प्रयागराज (ब्यूरो)। यह इसलिए हुआ क्योंकि शातिर आईटी प्रोफेशनल थे। रत्नेश भारतीय ने जीआरटी भुवनेश्वर से कंप्यूटर साइंस में बीटेक किया है। अभिषेक शर्मा ने एमए के साथ बैचलर और मास्टर आफ कंप्यूटर साइंस की डिग्री हासिल कर रखी है। विनय कुमार ने केवल बीए तक पढ़ाई की है लेकिन उसका दिमाग भी कम्प्यूटर पर खूब चलता था। पड़ताल में पता चला कि तीनों नई दिल्ली में रहते थे। अलग-अलग कंपनी में काम करते थे। अभिषेक वेबसाइट डेवलप करने का काम करता था। पूरे महीने काम करने पर उसे सिर्फ 16 हजार रुपये पगार के रूप में मिलते थे। अभिषेक के सम्पर्क में आने के बाद रत्नेश ने भी वेबसाइट डेवलप करना सीखा। लॉकडाउन में वर्क फ्राम होम होने पर उनके अंदर अपराध के रास्ते पर ले जाने वाला कीड़ा पनपने लगा। एक बार सफलता मिल गयी तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।
नाम देखकर चौंक गये
पकड़े गये विनय कुमार के नंबर को तमाम लोगों ने एसएसपी कोलकाता के नाम से सेव कर रखा था। उसने कई लोगों को अपने को इसी रूप में इंट्रोड्यूज भी किया था। साइबर थाने के प्रभारी राजीव तिवारी ने विनय को कॉल लगायी तो ट्रू कॉलर से नाम एसएसपी कोलकाता डिस्प्ले हो रहा था। इससे वह कुछ पल के लिए शॉक्ड हो गए। इसकी जानकारी उच्चाधिकारियों को दी तो नंबर ट्रैकिंग पर डाल दिया गया। इसी से पुलिस को सफलता मिली। पता चला कि छोटे-मोटे लोग नाम देखकर उस पर हाथ तक नहीं डालते थे।
गूगल पर कराते थे रैंक
तीनों इतने शातिर थे कि डेवलपर को मिलाकर वेबसाइट को सर्च में सबसे ऊपर पहुंचा देते थे। पकड़े गए विनय कुमार ने बताया कि यह काम डेवलपर के जरिए आराम से हो जाता है। जिस कंपनी की वेबसाइट बनाते उसमें 72 घंटे में पांच से 7 क्लाइंट तो फंस ही जाते। उनसे पांच से 8 लाख रुपये वसूल लेते थे।
सिक्योरिटी मनी को बनाया हथियार
प्रयागराज के रहने वाले मोहम्मद सईद की नजर ईजीडे की फ्रेंचाइजी वाले मैसेज पर पड़ी तो उन्होंने इसके लिए इनीशिएट किया। बात शुरू हुई तो आनलाइन डिटेल लिया गया। इसके बाद बताया गया कि आपकी एप्लीकेशन अप्रूव हो गई है। सईद को कहा गया कि सिक्योरिटी मनी जमा करनी है। 30 हजार रुपये सिक्योरिटी मनी के रूप में जमा करने पर उनके नाम एक ऑनलाइन सर्टिफिकेट जारी कर दिया गया। सर्टिफिकेट जारी होने के बाद माल भेजने के नाम पर आठ लाख रुपये की डिमांड की गयी। आनलाइन सर्टिफिकेट से सईद समझ ही नहीं पाये कि वह शातिरों के जाल में फंस रहे हैं। विश्वास में आकर उन्होंने ऑनलाइन मनी ट्रांसफर करना शुरू कर दिया। पैसा ट्रांसफर हो गया लेकिन न माल की डिलीवरी हुई और न ही इस पर कोई जानकारी देने वाला था। तब तक वह 17.39 लाख रुपये ट्रांसफर कर दिए थे। फ्रॉड का एहसास होने पर उन्होंने आईजी के यहां पहुंचकर शिकायत की थी।
पैसा ट्रांसफर होते ही वेबसाइट गायब
प्रयागराज की रहने वाली सोनाली जायसवाल के साथ भी ऐसा ही हुआ। उन्होंने ने भी जानीमानी कंपनी के नाम की वेबसाइट से फ्रेंचाइजी की बात की। उन्होंने 1.25 लाख रुपये ट्रांसफर किए। पैसे ट्रांसफर करने के 24 घंटे बाद भी कोई रिस्पांस नहीं आया। आनलाइन चेक करने पर उनके पैरों तले से जमीन खिसक गयी। पता चला कि वेबसाइट ही गूगल से हटायी जा चुकी है। ठगी का शिकार होने के बाद उन्होंने साइबर क्राइम थाना प्रयागराज परिक्षेत्र में शिकायत दर्ज कराई गई। साइबर थाने की टीम ने छानबीन शुरू की तो एक से एक कड़ी जुड़ती चली गई। इन शातिरों के पकड़े के जाने के बाद पता चला कि नामी कंपनियों के नाम से मिलते-जुलते नाम की वेबसाइट बनाकर ठगी करते हंै। गूगल को अपनी वेबसाइट के अपलोड के लिए पांच से दस हजार रुपये देते और समय पूरा होने के बाद वेबसाइट अपने आप गूगल से गायब हो जाती थी। यह टाइम 24 से 48 घंटे तक ही रहता था। जिसमें सोनाली भी ठगी का शिकार बन गई।