प्रयागराज (ब्‍यूरो)। मस्तिष्क में नई कोशिकाएं लगातार बनती है और कई कोशिकाएं नष्ट होती जाती हैं्र। 65 वर्ष के होने के बाद से कोशिकाओं के नष्ट होने की मात्रा बढ़ती जाती है और नई कोशिकाओं के बनने में कमी आ जाती है्र। कोशिकाओं के पतन मानव मस्तिस्क में डिमेंशिया और अल्जाइमर की स्थिति पैदा करते है्र। बुजुर्गों में उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, अधिक वजन व मोटापा, टाइप 2 मधुमेह इसके जोखिम को और बढ़ा देते हैं्र।

ऐसे होगा बचाव
विशेषज्ञ मानते हैं कि जो आपके दिल के लिए अच्छा है वही आपके दिमाग के लिए भी अच्छा है्र।
इसका मतलब है की आप बीमारी के जोखिम को कम करने में मदद कर सकते हैं्र
इसलिए घर के बुजुर्गों की मानसिक स्वास्थ्य का ध्यान रखना है्र उनके संतुलित आहार दें
वह व्यायाम करें, तंबाकू व एल्कोहल प्रयोग न करें्र।
उनका ख्याल रखें और कभी अकेले बाहर न जाने दें।

लक्षणों को पहचानें
याद्दाश्त कमज़ोर होना
घर का रास्ता भूलना
गुस्सा व चिड़चिड़ापन
एकाग्रता में कमी
बातचीत में परेशानी
अपने शब्दों को दोहराना
जगह या समय को लेकर गुमराह होना
तर्क करने व निर्णय लेने में कठिनाई

ऐसे करें देखभाल
बुजुर्ग को दिन में ज्यादा सोने न दें
कैलंडर और घड़ी आदि से दिन और समय का ज्ञान करवाते रहें।
उन्हें अकेलापन महसूस न होने दें्र।
उनकी बातों को नजरंदाज न करें।
उनको ध्यान से सुनें्र ऐसे उपाय करें की उनका मन व्यस्त रहे्र।
प्रकृति से उनका संपर्क बनाए रखें। पार्क में उन्हें घुमाने ले जाए।

ऐसे बुजुर्ग हैं मौजूद
नैनी क्षेत्र में स्थित आधारशिला वृद्धाश्रम के संचालक सुशील श्रीवास्तव बताते हैं कि 'हमारे वृद्धाश्रम में अभी कुल 85 बुजुर्ग रह रहे हैं्र। इनमें 18 ऐसे हैं जो अल्जाइमर डिमेन्शिया से पीडि़त हैं्र। जिला मानसिक स्वास्थ्य की टीम समय-समय पर आकर सभी बुजुर्गों की जांच करती है्र। ऐसे बुजुर्गों को मनोवैज्ञानिक पद्धति व दवा के माध्यम से उनकी स्थिति को बेहतर किया जा रहा ह.ै्र प्रतिवर्ष लगभग 25-30 बुजुर्ग वृद्धाश्रम तक आते हैं्र। इस मामले में यही कहना चाहूँगा की बुजुर्गों के मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लें्र।

बुजुर्गों को अपनेपन और देखभाल की दरकार होती है। मस्तिष्क की कोशिकाएं कमजोर हो जाने से उन्हें भूलने की आदत हो जाती है। ऐसे में उन्हें अकेले बाहर न जाने दें। उनकी बातों को इग्नोर न करें। हर साल बड़ी संख्या में ऐसे केसेज आते हैं जहां बुजुर्ग घर से निकलकर खो जाते हैं।
डॉ। इशान्या राज नैदानिक मनोवैज्ञानिक, काल्विन अस्पताल