छोटी-छोटी बातों को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं लोग, दो माह में दर्जनों ने दी जान
ज्यादातर केस में परिवार में छोटे-मोटे झगड़े के कारण उठाए गए कदम
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प्रयागराज
किसी ने सही कहा है जीवन अनमोल है, इसमें तरह- तरह के रंग है। क्या हुआ जो एक रंग फीका पड़ गया। इसकी वजह से जीवन को दांव पर लगा देना तो ठीक नहीं है। आप पर बहुत सी जिम्मेदारियां है। परिवार का व किसी के बुढ़ापे का सहारा हो। बुरा वक्त आया है तो हवा के झोंके की तरह निकल जाएगा। फिर यही समाज होगा। आप होंगे और होगी आपकी खुशहाली। लेकिन अफसोस इन बातों से अंजान कई लोग अपनी जिंदगी से परेशान और थक हारकर आत्महत्या का रास्ता चुन लेते हैं। छोटी-छोटी से बातों पर लोग जान दे रहे हैं। लोगों में टॉलेरेंस पावर कम हो चुका है। सिर्फ एक से डेढ़ माह के अंदर एक-दो नहीं बल्कि दर्जनों लोगों ने जान दी है। इनमें ज्यादातर युवा हैं। आंकड़े भी यही बताते हैं। इनमें अधिकांश घर-परिवार के झगड़े व डाट के कारण कदम उठाए हैं।
क्या करें परिवार वाले
- परिवार के सदस्य के गुमसुम रहने पर उन पर ज्यादा रखें
- किसी भी चीज का प्रेशर न दें, किसी के साथ भी लड़ाई हो तो ज्यादा देर तक अकेला न छोड़ें
- उनकी रुचि के मुताबिक काम करने दें, अपनी इच्छाएं न थोपे
- टीवी, न्यूजपेपर में यंग व बच्चों को केवल मनोरंजन खबरें पढ़ने को कहे और ध्यान दें
- हर वक्त अपने पति व बच्चों व अन्य सदस्य के सामने दूसरों की बड़ाई न करें
- निगेटिव बातों व उनके विचारों पर बैठ कर समझाएं और अच्छे बुरे की पहचान करना सिखाएं
- ये ध्यान दें आखिर कौन दोस्तों के साथ ज्यादा समय बीता रहा है। उस पर कंट्रोल करें
- समय-समय पर पूरा परिवार साथ बैठकर काउंसिलिंग करते रहें
इन वजहों से लोग दे रहे जान
- आर्थिक तंगी व डिप्रेशन
- सूदखोरों से परेशान होकर
- पत्नी के मायके जाने पर
- पति के शराब पीकर पीटने पर
- बीमारी से परेशान होकर
- परिवार वालों के डांटने पर
- इलाके में रहने वाले मनचले की वजह से
- दहेज व ससुरालियों से परेशान होकर
डेढ महीने में हुई घटनाएं
केस 1
शिवकुटी निवासी लालजी यादव ने अपनी बेटी मीना की शादी मान्धात प्रतापगढ़ निवासी राम बहादुर से की थी। उसके दो बच्चे नेहा और नितिन है। शादी के बाद पारिवारिक विवाद इतना बढ़ गया कि मीना अपने दोनों बच्चों को लेकर मायके में आ गई। उसकी मां और भाई देखरेख करते थे। 22 वर्षीय नेहा पत्राचार से बीए की पढ़ाई कर रही थी। पारिवारिक विवाद से वह तनाव में आ गई। जिसके बाद नेहा ने किचन में जाकर फांसी लगा ली।
केस 2
करमा चौकी के करमा कोहरान मजरे में राजेश पटेल का 18 वर्षीय पुत्र धीरेंद्र मुंबई में नौकरी करता था। किसी कारण से नौकरी छोड़कर घर चला आया था। अपने नौकरी व परिवारिक तनाव के आकर चुल्ले में फंदा बनाकर फांसी लगाकर जान दे दिया था। नौकरी छोड़कर आने के बाद से घर में गुमसुम रहता था। शायद घर वाले ये चीज समझ पाते तब तक देर हो चुकी थी।
केस 3
करछना रेलवे स्टेशन समीप रहने वाले 36 वर्षीय शिवकुमार घर से साइकिल लेकर बाजार जाने की बात कहकर निकला था। घर वापस न पहुंचने पर घर वालों ने ढूंढना शुरु किया तो बॉडी रेलवे ट्रैक पर मिली। जानकारी जुटने पर पता चला कि ट्रेन के आगे कूद कर जान दिया है। इसके पीछे भी घर का झगड़ा था।
केस 4
नई बस्ती, कीडगंज निवासी अभिषेक जायसवाल बीस वर्षीय अपनी मां जानकी देवी के साथ रहता था। उसके पिता इस दुनिया में नहीं है। वह एक कपड़े की दुकान में काम करता था। कोरोना की दूसरी लहर के बाद से वह आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। परेशान था। कमरे में फांसी लगाकर जान दे दिया। अपनी मां को भी अकेला छोड़ गया।
केस 5
जालिम सिंह हाता, थाना मुट्टीगंज निवासी भैरव प्रसाद का बेटा अरुण साड़ी की दुकान पर काम करता था। परिवार में उसकी पत्नी पुष्पा और तीन बेटियां है। लड़ाई झगड़े के बाद पत्नी के मायके जाने पर घर में खुद को अकेला होने पर फांसी लगाकर जान दे दिया था।
क्या सुसाइडल हेल्पलाइन से बढ़ रही मरीजों की दूरी?- बॉक्स
हाल ही में काल्विन अस्पताल में आत्महत्या के बढ़ते मामलों पर रोक लगाने के लिए सुसाइडल हेल्पलाइन की शुरुआत की गई थी। तब स्वास्थ्य विभाग का दावा था कि इस हेल्पलाइन से ऐसे मामलों में कमी आएगी। लेकिन ऐसा होता दिख नहीं रहा है। जिस तरह से आत्महत्या के मामले बढ़े हैं वह चिंता का विषय है। पर्याप्त प्रचार प्रसार नहीं होने से हेल्प लाइन के प्रति लोगों का रुझान भी कम देखने को मिल रहा है। इस हेल्प लाइन के संचालक मनोचिकित्सक डॉ। राकेश पासवान कहते हैं कि इस सीजन में आत्महत्या के मामले बढ़ जाते हैं। हमारे पास अभी भी पर्याप्त मात्रा में कॉल आते हैं जिन्हे अटैंड किया जाता है।
सुसाइड के मामलों में सबसे बड़ा रोल परिजनों का है। अगर समय रहते लक्षण पहचान लें तो उसका इलाज किया जा सकता है। हालांकि जिस तरह से सुसाइड के मामले बढ़ रहे हैं, ऐसे में लोगों को संयम बरतना चाहिए और छोटी-छोटी बातों को दिल पर नहीं लेना चाहिए।
डॉ। अजय मिश्रा, मनोचिकित्सक
तनाव कम करने के लिए नियमित व्यायाम और योग करें। जिससे सोचने समझने की क्षमता का विकास तो होगा ही साथ ही दिमाग को रिलैक्स भी मिलेगा। अगर कोई परेशानी दिक्कत हो तो घर वालों, दोस्तों से शेयर जरूर करें। शारीरिक क्षमता के मुताबिक काम करें। खुशमिजाज और सकारात्मक सोच वालों के साथ रहें।
डा। अरूण गुप्ता (बीएचएमएस)