प्रयागराज (ब्यूरो)।निर्वाचन आयोग ने चुनाव के दौरान ईवीएम में एक नोटा का आप्शन भी दिया है। जिसका मकसद है कि अगर वोटर्स को एक भी प्रत्याशी पसंद न आए तो वह नोटा दबाकर सभी को नकार सकता है। नगर निगम चुनाव में भी वोटर्स ने जमकर नोटा का प्रयोग किया। उन्होंने 2060 वोट नोटा को दिए। ऐसे में यह बटन मेयर पद के लिए 8 उम्मीदवारों पर भारी पड़ गया। मतलब आठ उम्मीदवारों को नोटा से भी कम वोट मिले हैं। शनिवार को मतगणना स्थल पर परिणाम आने के बाद यह भी चर्चा का विषय रहा।

ये नोटा से भी कमजोर कैंडीडेट

मेयर पद के चुनाव में जिन कैंडीडेट को नोटा से भी कम वोट मिले, उनमें निर्दलीय गणेशजी त्रिपाठी को 1696 वोट, निर्दलीय गुड्डू गुप्ता को 975, निर्दलीय मो। नसीम हाशमी को 1110, निर्दलीय डॉ। नीरज को 1968 वोट मिले हैं। इसके अलावा निर्दलीय मनोज कुशवाहा, रमेश कुमार, राजेश कुमार और शैलेंद्र प्रजापति भी नोटा से अधिक वोट नही पा सके। कुछ ऐसे भी प्रत्याशी है जिनके वोटों की गिनती नोटा से थोड़ा ही अधिक रही है। अगर कुछ वोट वह कम पा जाते तो उन्हें भी नोटा पटकनी दे सकता था।

वार्डों में भी खूब पड़ा नोटा

इसी तरह वार्डों के चुनाव में भी वोटर्स ने नोटा का जमकर यूज किया। वार्ड नंबर एक में 54, दो में 85, तीन में 43, चार में 41, पांच में 77, छह में 49, सात में 23 लोगों ने नोटा का बटन दबाया है। इस तरह से प्रत्येक वार्ड में मतदाताओं ने नोटा का बटन दबाकर जागरुकता परिचय दिया। मेयर पद के लिए डाले गए 2060 नोटा वोट का प्रतिशत 0.41 रहा है। जिसे कमजोर नही माना जा सकता है।

नहीं जानते हैं नोटा की ताकत

बता दें कि वर्ष 2013 में 11 नवंबर से 4 दिसंबर के बीच दिल्ली, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और मिजोरम में हुए विधानसभा चुनाव में पहली बार नोटा का विकल्प रखा गया था। जिसे नन आफ द एबोव कहा गया। नियमानुसार अगर प्रत्याशियों केा मिले वोटों से अधिक नोटा पड़ जाता है तो सभी अयोग्य घोषित कर चुनाव पुन: कराया जा सकता है। 2017 में हुए नगर निगम चुनाव में भी नोटा का जमकर प्रयोग किया गया था। उस चुनाव में भाजपा की प्रत्याशी रहीं अभिलाषा गुप्ता ने सपा के विनोद चंद्र दुबे को 63 हजार मतों से हराकर मेयर सीट पर कब्जा जमाया था।