंज्वाय करते हैं।
देवराज चटर्जी, कोषाध्यक्ष बंगाली सोशल एण्ड कल्चरल एसोसिएशन

इस मेले की शुरुआत सबसे पहले कवि गुरु रविंद्र नाथ टैगोर ने की थी। उन्हीं के जरिए इस मेले का आयोजन पहली बार कोलकाता के शांति निकेतन में किया गया था। इसके पीछे कवि गुरु की एक मंशा व विचार भी बड़ी वजह थी। इस मौसम में बंगाल में खजूर गुड़ अति मात्रा में होता था। इस मेले में खजूर गुड़ से बने आइटम ज्यादा हुआ करते थे।
अजय बनर्जी, मेंबर बंगाली सोशल एण्ड कल्चरल एसोसिएशन

बंगाली समाज का यह एक मेला ही नहीं पर्व भी है। हम इसे बंगाली में पोष पार्वन मेला भी कहते हैं। हालांकि आम भाषा में पौष मेला भी कहा जाता सकता है। इस मेला को आयोजित करने के पीछे कई वैज्ञानिक दृष्टिकोण है। सिर्फ बंगाली समाज ही इस मेले में हर समाज व धर्म के लोग आते हैं। जो बंगाली व्यंजनों व गाने एवं नृत्य आदि का लुत्फ उठाते हैं।
प्रमोद चंद्र, वेलविशर बंगाली सोशल एण्ड कल्चरल एसोसिएशन