प्रयागराज (ब्‍यूरो)। एनसीजेडसीसी में चल रही 40 दिवसीय नाट्य परक कार्यशाला का बुधवार को समापन हो गया। इसमें शामिल होने वाले थियेटर आर्टिस्ट्स ने इसी शानदार प्रस्तुति भी दी। समापन के मौके पर दैनिक जागरण आई नेक्स्ट से बातचीत में इन आर्टिस्ट्र्स ने अपने फ्यूचर प्लान शेयर किये। बताया कि वर्कशाप में वह सब सीखा जो स्टेज पर एक आर्टिस्ट की प्रजेंटेशन को प्रभावशाली बनाने के लिए जरूरी है। सांसों पर नियंत्रण, नृत्य की भाव भंगिमा सब कुछ डिटेल में जानने का मौका मिला।

सांसों पर नियंत्रण जरूरी
कलाकारों ने बताया कि इस कार्यशाला में सांसों पर नियंत्रण कैसे रखना है, इसे शिद्दत से बताया गया। सांसों पर नियंत्रण के बिना कोई कलाकार अपने रोल को अच्छे से नहीं निभा सकता है। कलाकार का अपनी सांसों पर नियंत्रण नहीं होगा तो वो अपने रोल के दौरान डॉयलाग डिलेवरी प्रॉपरली नहीं कर पायेगा। इससे आडियंश के साथ कनेक्शन ब्रेक हो जाने का खतरा होता है।

कैरेक्टर बिल्डिंग करना सीख
किसी भी एक्टर के लिए सांसों पर नियंत्रण के बाद सबसे जरूरी है कैरेक्टर बिल्डिंग करना है। मतलब एक्टर जिस कैरेक्टर को परफॉर्म करने जा रहा है वह उसमे इतना रम जाए कि मानो रीयल करेक्टर ही वही है। वह रोल उसी के नाम से जाना जाने लगे। इसी के साथ थ्ॉाट प्रोसेस के बारे में भी सीखा। एक्टर का अपने कैरेक्टर को लेकर के थ्ॉाट प्रोसेस सही नहीं है, तो वो अपने कैरेक्टर को ठीक ढंग से नहीं निभा पाएगा। जब एक्टर अपने कैरेक्टर को ठीक ढंग से समझेगा नहीं, तो उसे अपने डॉयलाग याद करने में भी समस्या होगी। डॉयलाग ठीक से याद नहीं होंगे और उसका किरदार कमजोर पड़ जाएगा। इसी थॉठ प्रोसेस को एक्टिंग की भाषा में क्राफ्टिंग कहते है।

भाव-भंगिमा के बारे में सीखा
एक्टिंग में जितना जरूरी आइडिएशन और सांसों पर नियंत्रण होता है उतना जरूरी होता है भाव-भंगिमाओं का प्रदर्शन। एक्टिंग केवल बोल कर ही नहीं बल्कि बॉडी लैंग्वेज और फेस एक्प्रेशन के माध्यम से भी होती है।

छह वर्षों से थियेटर कर रहा हूं। कार्यशाला में रंगमंच के बड़े कलाकारों से सीखने का मौका मिला। यहां हर वो गुर सिखाए गये जो एक एक्टर बनने के लिए जरूरी है। अब तक कई वेब-सिरीज में काम कर चुका हूं। आगे फिल्मों में ही अपना करियर बनान चाहता हूं।
यश मिश्रा, कलाकार

सात वर्षों से थियेटर कर रहा हंू। इस कार्यशाला मेें सांसों नियंत्रण रखना सीखा। किसी भी एक्टर के लिए सबसे जरूरी होता है सांसों पर नियंत्रण रखना क्योंकि अच्छी डॉयलाग डिलेवरी के लिए सांसों पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। आगे फिल्मों में काम करना है। इसके लिए अब बॉम्बे शिफ्ट हो गया हंू।
श्वेतांक मिश्रा, कलाकार

वर्कशाप से सीखा कि शब्दों का उच्चारण कैसे करना है। यह कला कार्यशाला की डिक्शन क्लास में सीखा। स्टेज पर आप किसी दूसरे कैरेक्टर को जी रहे होते हैं उसके एक्सप्रेशन और डॉयलाग डिलीवरी में डिफरेंस आ गया तो आप सफल नहीं हो सकते। आगे फिल्मों में काम करना चाहता हूं। कार्यशाला में प्रतिभाग करने के लिए ही बॉम्बे से प्रयागराज आया हूं।
विक्रांत केसरवानी कलाकार

वॉइस मॉड्ल्यूलेशन के बारे में सीखा। अपने पात्र को निभाते वक्त हमारी आवाज हमेशा किरदार के हिसाब से होनी चाहिए। उससे ज्यादा या कम आवाज हमारे किरदार को कमजोर कर देगी। इससे हमारा पूरा एक्ट भी खराब हो सकता है। फिल्मों में नहीं थियेटर में ही काम करना चाहती हूं। आगे चलकर खुद का एक थियेटर ग्रुप बनाना है। जिसमे कई सारे कलाकारों को अपनी कला का प्रदर्शन करने के साथ ही एक्टिंग की बारीकियों को भी सीख सके।
श्रेया सिंह कलाकार