प्रयागराज (ब्यूरो)। गर्मी का सीजन है और पानी की जरूरत बढ़ गई है। बढ़ी हुई जरूरत को कैश कराने के लिए शहर में कई आरओ प्लांट खुल गए हैं। हालांकि इनमें से एक के भी पास पानी बेचने या पाताल से पानी निकालने का लाइसेंस नहीं है। इस तरह कैंपर में बिक रहे पानी के इस कारोबार को आप अवैध कह सकते हैं। क्योंकि भू-गर्भ जल विभाग में इस तरह के एक भी प्लांट का लाइसेंस नहीं है। चूंकि लाइसेंस नहीं है, लिहाजा इनके यहां पानी में गुणवत्ता की जांच करने भी कोई नहीं जाता। यह लोग खुद से पानी की जांच कराना मुनासिब नहीं समझते। जमीन से पानी निकाल कर वे आरओ मशीन में फिल्टर्ड करके लाखों रुपये कमा रहे हैं। पानी के इस अवैध धंधे पर न तो इनकम टैक्स की नजर और न ही प्रशासनिक अफसरों की। कहीं कोई टैक्स देना नहीं है लिहाजा वे 20 से 25 रुपये में प्रति कैंपर पानी आसानी से बेच रहे हैं। यह हालात तब हैं जब शहर में ब्रांडेड कंपनियों के बोतल पानी की खपत हजारों पेटी एक हफ्ते में बिक जाती है। पानी के कारोबार की यह सच्चाई शनिवार को दैनिक जागरण आईनेक्स्ट द्वारा की गई पड़ताल में सामने आई।
03 फाफामऊ, फूलपुर व शंकरगढ़ में लगे हैं प्लांट
06 महीने पर प्लांट में पैक हो रहे पानी की जांच के हैं नियम
50 हजार पेटी हर हफ्ते बिक जाते हैं ब्रांडेड कंपनियों का पानी
15 बोतल पानी एक पेटी में बताते हैं एजेंसियों के लोग
15 से 20 हजार करीब कैंपर पानी सभी प्लांट मिलकर रोज बेचते हैं
20 से 25 रुपये प्रति कैंपर पानी बेचते हैं सेल्समैन
1845772 कुल पापुलेशन बताई जाती है शहरी एरिया में
लाइसेंस एक नहीं, आरओ प्लांट दर्जनों
पड़ताल की शुरुआत भू-गर्भ जल विभाग से शुरू की गई। विभाग में किए गए सवाल से पता चला कि यहां पर बोतल बंद पानी के लिए प्लांट हैं। जिनमें एक शंकरगढ़, दूसरा फाफामऊ और तीसरा फूलपुर में बताया गया। कहा गया कि इन प्लांटों के पास पाताल से पानी निकालने के लिए भू-गर्भ जल विभाग से परमीशन ली गई है। हर छह महीने पर यहां पानी के गुणवत्ता की जांच की जाती है। इसी तफ्तीश के दौरान पता चला कि शहर से लेकर गांव तक आरओ के एक भी प्लांट नहीं है। ऐसा भू-गर्भ जल विभाग के लोग इसलिए कह रहे हैं उनके पास ऐसे प्लांट का कोई रजिस्ट्रेशन नहीं है। इस पर गौर किया जाय तो मतलब यह हुआ कि शहर में जितने भी आरओ प्लांट लगाकर कैंपर वाटर बेच रहे हैं वह सब अवैध हैं। क्योंकि इनके पास किसी भी विभाग का लाइसेंस नहीं है।
गुणवत्ता पर सवाल, नहीं कराते पानी की जांच
ऐसी दशा में यहां शहर से लेकर कस्बों के अंदर घरों व दुकानों पर बिकने वाले पानी की गुणवत्ता पर सवाल खड़े हो गए हैं। ऐसा इसलिए कि क्योंकि आरओ प्लांट का लाइसेंस है नहीं, लिहाजा वह पानी की जांच खुद से नहीं कराते। रजिस्टरों में ऐसे प्लांट व संचालक का नाम नहीं होने से विभागीय लोग भी यहां पानी जांच के लिए नहीं पहुंच पाते। रसूलाबाद गंगा बाल विद्या मंदिर के बगल ऐसे ही एक प्लांट चलाने वाले शख्स का कहना है कि शहर से कस्बे तक में कुल मिला कर महीने भर में 15 से 20 हजार कैंपर पानी की खपत होती है। यह अनुमानित डाटा वह पूरे जिले भर के आरओ का बताता है। हालांकि शहर के अंदर घर व दुकानों पर कैंपर वाटर की सप्लाई करने राघवेंद्र निषाद, दीपक चौरसिया गोविंदपुर, श्यामबाबू करेली आदि बताते हैं कि इस गर्मी में सेल और भी अधिक है। भू-गर्भ जल विभाग में इन आरओ प्लांट के संचालन का कोई लाइसेंस हो या नहीं, पर पड़ताल में यह पता चला कि शहर के हर एरिया में इस तरह के आरओ प्लांट की भरमार है।
50 से 60 हजार पेटी हर हफ्ते खपत
पानी के कारोबार की पड़ताल के दौरान ब्रांडेड बोतल बंद पानी के कई डिस्ट्रीब्यूटर से बात की गई। इन लोगों ने बताया कि तीन से चार ब्रांडेड कंपनियों के बोतल बंद पानी मुख्यता मार्केट में मौजूद हैं। प्रयागराज में इन सभी कंपनियों के पानी की खपत को मिला लिया जाय तो हर हफ्ते 50 से 60 हजार पेटी पानी की खपत है। यह बात दीगर है कि किसी कंपनी का पानी ज्यादा तो किसी का कम बिक रहा हो। एक सवाल पर उनके जरिए बताया गया कि प्रति पेटी में 15 बोतल पानी होता है।
जानिए कितने सख्त हैं नियम
आरओ प्लांट बोरिंग के लिए केंद्रीय भूजल बोर्ड या भूगर्भ जल विभाग की एनओसी यानी परमीशन हो।
आईएसआई के बिना बंद बोतल का पानी बेचने पर सख्त है पाबंदी और कार्रवाई के लिए भी हैं नियम
फूलपुर, शंकरगढ़ व फाफामऊ में अधिकृत बोतल बंद के प्लांट हैं, मगर कई प्लांट यहां बगैर लाइसेंस के संचालित हैं।
शहर के सिविल लाइंस, रसूलाबाद, म्योराबाद, राजापुर, करेली, मम्फोर्डबंद, अल्लापुर, दारागंज, धूमनगंज, ट्रांसपोर्टनगर, राजरूपपुर, फाफामऊ व नैनी में संचालित हैं बगैर परमीशन दर्जनों आरओ प्लांट
बगैर अनुमति के आरओ प्लांट लगाने वालों के खिलाफ पांच से दस लाख रुपये तक है जुर्माना लगाने का प्राविधान, भू-गर्भ जल विभाग की रिपोर्ट पर डीएम कर सकते हैं कार्रवाई।
ऐसे लगाए जाते हैं आरओ प्लांट
झलवा पीपल गांव और रसूलाबाद में आरओ प्लांट के दो संचालकों से रिपोर्टर द्वारा बात की गई। उनसे जब पूछा गया कि हम भी प्लांट लगाना चाहते हैं आप अनुभवी हैं सजेस करें। जवाब मिला करीब पांच लाख रुपये का खर्च बैठता है। एक कम से कम 10 बाई 10 के रूम जितना जगह होना चाहिए। उसी में पूरा सेटअप लग जाएगा। साथ ही दो से तीन पानी टंकी रखना होगा। एक वाटर कूलिंग मशीन आती है उसे खरीदना होगा ताकि पानी टंकी में भरकर मशीन से ठंडा किया जा सके। इसके बाद सप्लाई के अनुरूप कैंपर यानी पानी का जार लेना होगा। साथ ही बिजली का कनेक्शन भी चाहिए। पांच लाख रुपये इन्हीं कार्यों पर खर्च होंगे। इसके बाद मार्केट में सेल्समैन उतार कर ग्राहक बनाएं और 20 से 25 रुपये कैंपर पानी आराम से बेचिए।
बोतल बंद ब्रांडेड कंपनियों का पानी तो जांच के बाद ही मार्केट में आता है। सबसे ज्यादा पानी की स्वच्छता संदेह के दायरा में वे हैं जो कैंपर में लोग आरओ के नाम पर बेचते हैं। कैंपर के पानी में गुणवत्ता की जांच बेहद जरूरी है।
सत्यम त्रिपाठी, आर्कीटेक
भू-गर्भ जल स्तर तेजी से खिसक रहा है। यह बात सभी को मालूम है। बावजूद इसके बगैर परमीशन के आरओ प्लांट लगाकर लोग शहर के अंदर तमाम लोग पानी बेच कर लाखों रुपये कमा रहे हैं। ऐसे लोगों पर सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए।
कमलेश सिंह, समाजसेवी
आरओ का पानी बता कर कैंपर में पानी बेचने वालों की बाढ़ आ गई है। लोग आरओ के नाम पर बीस से पच्चीस रुपये में उसे खरीद जरूर रहे हैं। मगर वह आरओ का ही यह दावे से कह पाना मुश्किल है। क्योंकि उस पर कोई मैनुफैक्चर डेट या ऐसा कुछ तो लिखा नहीं होता।
संदीप कुमार, दवा व्यापारी
सबसे बढिय़ा तो हैंडपम्प व कुएं का पानी होता है। चूंकि शहर में सप्लाई के पानी की शुद्धता ठीक नहीं है। लिहाजा लोग कैंपर का पानी आरओ के नाम पर खरीद रहे है। आरओ प्लांट लगाकर पानी का व्यापार बगैर परमीशन करने वालों पर कार्रवाई होनी चाहिए। सिर्फ जल स्तर नीचे जा रहा यह कहने से मात्र से सुधार तो होगा नहीं।
वरुण मिश्रा, शिक्षक
ऐसे आरओ प्लांट को चिन्हित करके कार्रवाई की जाएगी। करीब 70 से अधिक बगैर परमीशन भू-गर्भ जल निकालने वालों को नोटिस पूर्व में दी जा चुकी है। आरओ प्लांट की कोई एनओसी विभाग ने जारी नहीं की है।
रवि पटेल, वैज्ञानिक भू-गर्भ जल विभाग