प्रयागराज (ब्यूरो ।) कहा जाता है कि डॉक्टर धरती पर भगवान का दूसरा रूप होते हैं। कभी कभी यह सही भी लगता है। क्योंकि समाज में कुछ ऐसे डाक्टर भी हैं जो मरीजों के साथ समाज की सेवा में भी लगे रहते हैं। ऐसा करने से उनका दूसरों की नजर में मान सम्मान बढ़ जाता है। वह समाज के लिए मिसाल बन जाते हैं। डॉक्टर्स डे के मौके पर हम ऐसे ही कुछ डॉक्टर्स की बात कर रहे हैं जिन्होंने मरीज और समाज की सेवा करने में कोई कसर नही छोड़ी।
.तो खराब हो जाती जिंदगी
गुजरात के अहमदाबाद शहर में एक मोटर कंपनी में काम करने वाले नन्हे लाल फूलपुर के रहने वाले हैं। वह कहते हैं कि 2020 में मेरे दोनों कूल्हे खराब हो गए थे। ऐसा एक जन्मजात बीमारी की वजह से हुआ था। इसके इलाज के लिए मैंने गुजरात और फिर मुुूंबई में लाखों रुपए खर्च कर दिए। फिर भी आराम नही मिला। पैसे खर्च हो गए थे और बीमारी बढ़ती जा रही थी। जब पैसे समाप्त हो गए तो मैंने अपने गृह जनपद प्रयागराज का रुख किया। यहां पर आर्थोपेडिक सर्जन डॉ एआर पाल को दिखाया। उन्होंने मेरी मजबूरी समझी और इलाज शुरू किया। मैं होपलेस हो चुका था लेकिन डॉक्टर ने आशा की किरण जगा दी। दो साल मेरा इलाज चला। दोनो कूल्हे बदले गए। यूं समझ लीजिए कि मेरा उतना ही पैसा खर्च हुए जितना जरूरी था। इलाज पूरी तरह निशुल्क था। डॉ। पाल ने मेरा हर कदम साथ दिया। आज उनकी वजह से मैं दोबारा अपना जीवन जी पा रहा हूं। मेरी उम्र 28 साल है और जल्द ही मेरा विवाह भी होगा। यह सब डॉक्टर साहब की वजह से है।
फिर से दुनिया देखने का मिला मौका
नीमसराय के रहने वाले सुंदर (काल्पनिक नाम) की दोनों आखों की रोशनी बचपन में संक्रमण की वजह से चली गई थी। 18 साल की उम्र तक वह पूर्ण अंध रहा। परिवार के लोगों ने कई जगह इलाज कराने की कोशिश की लेकिन सफलता नही मिली। सब थक हारकर बैठ गए। फिर परिजनों ने सुंदर का रजिस्ट्रेशन एमडीआई हॉस्पिटल में करा दिया। सुंदर बताते हैं कि मुझे जरा भी अहसास नही था कि मैं इस दुनिया को फिर से देख सकूंगा। एक दिन अचानक से कॉल आया कि एमडीआई हॉस्पिटल में बुलाया गया। कार्निया ट्रांसप्लांट होगा। मैं परिवार के साथ गया। एक छोटा सा आपरेशन डॉ। एसपी सिंह ने किया। अगले चौबीस घंटे में मैं दुनिया देख सकता था। मेरी खुशी का ठिकाना नही था। डॉक्टर साहब को देखकर मैं रो पड़ा। लगा कि मेरे जीवन में इनसे बड़ा स्थान आज शायद ही किसी का हो। यह कहानी केवल सुंदर की नही। एमडीआई के डायरेक्टर और एमएलएन मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल प्रो। एसपी सिंह ने अब तक 1500 लोगों का कार्निया ट्रांसप्लांट कर उनके जीवन में उजाला किया है। साथ ही 1.40 लाख लोगों की अब तक आई सर्जरी को अंजाम दिया है। लिम्का बुक आफ रिकार्ड में उनका नाम भी शामिल है।
साथ नही देते तो मर जाता बुजुर्ग
कोरोना काल में अपने भी मौत के डर से पराए हो गए थे। कोई किसी की सुध नही ले रहा था। ऐसे में मुट्ठीगंज के रहने वाले 70 साल के बुजुर्ग दिनेश चंद्र को उनके बेटे ने बेसहारा छोड़ दिया। वह अकेले कमरे में भूख और प्यास से मरणासन्न स्थिति में आ गए। तब पूर्व सीएमओ डॉ। पीके सिन्हा की संस्था बुढ़ापे की लकड़ी ने उनकी सुध ली। डॉ। सिन्हा ने जानकारी होने पर अपने दो मेंबर विनीत राय और विकल्प श्रीवास्तव को मौके पर भेजा। दिनेश चंद्र की खानपान की व्यवस्था कराई और वृद्धावस्था पेंशन भी दिलवाई। फिर उनके बेटे की काउंसिलिंग की। जब वह उन्हे स्वीकार करने को तैयार हुआ तब संस्था ने बुजुर्ग को छोडा। बता दें कि डॉ। सिन्हा वृद्धाश्रम का संचालन भी करते हैं। साथ ही वह गवर्नमेंट वेलफेयर पेंशन एसोसिएशन, इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी आफ थर्ड एज ग्रुप, आल इंडिया सीनियर सिटीजन कंफेडरेशन से भी जुडे हैं। वह कहते हैं कि डॉक्टरी पेशे के साथ समाजसेवा का भी अपना मजा है। हमारी सभी संस्था बुजुर्गों के वेलफेयर के लिए लगातार काम कर रही हैं।
मरीजों से जोड़ा है अपनो सा नाता
बेली अस्पताल के अधीक्षक और आई सर्जन डॉ। एमके अखौरी की छवि शांत स्वभाव के चिकित्सक की है। लेकिन उनका एक और पहलू है जिससे लोग परिचित नही हैं। ऐसे दर्जनभर मरीज हैं जिनसे वह आज भी जुड़े हुए हैं। समय समय पर उनकी आर्थिक सहायता भी करते हैं। बताते हैं कि एक साल पहले सोरांव की रहने वाली ननकी नाम की महिला आई थी। उसके पास महज दस रुपए थे और खाने के पैसे भी नही थे। आंखों की रोशनी लगभग जा चुकी थी। मैने उसे देखा तो दया आ गई। उसका इलाज किया, दवाएं और खाना भी मंगाकर दिया। आज भी जरूरत पडऩे पर उसकी सहायता करते हैं। ऐसे एक दर्जन मरीज आज भी उनके संपर्क में हैं। हालांकि डॉ। अखौरी इस मामले में अधिक बात करने से मना कर देते हैं।